क्या 2024 के समीकरण पूर्ववत रहेंगे!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

क्या इन नतीजों से 2024 के लिए कोई संकेत मिलता है? इस सवाल का मेरे हिसाब से जवाब है- साफ ना! इस बात के कई उदाहरण हैं कि लोग राज्य और केंद्र की सरकार चुनने के लिए अलग-अलग तरह से वोट करते हैं।

साल 2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव और 2015 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं। आम आदमी पार्टी (आप) को 2015 के विधानसभा चुनाव में भारी जीत मिली थी, लेकिन दिल्ली के मतदाताओं ने 2019 में सारे सांसद भाजपा के चुने।

कर्नाटक खुद इस बात का उदाहरण है कि वोट किस तरह बंटते हैं, जब हम देखते हैं कि यहां पिछले चार विधानसभा चुनावों और चार लोकसभा चुनावों में लोगों ने किस तरह वोट डाले। इसलिए, राज्य स्तर के चुनावों से यह अंदाज़ा लगाना गलत है कि लोकसभा चुनाव में क्या होगा।

यहां तक कि कर्नाटक चुनाव के नतीजों से, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के आगामी चुनावों के लिए भी कोई अंदाजा लगाना गलत होगा। बेशक कांग्रेस ने कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल की है, लेकिन इससे इसका कोई संकेत नहीं मिलता कि पार्टी हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में कैसा प्रदर्शन करेगी।

इन राज्यों में द्विध्रुवीय चुनाव होंगे, जबकि कर्नाटक में ऐसा नहीं था। तीन हिन्दी राज्यों में भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस केवल दो टेम्प्लेट इस्तेमाल कर सकती है- अपने प्रचार अभियान के लिए लोकल नेतृत्व और स्थानीय मुद्दों पर निर्भरता। लेकिन इसमें भी सावधानी की जरूरत है।

कर्नाटक में भाजपा के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर थी, क्योंकि वह सत्तारूढ़ थी। इसलिए कांग्रेस आसानी से स्थानीय मुद्दे और भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बना पाई। लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में है। साथ ही, कर्नाटक में पार्टी कम से कम प्रचार के दौरान बहुत एकजुट थी, लेकिन इसकी तुलना में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में फिलहाल यह एकजुटता नहीं दिखती।

इसलिए स्थानीय मुद्दों को उठाना उपयोगी है, लेकिन सावधानी के साथ। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी राज्यों में नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान ज्यादा असर डाल सकता है, बनिस्बत उन राज्यों के जहां की भाषा वे नहीं बोलते।

विधानसभा चुनावों में हारना किसी भी पार्टी के लिए झटके की तरह है, लेकिन एक हार से पार्टी का भविष्य तय नहीं होता। यह दक्षिण में भाजपा के विस्तार की योजना और जेडीएस के भविष्य पर भी लागू होता है। यह सच है कि अगर भाजपा जीत गई होती तो दक्षिण में उसके विस्तार की योजना में तेजी आती और दक्षिण में उसका जनाधार मजबूत होता। लेकिन इस हार का मतलब यह नहीं है कि भाजपा के लिए दक्षिण के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए।

हमें यह देखने के लिए इंतजार करना चाहिए कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का कर्नाटक में प्रदर्शन कैसा रहता है। जेडीएस भी भले बहुत पीछे चली गई हाे, लेकिन इससे कर्नाटक में उसकी राजनीति का अंत नहीं होगा। उसे शायद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी चुनौती का सामना करना पड़े, लेकिन हमें यह देखने के लिए पांच साल और इंतजार करना होगा कि जेडीएस 2028 के विधानसभा चुनाव में कैसा प्रदर्शन करती है।

हार का मतलब यह नहीं कि भाजपा के लिए दक्षिण के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए। हमें यह देखने के लिए इंतजार करना चाहिए कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा का कर्नाटक में प्रदर्शन कैसा रहता है।

कर्नाटक चुनाव के नतीजों से नई बहस पैदा हो गई है। क्या वे इस बात का कोई संकेत देते हैं कि आने वाले महीनों में भारतीय राजनीति का रुख क्या होगा? इस साल के अंत तक कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 की शुरुआत में लोकसभा चुनाव होंगे।

कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद हमें चार मुख्य सवालों पर ध्यान देना चाहिए। पहला, क्या ये नतीजे इस बात का संकेत देते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या हो सकता है? दूसरा, क्या इन नतीजों से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहेगा (जहां वह सत्तारूढ़ पार्टी है) और मध्य प्रदेश और तेलंगाना में उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा (जहां वह मुख्य विपक्षी दल है)? दो और सवाल हैं, जिनपर चर्चा हो रही है।

पहला, क्या भाजपा की हार का मतलब दक्षिण में उसके पतन की शुरुआत है या कड़े शब्दों में कहें तो क्या यह दक्षिण में विस्तार के भाजपा के सपने का अंत है? जेडीएस के भविष्य के बारे में भी सवाल किए जा रहे हैं कि क्या कर्नाटक आगे जाकर द्विध्रुवीय चुनावों की ओर बढ़ रहा है और इस हार का मतलब राज्य में जेडीएस का अंत है?

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