सरकार जागेगी भी या बैठकर सिर्फ तमाशा देखती रहेगी!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्रिय श्री मनीष कश्यप जी, की यह घटना भी प्रथम दृष्टया बेशक निन्दनीय है! लेकिन, जबतक इस घटना की पूरी हकीकत सामने प्रदर्श नहीं हो जाए ! तब तक किसी पर ज्यादा दोषारोपण करना कतई व कदापि अच्छा नहीं माना जाएगा! हमारे लोकतांत्रिक ‘संविधान’ द्वारा देश के आम नागरिकों हेतु जो ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ प्रदान की गई है! जिसमें पूर्ण नैतिकता व अनुशासन की विशिष्ट बात समाहित की गई है।
जिसके सापेक्ष कदापि व कतई ‘स्वतंत्रता के नाम पर उदंडता’ को आपराधिक मामला मानकर प्रतिपादित किया गया है! वस्तुत: और मूलतः वही अधिकार कमोवेश देश के किसी पत्रकार को भी हमारे संविधान ने दिया है! दरअसल, पत्रकार गण लोकतंत्र में ‘आम व खास’ जनता की जोरदार आवाज को बुलंद करते हैं। वस्तुत: इसीलिए उनकी अहमियत ‘जनतंत्र’ में ज्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं!
परंतु, सस्ती लोकप्रियताएं पाना यह दीगर बात है, मगर एक कुशल, नेक, सुसभ्य, सुशिष्ठ, आदरपूर्ण सुवाणी, सुसंस्कारित व नैतिकतापूर्ण पूरी ईमानदारी से निष्पक्ष व निर्भिकतापूर्ण पारदर्शी पत्रकारिता करना एक महाकठिन कार्य है! किन्तु, इन सद्-गुणों से इतर व विरूद्ध जब हम पत्रकारिता करने लगते हैं और अपनी सुभाषा की सुमर्यादा की सुपरिभाषा को तिरोहित करते हुए अपनी साधारण बोलचाल की भाषा में भी अशुद्धता की भरमार करते हुए सिर्फ तेज और कड़कती आवाज का जोरदार प्रदर्शन करते हैं, तो ‘जन-गण-मन’ के बहुत बड़े वरिष्ठ पत्रकार नहीं बन जाते हैं!
अपितु, पत्रकार और पत्रकारिता जगत हेतु कभी-कभी आप ‘कलंक’ भी साबित होने लगते हैं! मैं कोई ईर्ष्यागत नहीं, बल्कि ‘भारी मन-मनसा’ से यह ‘सच्चाईपूर्ण बात’ सर्वसमाज और विशेषकर वरिष्ठ पत्रकार बंधुवरों एवं शासन-प्रशासन को भी सादर सूचित कर रहा हूं कि आए दिन भारी भीड़ की तरह बढ़ती इन ‘सोशल मीडिया’ के
पत्रकारों के लिए ‘बेहतर प्रशिक्षण केंद्रों’ की सुस्थापना करके हमारे इन पत्रकार बंधुवरों को शुचितापूर्ण, सुमर्यादित, सुअनुशासित,निष्पक्ष-निर्भीक एवं ईमानदारीपूर्ण कुशल व श्रेष्ठ पत्रकारिता हेतु प्रशिक्षित और प्रेरित किया जाए! ताकि ‘सोशल मीडिया’ की ‘तीव्रगामी सुयात्रा’ को सदैव ‘भारत’ के लिए समृद्धशाली,गौरवशाली व सुसशक्त व ‘राष्ट्र-हितक’ बनाया जा सके! * इस हेतु अनंत शुभकामनाएं हैं !
क्या सच में नीतीश कुमार की सरकार का इकबाल खत्म हो गया है?
मनीष कश्यप तो पत्रकार थे, नेता थे… पिटा गए…. और राजनीति भी खूब हुई। मनीष उदंड हैं …. भाजपा का नेता है इसलिए उनके साथ विपक्ष खड़ा नहीं हुआ। मनीष युटुबर है इसलिए उनके साथ पत्रकार खड़े नहीं हुए? मनीष में लाख बुराई हो? बोलने का लहजा भी ठीक नहीं है? पर क्या उसके सवाल गलत है?
अगर गलत होता तो आज आम आदमी इस पीएमसीएच में क्यों पीटा गया। क्या पटना मेडिकल कॉलेज …. मरीजों का इलाज करने के लिए नहीं, उनकी पिटाई करने के लिए खोला गया है? क्या सरकार यहां डॉक्टर नहीं, गुंडे पैदा कर रही है?
अब यह जो घटना घटी है उस पर सरकार कोई ठोस एक्शन लेगी या इस इंतजार में बैठी है की जनता खुद पहुंचकर वहां कोई फैसला करें?
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