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महिलाएं भारतीय मूल्यों को ही प्राथमिकता देती हैं,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

महिलाएं भारतीय मूल्यों को ही प्राथमिकता देती हैं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सदी के आठवें-नौवें दशक में देश के कुछ नौकरशाहों ने उत्तर भारत के खास राज्यों के पिछड़ेपन को दर्शाने के लिए उनके नाम के आरंभिक अक्षरों से एक शब्द बनाकर विश्व बैंक के समक्ष प्रस्तुत किया था। इस संदर्भ में ‘बीमारू’ शब्द को उसी दौर में गढ़ा गया था। यह हास्यास्पद लग सकता है, क्योंकि विश्वस्तरीय नीतियों के गठन में रूढ़ीवाद का योगदान रहा है। चार उत्तरी राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को मिलाकर उन्हें ‘बीमारू’ की संज्ञा दी गई। इन राज्यों में साक्षरता दर के अलावा औपचारिक रोजगार समेत ओद्यौगीकरण की दर कम होने और प्रति व्यक्ति कम आय व महिलाओं की स्वायत्तता के कम संकेतक पाए गए हैं।

उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष के आरंभ में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। कोविड महामारी से काफी हद तक उबरते हुए अब समय आ गया है कि महिलाओं के हितों और उनकी जरूरतों के बारे में बात की जाए। खासतौर पर केंद्र की राजग सरकार इसका केंद्र बिंदु है और महिलाओं को विशेष महत्व दे रही है। महिलाओं और बच्चों समेत देश की बड़ी आबादी के लिए भोजन आज भी एक बड़ा मुद्दा है। देश के अन्य राज्यों में काम के लिए गए उत्तर प्रदेश के अनेक कामगारों को कोविड महामारी के दौर में भोजन तक की समस्या हो गई थी। इतना ही नहीं, अन्य राज्यों में कार्यरत उत्तर प्रदेश के ये कामगार अपने गृहराज्य तक पहुंचने के लिए बसों और ट्रेनों के आरंभ होने का इंतजार कर रहे थे.

वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने महामारी के दौर में करीब चार महीने तक अपने लोगों को भोजन दिया। दरअसल कम आय वर्ग वाले परिवार इस मामले में सबसे संवेदनशील स्थिति में थे। इस दौरान समेकित बाल विकास योजना और अन्य पोषण एवं स्वास्थ्य योजनाओं के माध्यम से बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण को महत्व दिया गया। यह प्रयास किया गया कि ये फायदे समाज के सबसे निचले लोगों तक पहुंचे। इस दौरान तमाम चुनौतियों के बीच आक्सीजन और दवाओं का अप्रत्याशित संकट सामने आया। ऐसे में शहर से लेकर गांव तक सभी महिलाओं की जरूरतें समान थीं।

भारत में काम करने वाली 57 फीसद महिलाएं आज भी कृषि क्षेत्र में काम करती हैं। मात्र 24 फीसद महिलाएं ही वेतन पर काम करती हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए औपचारिक क्षेत्रों में भी स्थितियां अप्रत्याशित हैं। ग्रामीण एवं अर्धशहरी क्षेत्रों की महिलाओं को काम करने के लिए बड़े शहरों का रुख करना पड़ा। ऐसे में पेशेवर कालेजों, कौशल आधारित कार्यो में निवेश, उद्योग जगत एवं शिक्षा के क्षेत्रों में अवसरों में बढ़ोतरी उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान मुख्य प्राथमिकताएं हैं। शिक्षा और कामकाज अब आबादी नियंत्रण के साधन नहीं रहे, बल्कि विभिन्न सामाजिक आर्थिक वर्गो के लिए अर्थपूर्ण हो गए हैं।

हाल के दिनों में कई खबरों में एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की अनेक रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया है। इन विश्लेषणों में यह बताया गया है कि विभिन्न वर्गो की महिलाओं के लिए हिंसा से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। अध्ययन बताते हैं कि महिलाओं के साथ इस तरह की हिंसा के मामले आज भी बहुत अधिक है। साथ ही, इस दिशा में बहुत अधिक काम होने के बावजूद स्थिति जस के तस है। हालांकि बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ये मुद्दे बेहद गंभीर हैं। धर्म और जाति मतदान करने वाली महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण संकेतक नहीं हैं।

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