अक्षय नवमी का पर्व 30 अक्टूबर गुरुवार को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जायेगी।

अक्षय नवमी का पर्व 30 अक्टूबर गुरुवार को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जायेगी।

श्रीनारद मीडिया, दारौंदा, सिवान (बिहार)।

सिवान। सिवान जिला सहित दारौंदा प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में आगामी 30 अक्टूबर, गुरुवार को अक्षय नवमी का पावन पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।

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अक्षय नवमी का शाब्दिक अर्थ है अक्षय पुण्य यानी ऐसा पुण्य जो कभी समाप्त न हो। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा से व्यक्ति को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है और यह पुण्य जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाता है।
इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करना और दान करना भी अत्यंत लाभकारी माना गया है.

अक्षय नवमी का संबंध भगवान विष्णु से भी है जो सृष्टि के पालनहार माने जाते हैं. इस दिन विष्णुजी के साथ आंवले के पेड़ की पूजा करने से जीवन में आने वाली समस्याएं दूर होती हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इस दिन की गई पूजा और दान-पुण्य का फल अक्षय होता है, जो न केवल इस जन्म में बल्कि अगले जन्मों में भी शुभ फल प्रदान करता है।

अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है।
वृक्ष की हल्दी कुमकुम व पूजन सामग्री से पूजा करें।
पेड़ की जड़ के पास सफाई कर जल और कच्चा दूध अर्पित करें।
तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटें, यह करते हुए वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करें।
पूजा के बाद आंवला नवमी की कथा पढ़ी और सुनी जाती है। माना जाता है कि कथा सुनने या खुद पढ़ने से भी लाभप्रद होता है ।
पूजा के बाद सुख समृद्धि की कामना करते हुए वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन किए जाने का महत्व है।

इस दिन स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं सुबह स्नान-ध्यान के बाद व्रत रखकर आंवले के वृक्ष की पूजा करेंगी। पूजा के दौरान महिलाएं दीप जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आह्वान करेंगी। गांवों में श्रद्धालुओं ने पूजा की तैयारी शुरू कर दी है। बाजारों में पूजा सामग्री, आंवला फल, दीपक, फूल और प्रसाद की खरीदारी भी जोरों पर है।

पंडितों के अनुसार, इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने से रोग और दोष नष्ट होते हैं तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। इसे ‘आंवला नवमी’ या ‘अक्षय नवमी’ के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन से सतयुग का प्रारंभ हुआ था, इसलिए यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है।
श्रद्धालु इस अवसर पर दान-पुण्य और गरीबों को भोजन भी कराते हैं। आस्था और धार्मिक उत्साह से ओत-प्रोत वातावरण में यह पर्व पूरे उल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।

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