हिन्दी सिनेमा के सपनो के सौदागर, द ग्रेट शोमैन, निर्माता निर्देशक व अभिनेता राजकपूर.

हिन्दी सिनेमा के सपनो के सौदागर, द ग्रेट शोमैन, निर्माता निर्देशक व अभिनेता राजकपूर.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिन्दी सिनेमा जगत के मोस्ट हैंडसम, मोस्ट टैलेंटेड, सपनो के सौदागर, द ग्रेट शोमैन, निर्माता निर्देशक व अभिनेता राजकपूर का नाम भला कौन नहीं जानता। युवा राज कपूर नेहरूवादी समाजवाद से प्रेरित थे, उनकी बनाई शुरूआती फिल्मों आवारा, श्री 420, बूट पॉलिश, जागते रहो में इसकी झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। आम आदमी के सुख-दुख को अभिव्यक्त करने वाली उनकी बनाई ये फिल्में आज भी चर्चा में बनी हुई हैं। बाद में राजकपूर ने रोमांटिक फिल्मों की ओर रूख किया और अपनी फिल्मों में प्रेम को एक नई परिभाषा दी जिससे प्रभावित हो हिन्दी सिनेमा जगत में और भी फिल्मकारों ने उनकी इस शैली को अपनाया, उसके बाद तो फिल्मों में लगातार रोमांटिक फिल्मों की बहार सी छा गई।

राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर, 1924 को पेशावर में उस समय हुआ था जब भारत पाकिस्तान का विभाजन नहीं हुआ था और पेशावर अविभाज्य भारत का हिस्सा था जो अब पाकिस्तान में है। राज कपूर के  पिता पृथ्वी राज कपूर एक जाने माने थियेटर आर्टिस्ट और फिल्म कलाकार थे। पृथ्वीराज कपूर के तीन बेटे थे राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर जो तीनों ही अपने दौर के दिग्गज अभिनेता रहे हैं। पृथ्वी राज कपूर के बेटे ही क्या समस्त कपूर खानदान आज अभिनय की दुनिया में एक बड़ा नाम है।

राज कपूर का पूरा नाम रणबीर राज कपूर था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर हालांकि फिल्मों में अपनी जगह बनाना उनके लिए बहुत आसान था किन्तु उनके पिता पृथ्वीराज कपूर चाहते थे कि राज कपूर का खुद का अपना हुनर है और वह किसी के नाम के साथ नहीं बल्कि अपने दम पर अपना मुकाम हासिल करें और ऐसा ही हुआ भी। राज कपूर ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर ही फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाई।

अपने अभिनय का आगाज़ राज कपूर ने पृथ्वीराज थियेटर के मंच से ही किया। साल 1935 में मात्र 10 साल की उम्र में फिल्म ‘इंकलाब’ में उन्होंने एक छोटा सा रोल किया था उसके पश्चात फिल्मी दुनिया में उनकी एंट्री निर्देशक केदार शर्मा की फिल्मों में ‘क्लैपर बॉय’ के रूप में हुई। यहां उनके साथ एक किस्सा भी जुड़ा है। एक फिल्म में केदार शर्मा जी ने उनसे क्लैप कर शूट शुरू करने के लिए बोला तब राज कपूर कैमरे के सामने आकर बाल ठीक करने लग गए।

इस पर केदार शर्मा को बहुत गुस्सा आया और गुस्से में उन्होंने राज कपूर को एक चांटा लगा दिया, हालांकि बाद में केदार शर्मा समझ गए कि राजकपूर का टैलेंट क्लैपर बॉय का नहीं बल्कि वो नायक, अभिनेता बनने की काबिलियत रखते हैं, तब 1947 में उन्होंने अपनी फिल्म ‘नीलकमल’ में राजकपूर को नायक का रोल दिया। इस फिल्म में उनके साथ प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला ने काम किया था।

महज 24 साल की उम्र में ही राज कपूर ने अपना प्रोडक्शन स्टूडियो ‘आर के फिल्म्स’ शुरू कर दिया था, उस समय वे फिल्म इंडस्ट्री के सबसे यंग डायरेक्टर थे। उनके प्रोडक्शन में बनी पहली फिल्म थी ‘आग’। इस फिल्म में राज कपूर एक्टर भी थे और डायरेक्टर भी। 28 साल की उम्र तक आते-आते राज कपूर ने हिन्दी सिनेमा में शो-मैन का खिताब हासिल कर लिया था।

‘आग’ के बाद 1949 में राज कपूर ने फिल्म ‘बरसात’ बनाई जिसमें उन्होंने तिहरी भूमिका निभाई, इस फिल्म में अभिनेता के साथ-साथ वे स्वयं ही निर्माता-निर्देशक भी थे। इस फिल्म में उन्होंने नायिका से लेकर गीतकार, संगीतकार यहां तक की टैक्निशियन की भी अपनी एक नई टीम तैयार की। इस फिल्म में राज कपूर ने निम्मी को बतौर नायिका पहली बार लांच किया था। ‘बरसात’ बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट फिल्म रही। इस फिल्म के बाद तो जैसे राज कपूर के नाम से ही फिल्में चलने लगीं।

1950 के बाद बतौर अभिनेता राज कपूर की एक के बाद एक कई हिट फिल्में आई ‘जान पहचान’ ‘प्यार’ ‘संगम’, ‘दास्तान’ ‘बावरे नयन’ ‘आवारा’ चोरी-चोरी, ‘श्री 420’ ‘जागते रहो’ ‘बूट पॉलिश’, परवरिश, फिर सुबह होगी, ‘दो उस्ताद, अनाड़ी, छलिया, श्रीमान सत्यवादी, जिस देश में गंगा बहती है इत्यादि जिन्होंने हिन्दी सिनमा में राज कपूर के नाम की धूम मचा दी। इन फिल्मों की कामयाबी के साथ राज कपूर का नाम बड़े-बड़े दिग्गज कलाकारों के साथ लिया जाने लगा।

‘संगम’ 26 जून 1964 को अखिल भारतीय स्तर पर प्रदर्शित बतौर निर्माता, निर्देशक तथा अभिनेता राज कपूर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ सम्पादन का पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1951 में बनी उनकी फिल्म ‘आवारा’ को हिन्दी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। एक महान कलाकार होने के साथ ही राज कपूर संगीत की भी अच्छी समझ रखते थे यही वजह थी कि उन्होंने अपनी फिल्मों में संगीत पक्ष को भी काफी महत्व दिया और उनकी फिल्मों का गीत संगीत आज भी लोगों की जुबां से नहीं उतरा है। राज कपूर खुद भी वायलिन, पियानो, मेंडोलिन और तबला बजाना जानते थे। अपनी मेहनत, लगन और टैलेंट से राज कपूर ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में देकर कपूर खानदान के नाम को काफी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

नर्गिस के साथ राज कपूर की जोड़ी बॉलीवुड की सबसे पॉपुलर और हिट जोड़ी रही है। 1951 से 1956 के बीच राज कपूर की लगभग सभी फिल्मों में उनकी नायिका नरगिस रहीं। नर्गिस के साथ राज कपूर ने कुल 16 फिल्में की, जिनमें से 6 फिल्में आर.के.बैनर की ही थी। लंबे समय तक नर्गिस के साथ काम करते हुए राज कपूर का नर्गिस के साथ काफी लगाव हो गया था। बाद में कुछ निजी वजहों के चलते उनकी यह जोड़ी बिखर गई और नर्गिस ने राज कपूर से किनारा कर लिया, 1956 में फिल्म ‘चोरी-चोरी’ में नर्गिस और राजकपूर अंतिम बार पर्दे पर एक साथ दिखे। कहा जाता है कि नर्गिस से अलग होने के बाद राज कपूर काफी टूट गए थे।

1970 के अंत में राज कपूर ने अपने समय की सबसे महँगी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई जो राज कपूर के जीवन की सबसे महत्त्वाकांक्षी फिल्म थी पर जैसी की उम्मीद थी ‘मेरा नाम जोकर’ बॉक्स ऑफिस पर उतनी नहीं चली, इस फिल्म के साथ ही राज कपूर ने बतौर अभिनेता फिल्मों से विदा ले ली। ‘मेरा नाम जोकर’ के न चलने से राज कपूर काफी आर्थिक दबाव में आ गए थे,

ऐसा लगने लगा था कि राज कपूर खत्म हो गए है किन्तु राज कपूर राज कपूर थे उन्होंने हार नहीं मानी और एक बार फिर उठने की कोशिश में अपने बेटे ऋषि कपूर और डिम्पल कपाड़िया को लेकर किशोर प्रेम कथा पर आधारित फिल्म ‘बॉबी’ बनाई जो इतनी सुपर हिट फिल्म साबित हुई कि उसने राज कपूर की सारी आर्थिक समस्याओं को खत्म कर दिया और इसके साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को ऋषि कपूर के रूप में एक बेहतरीन अभिनेता भी मिला। इसके बाद राज कपूर ने ज्वलंत मुद्दों पर आधारित कुछ और भी बेहतरीन फिल्में बनाई, सत्यम शिवम सुन्दरम, प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली जैसी फिल्में।

राज कपूर के फिल्मों में दिए उनके योगदान के लिए उन्हें 11 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड और तीन बार राष्ट्रीय पुरूस्कारों से नवाजा गया। 1960 की फिल्म ‘अनाड़ी’ और 1962 की फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया और 1965 में ‘संगम’, 1970 में ‘मेरा नाम जोकर’ और 1983 में ‘प्रेम रोग’ के लिए उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड प्राप्त हुआ।

राज कपूर को सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1971 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया और 1987 में उन्हें सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया। इस पुरस्कार को राष्ट्रपति से प्राप्त करते समय उनकी तबीयत बिगड़ गई थी जिसके बाद वह लगभग एक महीने तक वे अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते रहे और आखिरकार 2 जून 1988 राजकपूर इस दुनिया को अलविदा कह गए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!