पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को निलंबित करने का क्या मतलब है?

पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को निलंबित करने का क्या मतलब है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकवादी हमले पर भारत की प्रतिक्रिया के बाद, पाकिस्तान ने घोषणा की कि वह वर्ष 1972 के शिमला समझौते को निलंबित कर देगा।

  • इस निर्णय से क्षेत्र में शांति और स्थिरता के भविष्य को लेकर चिंताएँ, विशेषकर जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LOC) के संबंध में, उत्पन्न हो गई हैं

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शिमला समझौता क्या है?

  • शिमला समझौता एक द्विपक्षीय संधि थी जिस पर 2 जुलाई, 1972 को शिमला, हिमाचल प्रदेश में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हस्ताक्षर किये गए थे
    • यह समझौता वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद संपन्न हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश (पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान) का निर्माण हुआ और भारत की निर्णायक सैन्य विजय हुई।
    • समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के मध्य बेहतर संबंधों को स्थापित करना, शत्रुता को समाप्त करना तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं द्विपक्षीयता के लिये खाका तैयार करना था।
  • प्रमुख प्रावधान: 
    • संयुक्त राष्ट्र चार्टर का संदर्भ: भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नियंत्रित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों और उद्देश्यों को रेखांकित किया गया।
      • इसने संयुक्त राष्ट्र के पिछले प्रस्तावों (जैसे UNSC प्रस्ताव 47) का विरोध किया, जिसमें कश्मीर में जनमत संग्रह का आह्वान किया गया था।
    • विवादों का शांतिपूर्ण समाधान: दोनों देशों ने कश्मीर सहित सभी विवादों को तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के बिना द्विपक्षीय रूप से सुलझाने का संकल्प लिया।
    • संप्रभुता का सम्मान: दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर सहमत हुए।
    • युद्ध विराम रेखा का पुनः निर्धारण: जम्मू और कश्मीर में वर्ष 1971 की युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा (LOC) के रूप में पुनः नामित किया गया, तथा दोनों पक्षों ने मतभेदों के बावजूद, इसे एकतरफा रूप से नहीं बदलने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • राजनयिक संबंधों का सामान्यीकरण: समझौते में संचार, यात्रा और व्यापार संबंधों को फिर से शुरू करने की बात कही गई, जिसका उद्देश्य राजनयिक और आर्थिक संबंधों को बहाल करना था।
    • युद्धबंदियों की रिहाई: भारत ने 93,000 से अधिक पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की, जो इतिहास में युद्ध के बाद की सबसे बड़ी रिहाई में से एक है।

नोट: शिमला समझौते का उद्देश्य कश्मीर मुद्दे को सुलझाना था, लेकिन यह क्षेत्र की व्यापक राजनीतिक स्थिति को संबोधित करने में विफल रहा। नियंत्रण रेखा एक अस्थायी उपाय होने के बजाय, एक वास्तविक सीमा बन गई, जिससे मूल विवाद अनसुलझा रह गया। इसके अतिरिक्त, एक मज़बूत प्रवर्तन तंत्र की अनुपस्थिति ने बार-बार उल्लंघन को जन्म दिया है।

शिमला समझौते के निलंबन के संभावित निहितार्थ क्या हैं?

  • द्विपक्षीयता से अंतर्राष्ट्रीयकरण की ओर बदलाव: शिमला समझौते के द्विपक्षीय ढाँचे के स्थगित होने से विवादों को सुलझाने में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता या हस्तक्षेप की मांग हो सकती है।
    • पाकिस्तान शिमला समझौते का उल्लंघन करते हुए कश्मीर विवाद को अंतर्राष्ट्रीय बनाने के लिये संयुक्त राष्ट्र, चीन या इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे सहयोगियों जैसे तीसरे पक्ष की भागीदारी की मांग कर सकता है।
  • प्रॉक्सी युद्ध का खतरा: पाकिस्तान ने पहले भी इस समझौते का उल्लंघन किया है (जैसे, वर्ष 1984 में सियाचिन में घुसपैठ, वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध )।
    • निलंबन से संभावित रूप से प्रॉक्सी/छद्म युद्ध की रणनीति पुनर्जीवित हो सकती है।
  • कूटनीतिक और सैन्य तनाव में वृद्धि: शिमला समझौते के निलंबन से तत्काल सामरिक परिणाम नहीं होंगे, फिर भी इससे सैन्य और कूटनीतिक तनाव बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
    • अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद जम्मू-कश्मीर में विकासात्मक और लोकतांत्रिक सुदृढ़ीकरण के प्रयास, शत्रुता या सीमा अस्थिरता के किसी भी पुनरुत्थान से विफल हो सकते हैं।
    • दो परमाणु-सशस्त्र राज्यों के बीच संघर्ष की संभावना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर में चिंता उत्पन्न करती है, तथा संयम एवं वार्ता का आह्वान करती है।
  • बहुपक्षीय सहयोग पर प्रभाव: द्विपक्षीय समझौतों के टूटने से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में सहयोग प्रभावित हो सकता है, तथा आतंकवाद-रोधी और आर्थिक विकास जैसे मुद्दों पर सामूहिक प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा हेतु भारत को क्या उपाय अपनाने चाहिये?

  • ड्रोन रोधी रक्षा प्रणालियों की तैनाती: नियंत्रण रेखा पर बढ़ती ड्रोन-आधारित तस्करी और निगरानी का मुकाबला करने के लिये ड्रोन-रोधी रडार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पहचान प्रणालियाँ स्थापित करना। बेहतर प्रतिक्रिया क्षमताओं के लिये इज़रायली “ड्रोन डोम ” तकनीक का उपयोग करना।
  • उपग्रह और यूएवी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके उन्नत निगरानी: निर्बाध 24×7 निगरानी हेतु वास्तविक समय उपग्रह इमेज़री, मानव रहित हवाई वाहन गश्ती (जैसे हेरोन टीपी ड्रोन) और ज़मीन आधारित रडार डेटा को एकीकृत करना।
    • सुरंग और असामान्य गतिविधियों का पता लगाने के लिये AI-संचालित विश्लेषण का उपयोग करना।
  • घुसपैठ रोधी ग्रिड को मज़बूत करना: सेना, सीमा सुरक्षा बल (BSF), स्थानीय पुलिस और खुफिया इकाइयों को शामिल करते हुए बहुस्तरीय घुसपैठ रोधी ग्रिड को परिष्कृत करना।
    • मौसमी परिवर्तनों और शत्रु की रणनीति के आधार पर SOP (मानक संचालन प्रक्रिया) को नियमित रूप से संशोधित करना।
  • सामुदायिक सहभागिता और ग्राम रक्षा समितियाँ (VDC): उचित हथियार प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी जुटाने की भूमिका और पूर्व चेतावनी प्रणाली के साथ ग्राम रक्षा समितियों (विशेष रूप से अनंतनाग में) को पुनर्जीवित और सशक्त बनाना।
    • “फर्स्ट लाइन ऑफ अलर्ट” बनाने के लिये समुदाय-पुलिस-सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना।
  • व्यापक सीमा बाड़ आधुनिकीकरण: दीर्घकालिक उपाय के रूप में, व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS) जैसी परियोजनाओं के तहत पारंपरिक कांटेदार तार अवरोधों के स्थान पर इन्फ्रारेड सेंसर, लेजर दीवारों और भूकंपीय डिटेक्टरों से युक्त स्मार्ट बाड़ लगाई जानी चाहिये।
    • गुरेज, उरी और पुंछ सहित सक्रिय घुसपैठ मार्गों वाले उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बाड़ बढ़ाई जाए।

शिमला समझौते के निलंबन से भारत को अपने कूटनीतिक और सुरक्षा दृष्टिकोणों का पुनर्मूल्यांकन करने का मौका मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों और नियंत्रण रेखा की सुरक्षा को मज़बूत करना आवश्यक है।

भारत इस घटना का उपयोग आतंकवाद को वित्तपोषित करने में पाकिस्तान की संलिप्तता की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये कर सकता है। इसके अतिरिक्त, यह वित्तीय कार्रवाई कार्य बल की ग्रे सूची में पाकिस्तान को फिर से शामिल करने का मामला भी मजबूत होता है।

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