सतयुग की प्रारंभ तिथि है अक्षय तृतीया!

सतयुग की प्रारंभ तिथि है अक्षय तृतीया!

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है, जिसे आखा तीज भी कहते हैं. आध्यात्मिक व धार्मिक मान्यता है कि इसी तिथि से सतयुग और त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था. साथ ही भगवान परशुराम का अवतरण होने से हिंदू धर्मग्रंथों में अक्षय तृतीया का माहात्म्य बढ़ जाता है.  अक्षय तृतीया का दिन परशुरामजी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कहलाता है। परशुरामजी की गिनती चिरंजीवी महात्माओं में की जाती है इसलिए इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं।

पुरुष और प्रकृति के एकीकरण, समन्वय, तादाम्य का महीना है वैशाख. इस महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि त्रिगुणात्मक जीवन की ज्ञान-इच्छा एवं क्रियाशक्ति का भान कराने वाली तिथि है. इसके अलावा यह तीनों लोक ‘भू: भुव: स्व:’ को भी ऊर्जावान करने की तिथि है. इस तिथि को अक्षय तृतीया का निर्धारण करने के केवल आध्यात्मिक कारण ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं.

आध्यात्मिक दृष्टि से अक्षय तृतीया सत्ययुग की प्रारंभ तिथि है. सत्ययुग के ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का स्वरूप अक्षय एवं अविनाशी हैं. पूरी सृष्टि सृजन, पालन एवं विनाश की त्रिकोणात्मक परिक्रमा करती है. यह तिथि ज्ञान एवं क्रिया के देवता परशुराम का अवतरण दिवस भी है. ऋषि होने के नाते परशुराम जी जहां ज्ञान के देवता होते हैं, वहीं प्रजा हित एवं सकुशल राज्य-संचालन के लिए निर्धारित मानकों के विपरीत कार्य करने वाले राजाओं से अनेकानेक बार संघर्ष की भी कथाएं उल्लेखित हैं.

वैशाख ऋतुराज वसंत के उन्मेष का महीना है. चैत्र शुक्ल पक्ष से शुरू वसंत दो माह अपना जो सुमधुर प्रभाव छोड़ता है, उससे त्रेतायुग के अक्षय स्वरूप के भगवान विष्णु के सप्तम अवतार भगवान श्रीराम एवं अष्टम अवतार योगेश्वर कृष्ण अभिभूत होते हैं. वनवास के दौरान सीताहरण के पश्चात भगवान श्रीराम के भटकाव एवं व्यग्रता को विराम देने वाला यही समय है.

दण्डकारण्य में प्रथमतः ज्ञान और विज्ञान के केंद्र श्रीहनुमान से उनकी इसी समय मुलाकात होती है. श्रीराम को हनुमान की बातो में ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के ज्ञान का आभास होता है. ज्ञानी हनुमान को पाकर वे सीता को पाने के प्रति आश्वस्त होते दिखाई पड़ते हैं.

इसी तिथि को भगवान परशुराम के अवतरण का विशेष संदेश

वाल्मीकि रामायण में भगवान राम द्वारा वसंत ऋतु का जो वर्णन किया गया है, वह पुरुष और प्रकृति के बीच समन्वय स्थापित करने का संकेत स्पष्ट रूप से देता है. शीतकाल की समाप्ति के बाद सूर्य की रश्मियों में आती तेजी का रूप सुहावना है. पुरुष के इस सुहावनेपन पर प्रकृति मुग्ध होने लगती है. धरती-आकाश की आपसी अनुकूलता से पुरानापन नवीन होता है. प्रकृति के इस भाव को जीवन में आत्मसात करने का संदेश भी निहित है. श्रीराम कृष्ण बनकर द्वापर के अगले अवतार में वसंत की मोहकता को भूलते नहीं और ‘मासानां मार्गशीर्षोSहम ऋतुनां कुसुमाकर:’ कह कर वसंत को अपना स्वरूप ही प्रदान कर देते हैं.

लिहाजा श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की कृपा-अनुकंपा से अभिसिक्त होने का यह समय है. दोनों अवतारी पुरुष का जीवन सिर्फ सैद्धांतिक ही नहीं, बल्कि क्रियात्मक भी था. वसंत ऋतु के इसी काल में वैशाख तृतीया को अवतरित दशावतार में छठे एवं 24 अवतारों में 16वें भगवान परशुराम की महिमा से यह भी संदेश मिलता है कि जीवन के षटचक्रों का भेदन करते हुए सहस्रार की ओर बढ़ने से चिंतन राम-कृष्ण की तरह उर्ध्वगामी होगा.

वैशाख महीने की महत्ता से पौराणिक ग्रंथ भरे पड़े हैं. कतिपय महीनों की महत्ता के क्रम में वैशाख माह के लिए स्कंदपुराण के 13 अध्यायों में वर्णित इसकी महत्ता से आशय यह निकलता है कि इस महीने में चंदमा, सूर्य, तारे, नक्षत्र इतने अनुकूल हो जाते हैं कि इसके तीसों दिन मानव के लिए लाभप्रद हो जाते हैं. प्रतिकूलताएं निष्प्रभावी हो जाती हैं, जिसकी वजह से अक्षय तृतीया को बिना किसी गणना के शुभकार्य संपादित किये जाते हैं. वैसे तो तृतीया तिथि को ललिता देवी की उपासना के माध्यम से व्रत का विधान नारदपुराण में महिलाओं के लिए किया गया है, लेकिन वैशाख की अक्षय तृतीया का व्रत-उपवास स्त्री-पुरुष दोनों के लिए लाभदायी कहा गया है.

प्राकृतिक शक्ति-संचय का महीना है वैशाख

मानव-जीवन ही नहीं, हर जीव-जंतु के लिए प्राण रूप में आहार की व्यवस्था प्रकृति ही करती है. इसके लिए ऊष्मा और जल की व्यवस्था पिता के रूप में आकाश करता है. सूर्य की परिक्रमा करती धरती वसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म में सूर्य के अति निकट हो जाती है, जिससे गर्मी बढ़ती है. वास्तविक रूप से देखा जाये, तो आने वाली ग्रीष्म ऋतु का सामना करने के लिए प्राकृतिक शक्ति-संचय का भी महीना वैशाख है.

सात्विक स्थिति में पहुंचना ही सत्ययुग का अवतरण

आध्यात्मिक दृष्टि से हर माह की पूर्णिमा के नक्षत्रों पर महीनों का नामकरण किया गया है. वैशाख की पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र का प्रभुत्व रहता है. विशाखा का शाब्दिक अर्थ शाखा-रहित है. जीवन की अनेकानेक शाखाओं से मुक्ति का अर्थ ही स्थितिप्रज्ञ की स्थिति है. जीवन में तामसिक प्रवृतियां का सर्वाधिक असर होता है. ये प्रवृत्तियां मन को स्थिर नहीं होने देती हैं. व्यक्ति ऐंद्रिक सुख की ओर भागता है. इससे लड़कर एवं राजस प्रवृत्तियों को पार कर सात्विक स्थिति में पहुंचना ही सत्ययुग का अवतरण है. इससे भी ऊपर चले जाना राम और कृष्ण के आदर्शों पर चलना स्वयमेव हो जायेगा.

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!