अक्षयवर दीक्षित : सरल साहित्यकार, जटिल जिनिगी

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लेखक – तैयब हुसैन पीड़ित, न्यू अजीमाबाद कॉलोनी, पो.- महेंद्रू, पटना-800006

जन्मतिथि – 2 जुलाई 1930,पुण्यतिथि – 13 जनवरी 2020

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार के ‘गोपालगंज’ भोजपुरी लेके कई क्षेत्र में श्रीगणेश करे वाला अनुमंडल (अब जिला) रहल बा। आजादी के लडाई में हुस्सेपुर के फतेहबहादुर शाही 1765 में अंग्रेजन के टैक्स देने से इनकार क के लगभग 23 बरिस तक गुरिल्ला युद्ध लड़लन आ आखिर-आखिर तक पकड़ल ना गइलन।

मीरगंज के ‘बड़वा गाँव’ में जनमल ‘सुंदरीबाई के नाच’ 1878 में अपना लोकप्रियता लेके अब तक के शोध में बिदेसिया-नृत्य-प्रदर्शनी के शुरुआती कदम मानल जाला। भिखारी ठाकुर के समकालीन बाकिर उमिर में बड़ रसूल अंसारी एही क्रम में ‘जिगना मजार टोला’ के रहे वाला 20वीं सदी के पूर्वाद्ध में ना खाली भिखारी से अलग गति नाटक आ प्रदर्शन से लोगन के दिल जितलन बलुक अपना बिद्रोही कला से तत्कालीन हथुआ-राज के कोप-भाजन बनलन आ मार्कुस लाइन (कोलकाता) में अंग्रेज बहादुर से अपना सीमा में टक्कर टक्कर लेलन।

ई गोपालगंज हऽ जहवाँ के चित्रगुप्त फिल्मी दुनिया में ‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब देश हुआ बेगाना…’ आदि के लोकप्रियता से अपना संगीत के सिक्का मनवइलन आ ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ऽइबो’ से भोजपुरी के पहिल फिल्म (1963) के पहिल संगीतकार बनने के गौरव हासिल कइलन।

ई सब भूमिका खाली एह खातिर कि कम लोग के मालूम होई कि ‘अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन’ नाम से संगठन बनाके सीवान में हिंदी साथे जवन पहिल अधिवेशन पंडित बलदेव उपाध्याय के अध्यक्षता में फरवरी 1947 में भोजपुरी के भइल रहे, ओह में संत कुमार वर्मा आ कुछ आउर लोगन का साथे जेकरा सक्रियता के इतिहास बा, ऊ रहीं पंडित अक्षयवर दीक्षित।

एतने ना, भोजपुरी के जवन दोसर महत्वपूर्ण अधिवेशन ओही साल दिसंबर 1947 में भइल, ओकर जगह (स्थल) गोपालगंज रहे आ अध्यक्ष रहीं महापंडित राहुल सांकृत्यायन। ई भोजपुरी के स्वतंत्र अधिवेशन रहे जवना में राहुल जी भोजपुरी के बढ़ावे खातिर एकरा अलग राज्य की मांग कइले रहीं आ भिखारी ठाकुर के ‘अनगढ़ हीरा’ कहिके लोगन में उनका कला के महत्व समुझवले रहीं।

एहू में ओह व्यक्तित्व के पुरहर हाथ रहे जेकर अक्षयवर दीक्षित नाम भोजपुरी खातिर परिचय के मोहताज नइखे। बाकी अफसोस का साथे कहे के पड़ऽता कि गोपालगंज के दीक्षितौली में 1930 के जनमल ई नक्षत्र 13 जनवरी, 2020 के सीवान में भौतिक रूप से अस्त हो गइल।

कहत चलीं की बाद में ‘साहित्य’ शब्द जोड़ के पाण्डेय कपिल जी के नेतृत्व में जवन ‘अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन’ बनल ओकरो डॉ. भागवतशरण उपाध्याय के अध्यक्षता में तीसरका अधिवेशन (1977) सीवान में एही मनई के स्वागताध्यक्षता में संपन्न भइल, जेकर ‘स्मारिका’ आजो मील के पत्थर मानल जाला। जी हँ, दीक्षित जी के दोसरका घर ‘भोजपुरी भवन’ जवन सीवान के निराला नगर में उनका ट्यूशन आ शिक्षण कार्य के मेहनत से बनल बा, उहाँ के प्राण-पखेरू उहँही उड़ल।

आज जब भारत में धार्मिक विद्वेष के वातावरण बनावल जा रहल बा, चारों ओर ‘नागरिकता संशोधन एक्ट’, ‘एनसीआर’ आ ‘एनपीआर’ लेके अराजकता के माहौल बा, कहल जरूरी बुझाता की स्वर्गीय अक्षयवर दीक्षित जी साहित्यकार आ शिक्षक का अलावे ‘विश्व हिंदू परिषद’ के सीवान जिलाध्यक्ष रहीं।

आ ई भोजपुरी के सेतु रहे कि 1978 में जब हम इस्लामिया कॉलेज, सीवान में हिंदी के प्राध्यापक बन के गइनीं त उहाँ के ओह घड़ी के कॉलेज प्रबंध समिति के सचिव रहल अहमद गनी साहब के एह खातिर बधाई दिहनीं। तब से छोट भाई नियन जवन प्रेम मिलल तवन अनेक संगठनन तक साथे रहके बिरोध आ समर्थन दूनों रूप में आखिर-आखिर तक चलल। जबकि हम तब राजनीतिक रूप से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहीं आ बादो में हमार विचारधारा मार्क्सवादी रहल।

हमहीं का? भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यस्तरीय नेता आ जनकवि कन्हैया जी साथे उहाँ के नेवता-हंकारी चले, दाँत काटी रोटी के संबंध रहे। बाकी हमनी में अलिखित समझौता रहे कि राजनीतिक आ धार्मिक भेद आपसी संबंध में कबो रोड़ा ना बने के चाहीं।

कहे के ना होई कि साथे खइला-पियला से लेके एक दोसरा के थरिया उठवला तक ई समझौता बनल रहल। मार्क्स के जयंती में शामिल होके उहाँ के भौतिकवादी दर्शन से रू-ब-रू भइलीं त हमरो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभा में उहाँ साथे जाके आपन बेबाक विचार देवे के मोका मिलल।

परस्पर धार्मिक आ सांस्कृतिक ज्ञान में इजाफा भइल, से अलग से। एगो अउर एकता के बिंदु रहे हमनी दूनों के बीचे आ ऊ रहे – दूनों के आपन मेहनत से अपना के खड़ा कइल, विकास कइल। निर्भीकता से गलत के विरोध कइल आ आखिर-आखिर तक एक-दोसरा के सहयोग से भोजपुरी के आगे बढ़ावल।

दीक्षित जी के पढ़ाई-लिखाई संस्कृत आ हिंदी लेके भइल रहे। उहाँ के संस्कृत में ‘शास्त्री’ आ हिंदी में ‘विशारद’ रहीं। पहिले उहाँ के वी. एम. हाई स्कूल, सीवान में कुछ दिन अस्थायी शिक्षक रहलीं। फेर 1955 से 1988 तक डी.ए.वी. उच्च विद्यालय, सीवान में संस्कृत आ हिंदी शिक्षक के स्थायी जगह पवलीं।

नोकरी में स्थायित्व मिलते उहां के भीतर के साहित्यकार सीवान से ‘आगमन’ नाम से एगो हिंदी मासिक पत्रिका 1954 से शुरू कइलक। ‘आगमन’ एह से कि ई सीवान से कवनो पत्रिका के पहिल आगमन रहे। फेर उहां के भोजपुरी का ओर ध्यान गइल आ ‘अङऊ’ (गद्य-पद्य संग्रह, 1977), ‘सतहवा’ (कहानी संग्रह, 1980), ‘भोजपुरी निबंध, 1991), ‘भोजपुरी के सपूत (व्यक्तिपरक निबंध संग्रह, 1992) आदि निकलल।

एह बीचे ‘सीमा संस्कृत सौरभम्’ (संस्कृत बाल साहित्य, 1989), आ ‘श्रद्धांजलि’ (हिंदी व्यक्तिपरक निबंध, 1990) आइल। एगो अउर काम, जे उहां के जरूरी समुझ के कइलीं, ऊ रहे फतेह बहादुर शाही प साहित्य लिख-लिखवा के उनका काम के अमर कइल। एह क्रम में डॉ. मैनेजर पाण्डेय बिहार से दिल्ली तक लेख भा भूमिका लिख के दबल पन्ना के फेर से खोलनीं।

दीक्षित जी ‘भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम वीर नायक’ (2007) आ ‘और कंपनी कांपती रही’ (उपन्यास, 2009) हिंदी में लिख के एके आगे बढ़ऽवलीं आ सुरेश कांटक से भोजपुरी, तैयब हुसैन से हिंदी में मंचीय नाटक लिखवा के तब विराम लेनीं। पार्षद केदार पाण्डेय जी के सहजोग से सरकारी खरच प गोपालगंज में शाही जी के मूर्ति स्थापित करे के भी प्रयास भइल रहे।

एह मौलिक लेखन के अलावे लगभग आधा दर्जन पुस्तक के खुदसर संपादन आ एक दर्जन के करीब पत्रिकन-पुस्तकन के संपादन सहयोगी रहके भी दीक्षित जी हिंदी-भोजपुरी साहित्य के झोरी भरले बानीं। उहां के प्रतिज्ञा रहे कि हर साल कम से कम एगो किताब उनका कलम के अवदान बनके सामने आवो बाकी सबकुछ केकर सोचल पूरा भइल हऽ?

अइसहीं स्वागत मंत्री, स्वागताध्यक्ष से लेके जिला से अखिल भारतीय स्तर के सचिव आ अध्यक्ष-पद, हिंदी-भोजपुरी में उनकर सांगठिक अवदान रहल बाकिर तमाम समीकरण आ अपेक्षित योग्यता के बादो विश्व भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के ‘सेतु सम्मान’ आ ‘अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन’ के अध्यक्ष पद ना मिलल एगो सवाल बा।

एही तर्ज प गैर सरकारी सम्मान त खूब मिलल बाकि उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से ‘भोजपुरी निबंध’ प मात्र पाँच हजार आ ‘बिहार राजभाषा विभाग’ से पचास हजार के ‘भिखारी ठाकुर पुरस्कार’ उनका परिश्रम के ईनाम रहल।

उनका प सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ अपना पत्रिका के विशेषांक निकाल के आ एह पंक्तियन के लेखक के संपादन में ‘अजब’ नामक सर्वश्री जगत नारायण सिंह ब्रजभूषण तिवारी साथे पुस्तक प्रकाशित क के उनका साहित्यिक योगदान के सँकारे की कोशिश भइल बा, जवन गोपालगंज में कवनो साहित्यिक आयोजन के पर्याय समुझल जात रहे।

थोड़ा में ‘अजब’ के ‘अ’ के व्यक्तित्व सांगठनिक रचना संसार लेके संस्कृत, हिंदी आ भोजपुरी के संगम रहल बा। बाकि जइसे संस्कृत के पंडित तुलसीदास आ विद्यापति आज आपन लोकभाषाई रचना लेके अमर बाड़न, ओसहीं स्व. अक्षयवर दीक्षित साथे भोजपुरी के संबंध सुभाविक जुड़ाव लेले जनाला।
कान में बाल, लमछर देंहि, धोती-कुर्ता आ बंडी साथे उनकर व्यक्तित्व सहजे भोजपुरिया लागत रहे। आँख में मोतियाबिंद फेर अपरेशन के बाद असाध्य नेत्र-रोग ‘रेटिनल डिटेचमेंट’ भइला के बादो उनकर हिम्मत आखिर-आखिर तक हम हारल ना देखलीं।

अपना काल से प्रभावित दीक्षित जी के रचना-संसार महावीर प्रसाद द्विवेदी के अभिधात्मक शैली के आसपास घूमत रहल बा। ऊ चाहे व्यक्तित्व होखे, घटना भा विचार, आदर्शवादिता उनका सोच के हिस्सा रहल बा। सुभाविक छंदबद्ध कविता रचल, आदर्शोन्मुख कहानी लिखल आ लोकप्रिय राजनीतिक नेता गाँधी, नेहरू, जयप्रकाश नारायण आदि के नमूना मानल दीक्षित जी के सीमा रहल बा।

हँ, संगठिक संस्था के अध्यक्ष पद से उनकर भाषण जरूर विचारात्मक, विश्लेषणात्मक आ अनुभव क्षमता के परिचय बुझाई। कह सकीले सरल साहित्यकार के समझ अपना समय के आमलोग के सोच होला, जवन चीजन के मूल्यांकन ओकरा लोकप्रियता आ बहुमत के आधार प करेला।

अइसन व्यक्तित्व बाहर समादृत होइयो के कब्बो-कब्बो पारिवारिक अवमूल्यन के शिकार सहजे हो जाला। ना त मुफ्त में टियुशन ना पढ़वला खातिर अपना विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्य से रार आ स्थानीय सांसद से तकरार में जीत हासिल करे वाला दीक्षित जी अपना घर में पराजय के अनुभव ना करतीं। बाकी एह से का?

 

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