अमेरीका महामारी से उबरने के लिए कदम उठा रहा है,कैसे?

अमेरीका महामारी से उबरने के लिए कदम उठा रहा है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिका में चुनावी साल (राष्ट्रपति चुनाव) के किसी भी अन्य महीने की तरह मार्च, 2020 की शुरुआत हुई थी। ज्यादातर अमेरिकी इस महीने की अपनी दो पसंदीदा गतिविधियों में मग्न थे। पहली, 3 मार्च के ‘सुपर ट्यूजडे’ (इस मंगलवार को यहां के ज्यादातर राज्य अपनी प्राइमरी का चुनाव करते हैं) पर नजर बनाए रखना और दूसरी, कॉलेज बास्केट बॉल के मौजूदा सीजन के आखिरी मैचों का लुत्फ उठाना। भले ही इटली और स्पेन से कोविड-19 के कारण हो रही मौतें रोजाना खबरों में आ रही थीं, लेकिन यहां इस महामारी को आम जनमानस कोई खतरा नहीं मान रहा था।

मगर जल्द ही हालात बदल गए। कोरोना वायरस के तेज प्रसार को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 13 मार्च को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की। फिर भी, इस मुल्क की क्या दशा हुई, इसे देश-दुनिया ने देखा। अगले 12 महीनों में अमेरिका लगभग तबाह हो गया। कोविड-19 ने 5.5 लाख से अधिक अमेरिकियों का जीवन छीन लिया और इसकी कुल आबादी का दसवां हिस्सा अब तक संक्रमित हो चुका है। इसने काफी आर्थिक चोट भी पहुंचाई। जब कोरोना चरम पर था, तब कुछ ही हफ्तों में लाखों अमेरिकियों ने अपनी नौकरी गंवाई और बेरोजगारी दर लगभग 15 फीसदी पर पहुंच गई। ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के मुताबिक, एक तिहाई वयस्क अमेरिकियों को पिछले साल बिल भुगतान में दिक्कतें आईं।

कोरोना की वजह से अमेरिका का यह पतन पूरी दुनिया को प्रभावित कर गया, क्योंकि यह राष्ट्र वैश्विक अर्थव्यवस्था का अगुवा है। उत्तरी अमेरिका में तो उत्पादों के आयात-निर्यात का कारोबार 2019 की तुलना में 20 फीसदी से अधिक घट गया। अब कोविड-19 की पहली बरसी के बाद समाज वैज्ञानिक, डॉक्टर और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशषेज्ञ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अपनी स्वास्थ्य सेवाओं पर दुनिया भर में सबसे अधिक खर्च करने वाला अमेरिका आखिर कोरोना से इस कदर कैसे बर्बाद हो गया, जबकि इससे कम विकसित देश महामारी से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुए? और क्या इसका इस तथ्य से वाकई कोई संबंध है कि विकासशील देशों में लोग साफ-सफाई को लेकर कुछ कम संजीदा रहते हैं, जिसके कारण कोविड-19 के खिलाफ उन्होंने प्रतिरोधक क्षमता तैयार कर ली थी?

इन सवालों के ठीक-ठीक जवाब तो हमें शायद वर्षों बाद मिलें, लेकिन जो हम आज जानते हैं, वह यही है कि उच्चतम स्तर पर नेतृत्व की विफलता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की दशकों से उपेक्षा अमेरिका पर भारी पड़ गई। ज्यादा संभावना तो इसी बात की है कि अगर ‘ओवल ऑफिस’ (राष्ट्रपति कार्यालय) में डोनाल्ड ट्रंप के अलावा कोई दूसरा शख्स होता, तो संभवत: महामारी का यूं प्रसार न होता। जब संक्रमण बढ़ना शुरू हुआ था, तब ट्रंप दोबारा चुनाव लड़ने की तैयारियों में व्यस्त थे, जबकि 2020 की शुरुआत में ही जैसे-तैसे वह महाभियोग से बच पाए थे। वह उस अर्थव्यवस्था के आधार पर जनादेश हासिल करना चाहते थे, जिसे साल 2018 में बडे़ पैमाने पर की गई कर कटौती के रूप में वह ‘स्टेरॉयड’ दे चुके थे।

कर छूट से कुछ हद तक अमेरिकियों को जरूर लाभ मिला था, लेकिन इसका फायदा असमान रूप से अमीरों ने उठाया। यहां तक कि पश्चिमी यूरोप में कोरोना के कहर को देखने के बावजूद ट्रंप ने इसको कमतर आंका और दोबारा चयन की अपनी राह का इसे रोड़ा मानते रहे। महामारी के खिलाफ ओबामा-काल की सुरक्षा रणनीतियों को बेमानी साबित करने के लिए भी ट्रंप प्रशासन ने कोरोना के प्रबंधन को लेकर उदासीन रुख अपनाया। अमेरिका की तबाही का दूसरा कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का कमजोर होना है।

दशकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में निरंतर प्रगति और लगातार बढ़ती जीवन प्रत्याशा से अमेरिकियों को यह विश्वास हो चला था कि महामारियां अब अतीत की बातें हो गई हैं। यहां स्वास्थ्य सेवाओं के बंटवारे में भारी असमानताएं हैं, जो नस्ल व आय से बुरी तरह गुंथी हुई हैं। आलम यह है कि अल्पसंख्यक व गरीब अमेरिकी आज भी बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से दूर हैं। इसी कारण कोविड-19 ने इन वर्गों को ज्यादा प्रभावित किया। ‘सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन’ ने बताया है कि असमानता, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, व्यवसाय, शिक्षा में अंतर, आमदनी और संपन्नता जैसे कारकों ने नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यक समूहों के कोरोना से बीमार होने व मौत के खतरे को बढ़ाने में योगदान दिया। विडंबना यह है कि अमेरिका का चरित्र उग्र-व्यक्तिवाद और आला हुक्मरानों व केंद्रीय प्रतिष्ठानों की नाफरमानी के रूप में परिभाषित है।

इसी कारण अमेरिकी समाज के एक बड़े वर्ग ने मास्क पहनने, शारीरिक दूरी का पालन करने और भीड़ से बचने जैसे एहतियाती उपायों को अपनाने से इनकार कर दिया। यहां तक कि फ्लोरिडा व टेक्सास जैसे राज्यों के गवर्नर अपने-अपने इलाकों में महामारी के प्रसार के बावजूद इसे अनदेखा करते रहे। हालांकि, इन सबके बीच कुछ अच्छी खबरें भी आईं। कोविड टीका बनाने में यह देश सबसे आगे रहा, और अब तक 20 फीसदी से भी अधिक अमेरिकियों को टीके की कम से कम एक खुराक तो मिल ही चुकी है। एक अन्य खुशखबरी यह है कि अमेरिका का नेतृत्व अब एक ऐसे राष्ट्रपति कर रहे हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेते हैं और महामारी के आर्थिक प्रभाव को भी बखूबी समझते हैं।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका हर रोज टीके की औसतन 24 लाख खुराक लोगों को लगा रहा है। इसी तरह, आर्थिक मोर्चे पर बाइडन ने 19 खरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज जारी किए हैं। यह राशि सीधे तौर पर कामगारों, छोटे व्यापारियों और सामाजिक व आर्थिक रूप से वंचित अल्पसंख्यकों की जेब में जाने वाली है। बेशक आज भी बहुत काम होने शेष हैं, लेकिन अब एकजुटता से प्रयास हो रहे हैं, जो पिछले राष्ट्रपति के समय राष्ट्रीय स्तर पर नहीं दिखे थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज भी हालात अच्छे नहीं हैं, लेकिन अब उम्मीद नजर आने लगी है। महत्वपूर्ण यह भी है कि प्रशासन इस दिशा में खासा संवेदनशील है और इस महामारी से उबरने के लिए हरसंभव जरूरी कदम उठा रहा है। यह मौजूदा वक्त की सबसे जरूरी मांग थी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!