….और….कथा के बाद…..!

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कथा का एक हीं मर्म है…धर्महित …राष्ट्रहित …

कथा आयोजकों का हृदय से साधुवाद!

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

….आखिर राम-कथा समाप्ति के बाद क्या? कथा सुनने के बाद ..सो जाना या जगना? रामचरितमानस जैसा महाग्रंथ एवं राम जैसे धीरोदात्त नायक वाली सभ्यता सिकुड़नी चाहिए या ..व्यापक होनी चाहिए? जिस विचार एवं सभ्यता के मूल में सर्वधर्म समभाव, वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सर्वे भवंतु सुखिन: जैसे आर्ष वचन हो…उस विचार, उस सभ्यता को तो पूरी दुनियां में छा जानी चाहिए थी। जो राम …अपने विरोधियों को भी अपने से छोटा नहीं होने देते, जो मर्यादा के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान हैं, उन्हे तो मानव समाज का सिरमौर होना चाहिए।
…अगर ऐसा नहीं है तो इसका मतलब …सर्वसमाज अभी भीतर से राममय नहीं हुआ है। कथा के बाद …सर्वजन अपने भीतर राम तत्व को महसूस करे, ऐसी आशा है।
समाज पुरूषार्थी बने। अपने बच्चे-बच्चियों को धर्म पर अडिग रहकर आगे बढ़ने में सहायता करे।
परिवार, समाज एवं राष्ट्र और ज्यादा संगठित होने की प्रक्रिया में लगे। यदि समाज संगठित होता तो….भारतीय सभ्यता के केन्द्र… सिंध…. में आज राजा दाहिर की विशाल प्रतिमा होती। भगवान राम के बेटे लव की नगरी लाहौर….. हमारा होता। कलकत्ता और नोआखाली में नरसंहार नहीं हुआ होता। जिन्होंने हमारे सिख गुरूओं को दिवाल में चुनवा दिया, धोखे से उनके शीश धड़ से अलग किए. पंजाब को रक्तरंजित किया….और सबसे बढ़कर श्रीराम के देश को टुकड़ों में बांटा…वे आज देश की अखंडता को आंखे नहीं दिखा रहे होते। …ऋषि कश्यप की धरती ….कश्मीर…में हमारा वाल्मिकी समाज लगभग सत्तर सालों तक…सिर पर मैला नहीं ढोता।

नॉर्थ ईस्ट …की पहचान….एथनिक वॉयलेंस ….नहीं होती..। मणिपुर में एक झटके में 60 से अधिक लोग हिंसा की भेंट नहीं चढ़ते..।…देवियों के देश में ‘केरला-स्टोरी’ …जैसी भयावह …घटना नहीं होती।भारतीय विद्यालय, विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले जज, कलक्टर, ईंजीनियर या प्रोफेसर राम के देश में ..राम के हीं अस्तित्व पर प्रश्न नहीं खड़ा करते। रामकथा के विभिन्न प्रसंगों की संगीतमय प्रस्तुति देखकर भक्तिभाव में विभोर झूमती कुछ माताओं के कुछ नवपढ़ाकू लाडले या लाडली किसी …यूनिवर्सिटी में भारत को टुकड़े करने की बात स्वप्न में भी नहीं करते। भारत ढाई मोर्चों पर नहीं लड़ रहा होता।

कथा का एक हीं मर्म है…धर्महित …राष्ट्रहित …

भारतीय विचार मंडली एकजुट हों। एक स्वर बनें। यदि किसी शहर में कोई उपद्रवी भीड़ …अचानक से राष्ट्र की सम्पत्ति को जलाने चल पड़े, शहर को हिंसा की आग में झोंकर या सभ्य समाज का मार्ग रोककर जीवन की शांति एवं प्रगति में बाधा बने ..तो इस हिंसक भीड़ के उत्तर में ..एक स्वत:स्फूर्त राष्ट्र रक्षक भीड़ इकट्ठी हो जाए। …जैसे राक्षसों की भीड़ के सामने श्रीराम घोष के साथ संगठित वानरदल।
पुलिस, सेना देश की रक्षा करती है। राष्ट्र-रक्षा पुरूषार्थी समाज करता है।
कथा के बाद हर परिवार अपने-अपने बच्चों को प्रत्येक दिन मानस का कम से कम एक प्रसंग जरूर बताए। स्कूल के शिक्षक …पठन-पाठन के दौरान..छात्र-छात्राओं के बीच राम के शीलगुण की चर्चा करे।

हर गांव ..में हनुमान जी या श्रीराम की एक विशाल प्रतिमा वाला मंदिर निर्माण की योजना बने। प्रतिमा से वीरत्व झलके। गांव ….के हर जाति या समूह..अपने घर, पट्टीदार की समस्या को अपने स्तर पर सुलझा कर ..गांव के मंदिर परिसर में सप्ताह में कम-से-कम एक दिन एक साथ इकट्ठा होकर सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ करे…और बच्चों में हनुमान जी जैसा कर्तव्य बोध विकसित करे। मंदिर के आय से हर गांव में एक पाठशाला खुले। शिक्षा के केन्द्र में वैग्यानिक सोच के साथ राष्ट्रभक्ति हो। यह राष्ट्रीय पहल सिवान से हो।
यदि …यह प्रक्रिया आज से शुरू की जाए तो.. तीस साल बाद हीं इसका परिणाम निकलेगा। …लेकिन श्रीराम एवं हनुमान से प्रेरित भारत …हमेशा-हमेशा के लिए जग जाएगा। कथा का अभीष्ट तभी पूर्ण होगा।

जय श्रीराम!

 

 

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