भक्ति, भुक्ति और मुक्ति के लिए होते हैं भगवदवतार – परमाराध्य जगद्गुरु शङ्कराचार्य

भक्ति, भुक्ति और मुक्ति के लिए होते हैं भगवदवतार – परमाराध्य जगद्गुरु शङ्कराचार्य

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी

वाराणसी / भगवान् के अवतार के अनेक प्रयोजन बताए जाते हैं। भगवद्गीता कहती है धर्म की ग्लानि होने पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवदवतार होते हैं तो वहीं अनेक पुराणों से यह पता चलता है कि प्राणियों पर कृपा करने के लिए अवतरण होता है। कुछ लोग कहते है कि भगवदवतार इसी एक कारण से हुआ ऐसा स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। परन्तु यदि समेकित दृष्टिकोण से देखें तो श्रीमद्भागवत कहती है कि भक्ति, भुक्ति और मुक्ति के लिए भगवदवतार समय-समय पर होते रहते हैं।

उक्त उद्गार परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती 1008 ने कोरोनाकाल में काल कवलित असंख्य जीवात्माओं के लिए काशी के श्रीविद्यामठ में आयोजित मुक्ति कथा के अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि भगवान् ने अवतार धारण करके अपने भक्तों की भक्ति को परिपूर्ण किया। भुक्ति अर्थात् ऐश्वर्य प्रदान किया और अनेक मनुष्यों, असुरों आदि को मुक्ति प्रदान की।

जन्म लेते ही पूतना को मुक्त किया। इसके बाद धनुकासुर, प्रलम्बासुर, शकटासुर, तृणावर्त आदि अनेक को सद्गति प्रदान की। कारागार के बन्धन से अपने माता पिता को और 16,100 रानियों को मुक्त किया। गोपियों के हृदय में अनन्य भक्ति प्रदान करके उनको भी मुक्त किया। जो जिस भाव से भगवान् का भजन करता है उसी भाव को स्वीकार करके भगवान् उन सबको मुक्त कर देते है।

आगे कहा कि भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म वसुदेव के यहाँ हुआ और नन्द जी के घर में आनन्द मनाया गया। वसुदेव जी के घर भगवान् आए फिर भी उन्होंने सांसारिक भय के कारण भगवान् को अपने से दूर कर दिया और नन्द जी के घर माया ने जन्म लिया था तो माया उनसे दूर हुई तो भगवान् उनके पास आ गये।

उन्होंने वंशीनाद की व्याख्या करते हुए कहा कि वंशी का उलटा कर दो तो शिवं होता है और शिव का अर्थ है कल्याण। वंशीनाद सुनने पर स्वतः ही प्रत्याहार हो जाता है क्योंकि सब विषयों से मन हटकर केवल एक भगवान् में चला जाता है।

शङ्कराचार्य जी ने भगवती गंगा की कथा सुनाते हुए कहा कि इस देश में सबसे बड़ा सम्मान माता गंगा को चक्रवर्ती सम्राट् भगीरथ ने शंख बजाकर उसकी अगवानी करते हुए दिया था। आज के शासकों को गंगा के उसी सम्मान को बनाए रखने दिशा में आगे बढना चाहिए।

*महालया के दिन होगा असंख्य जीवात्माओं के लिए श्राद्ध-तर्पण*

परमाराध्य शङ्कराचार्य जी के आदेशानुसार काशी के वैदिक पण्डितों के द्वारा केदार क्षेत्र में स्थित शङ्कराचार्य घाट पर कोरोनाकाल में काल कवलित असंख्य जीवात्माओं की सद्गति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कृत्य का आयोजन किया जाएगा।उक्त जानकारी परमाराध्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय के माध्यम से प्राप्त हुई है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!