भोजपुरी के पुरोधा लोककवि भिखारी ठाकुर
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोककवि भिखारी ठाकुर खाली भोजपुरिये ना बलुक पूरा विश्व साहित्य के भी लोककवि आ नाटककार बानी. सांच कहल जाए त उहाँ के विश्व साहित्य के कोहिनूर हई. जे तरे खाली पुरुब से निकले के चलते सुरुज देव के खाली पुरुब के नाही कहल जा सकत बा ओही तरे भिखारी ठाकुर के खाली भोजपुरी के कहल उहाँ के साथे न्याय ना होई.
भिखारी ठाकुर के बिदेसिया के समूचा उत्तर प्रदेश, बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि प्रदेशन के अलावे देश विदेश के कई मुल्कन में खूब गावल- सुनल जाला. भारत के स्वतंत्रता सत्याग्रहों में बिदेसिया प्रेरणा गीत बनकर अमर हो गइल.
भिखारी के जानल-मानल नाटकन में विदेशिया के अलावा बेटी-वियोग, गबरघिचोर, भाई-विरोध, गंगा-स्नान, विधवा-विलाप, पुत्रा-वध, कलियुग-प्रेम, राधेश्याम बहार, बिरहा-बहार जइसन नाम शामिल बा. ई नाटकन में भिखारी ठाकुर ओह समय के समाज में फइलल बुराई पऽ चोट कइले बाड़े. ना के बराबर पढ़ल-लिखल भिखारी नारी के मन के दरद, अंधविश्वास आ मजूरन के हक के सवाल के बिना कवनो नारेबाजी के आपन नाटकन में पिरोवत चल गइले.
ओह दौर के समीक्षा कइला पऽ बुझा जाला कि आजु के ‘नारी अउर दलित विमर्श सौ बरिस पहिले के लिखल भिखारी के नाटकन में शामिल रहे. बेटी-वियोग आ बेटी-बेचवा नाटक बहुत हद ले छोटबेटिन के बूढ़ मदर के हाथ में सउंपे से रोकलस. एह तरह से भिखारी ठाकुर एगो जन गीतकार-नाटककार-कलाकार आ एगो निर्देशक के रूप में सांस्कृतिक आन्दोलन के नायक बन गइल रहले.
#भिखारी ठाकुर लोकगीत, लोकनाट्य के संभवतः पहिला बेर एतना जोरदार आ दमदार तेवर के साथे रचलन कि उच्च-संभ्रांत वर्ग खातिर ओकरा के अनसुना कइल सम्भव ना रहल. आम आदमी के दरद, अभाव, संघर्ष, आशा अउर अपेक्षा सब भिखारी ठाकुर के माध्यम से आंदोलन के कर्णधार नेतवन तक पहुँचल. उहाँ के सामाजिक समरसता के अग्रदूत भी माने के होई. उहाँ के राजनीती से सीधे-सीधे ना जुड़ला के बादो ओकरा के प्रभावित करे में कामयाब भइलीं.
भोजपुरिया माटी के ‘अनगढ़ हीरा’ भिखारी ठाकुर जी के जयंती के खास मौका पर कोटि कोटि नमन !


