बीजेपी की बेशर्मी और मर्यादा का पतन: विजय शाह प्रकरण में खुला नकाब

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

 

मध्य प्रदेश के जनजातीय मामलों के मंत्री कुंवर विजय शाह के कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए गए आपत्तिजनक और सांप्रदायिक बयान ने न केवल उनकी संकीर्ण मानसिकता को उजागर किया है, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की दोहरी चरित्र और नैतिक पतन को भी सामने ला दिया है। जबलपुर हाई कोर्ट ने डीजीपी को आदेश दिया कि शाह के खिलाफ धारा 152, 196(1)(B), और 197 BNS के तहत आज शाम तक FIR दर्ज की जाए, और यदि ऐसा नहीं हुआ तो डीजीपी को कल कोर्ट में जवाब देना होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ेगी, जैसा कि वह हमेशा करती आई है?

 

विजय शाह का घिनौना बयान
विजय शाह ने मध्य प्रदेश के महू में एक कार्यक्रम के दौरान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र करते हुए कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि “पहलगाम हमले के जिम्मेदार लोगों को उनकी ही बहन (उनकी समाज की बहन) के जरिए सबक सिखाया गया।” यह बयान न केवल सांप्रदायिक और लैंगिक रूप से आपत्तिजनक है, बल्कि यह भारतीय सेना की एक सम्मानित महिला अधिकारी के प्रति घोर अपमान है, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में अहम भूमिका निभाई। शाह का यह बयान उनकी संकीर्ण और विभाजनकारी मानसिकता का परिचायक है, जो बीजेपी के मूल चरित्र को दर्शाता है।

बीजेपी का ढोंग और डैमेज कंट्रोल
शाह के बयान के बाद जब देशभर में आक्रोश फैला, तो बीजेपी ने अपनी पुरानी रणनीति अपनाई—डैमेज कंट्रोल। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने शाह को तलब किया और बंद कमरे में मुलाकात के बाद शाह ने माफी मांगी। उन्होंने दावा किया कि उनके बयान को “गलत संदर्भ” में लिया गया और कर्नल सोफिया “देश की बेटी” हैं। लेकिन यह माफी कितनी खोखली थी, यह तब साफ हुआ जब शाह ने माफी मांगने के बाद ठहाके लगाए, जैसे कि यह कोई मजाक हो। क्या बीजेपी के लिए देश की बेटी का अपमान मजाक है?
बीजेपी नेताओं ने कर्नल सोफिया के छतरपुर स्थित घर पर जाकर उनके परिवार से मुलाकात की और उन्हें “देश की बेटी” बताया। लेकिन यह सब दिखावा क्यों? अगर बीजेपी वाकई कर्नल सोफिया का सम्मान करती, तो शाह को तत्काल मंत्रिमंडल से बर्खास्त क्यों नहीं किया गया? बी पॉलिटिकल डायनामिक्स के मुताबिक, बीजेपी ने सिर्फ अपनी छवि बचाने की कोशिश की, न कि नैतिकता दिखाई।

बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति
विजय शाह का बयान कोई अकेली घटना नहीं है। यह बीजेपी की उस सांप्रदायिक और महिला-विरोधी मानसिकता का हिस्सा है, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बेनकाब किया। खड़गे ने कहा, “बीजेपी-आरएसएस की मानसिकता हमेशा से महिलाओं के खिलाफ रही है। पहले पहलगाम हमले में शहीद नौसेना अधिकारी की पत्नी को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया, फिर विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बेटी को परेशान किया गया, और अब कर्नल सोफिया पर यह घिनौना हमला।” यह सिलसिला बीजेपी की उस नीति को दर्शाता है, जो नफरत और विभाजन को बढ़ावा देती है।
शाह का यह बयान सिर्फ एक व्यक्ति की गलती नहीं, बल्कि बीजेपी की उस विचारधारा का परिणाम है, जो समाज को धर्म और लिंग के आधार पर बांटती है। क्या यह संयोग है कि बीजेपी के नेता बार-बार ऐसी टिप्पणियां करते हैं, और फिर माफी मांगकर बच निकलते हैं? 2013 में शाह को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन बाद में उन्हें बहाल कर लिया गया। क्या बीजेपी ऐसे नेताओं को संरक्षण देती है क्योंकि वे उनकी सांप्रदायिक एजेंडे को मजबूत करते हैं?

कांग्रेस का आक्रामक रुख
कांग्रेस ने इस मामले में बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया है। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने शाह की बर्खास्तगी की मांग की और कहा, “मुख्यमंत्री मोहन यादव को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या उनका मंत्रिमंडल और बीजेपी शाह के बयान का समर्थन करते हैं।” कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने भी शाह को मंत्रिमंडल से हटाने और बीजेपी से माफी की मांग की। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने शाह के खिलाफ भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में FIR दर्ज करने की कोशिश की, और इंदौर में कर्नल सोफिया और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के पोस्टर का दूध से अभिषेक किया। यह दिखाता है कि कांग्रेस इस मामले को लेकर कितनी गंभीर है, जबकि बीजेपी सिर्फ लीपापोती में लगी है।

बीजेपी की चुप्पी और जवाबदेही का अभाव
हाई कोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद, बीजेपी की चुप्पी सवाल उठाती है। क्या बीजेपी शाह को बचाने की कोशिश कर रही है? अगर पार्टी वाकई कर्नल सोफिया का सम्मान करती, तो अब तक शाह को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया होता। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने शाह के बयान को “गलत और मूर्खतापूर्ण” बताया, लेकिन क्या यह काफी है? बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा—की चुप्पी इस मामले में उनकी सहमति को दर्शाती है।

बीजेपी का असली चेहरा
विजय शाह का बयान और बीजेपी की प्रतिक्रिया यह साबित करती है कि पार्टी के लिए सत्ता और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नैतिकता और मर्यादा से ऊपर है। एक तरफ बीजेपी देशभक्ति और सेना के सम्मान की बात करती है, दूसरी तरफ उसके नेता सेना की वीरांगना का अपमान करते हैं। यह वही बीजेपी है, जो नोटबंदी, जीएसटी, और हिंदुत्व के नाम पर सामाजिक तनाव बढ़ाती रही है।
हाई कोर्ट का आदेश बीजेपी के लिए एक चेतावनी है, लेकिन असली सजा जनता को देनी होगी। विजय शाह जैसे नेताओं को संरक्षण देने वाली बीजेपी को जनता सबक सिखाएगी। यह समय है कि देश की जनता बीजेपी की नफरत और विभाजन की राजनीति को खारिज करे और एकजुट होकर कर्नल सोफिया जैसे सच्चे देशभक्तों का सम्मान करे।
क्या बीजेपी अब भी चुप रहेगी, या देश की बेटी का अपमान करने वालों को सजा देगी? समय बताएगा।

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