सीबीआइ पर राज्यों की राजनीति के आगे केंद्र बेबस,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश के अलग-अलग हिस्सों से कई मामलों में सीबीआइ जांच की मांग अक्सर उठती है। राज्य पुलिस के बजाय सीबीआइ विश्वसनीय मानी जाती है। दूसरी सच्चाई यह है कि कई मामलों में सीबीआइ दुरुपयोग पर सवाल खड़े होते रहे हैं। खुद सुप्रीम कोर्ट इसे सरकार का तोता बता चुका है। लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या राजनीतिक आड़ में राज्यों को यह छूट दी जा सकती है कि वह सीबीआइ जांच का सिरे से विरोध करें।

सीबीआइ जांच के लिए सामान्य सहमति वापस ले चुके हैं गैर भाजपा शासित आठ राज्य

यह सवाल इसलिए लाजिमी है, क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री की सीबीआइ जांच का राज्य सरकार की ओर से किए जा रहे विरोध पर एक तरह से आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि क्या कोई राज्य अपने ही मंत्री के खिलाफ जांच की अनुमति देगा। फिलहाल गैर भाजपा शासित आठ राज्यों में सीबीआइ जांच के लिए जनरल कंसेंट वापस ले ली गई है। सीबीआइ को शक्ति देने के लिए कानून में संशोधन को लेकर संघीय व्यवस्था के चलते द्वंद्व की स्थिति है। पहले भी राज्य बिना सहमति के सीबीआइ जांच का विरोध करते रहे हैं। हालांकि, पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की सहमति के बगैर भी सीबीआइ जांच के लिए रास्ता खोला था।

सीबीआइ को राज्यों में जांच की अनुमति देने के लिए करना होगा संविधान में संशोधन

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीबीआइ राज्य की सहमति के बगैर भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच कर सकती है। राज्यों के सहमति वापस लेने से सीबीआइ वहां जांच नहीं कर सकती। केंद्र के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जिससे वह राज्यों में सीबीआइ को जांच करने का आदेश दे सके। इस पर वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी कहते हैं कि केंद्र को शक्ति देने के लिए दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टैब्लिशमेंट एक्ट में संशोधन करना पड़ेगा या संविधान में संशोधन करना होगा। वैसे संघीय ढांचे के आधार पर संविधान संशोधन को भी चुनौती दी जा सकती है। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसआर सिंह लंबे समय से सीबीआइ के दुरुपयोग की बात कहते हैं।

उनका कहना है कि राज्य मानते हैं कि सीबीआइ का दुरुपयोग होता है। केंद्र को सीबीआइ को शक्ति देने के लिए कानून में संशोधन करके गाइडलाइन तय करनी होगी कि सीबीआइ किस तरह के मामलों में राज्यों की सहमति के बगैर जांच कर सकती है।

वरिष्ठ वकील पवनी महालक्ष्मी का भी मानना है कि राज्य में घटित संदिग्ध घटनाओं या रिश्वतखोरी, उगाही अथवा हिरासत में मौत जैसे मामलों की जांच का पूरा अधिकार सीबीआइ के पास होना चाहिए। हालांकि वह सीबीआइ को जवाबदेह बनाए जाने की भी बात करती हैं, ताकि वह निष्पक्ष और स्वतंत्र होकर काम करे। लेकिन वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह साफ कहते हैं कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। सीबीआइ केंद्रीय एजेंसी है और राज्यों की सहमति के बगैर वह जांच नहीं कर सकती। वकील डीके गर्ग केंद्र को और शक्ति देने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि केंद्र को शक्ति देने वाला कानून बनाना राज्यों के हित में नहीं होगा।

पुलिस सुधार के पक्ष में नहीं कोई दल

वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन कहते हैं कि कोई भी राजनीतिक दल पुलिस सुधार नहीं करना चाहता, क्योंकि वह पुलिस अधिकारी को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है। राज्य सीबीआइ जांच की सहमति वापस ले रहे हैं, क्योंकि सीबीआइ स्वतंत्र होकर काम नहीं करती। राज्यों में भी पुलिस स्वतंत्र होकर काम नहीं करती। केंद्र में भी केंद्रीय बल स्वतंत्र होकर काम नहीं करते। यह दुखद पहलू है।

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