राहुल की सक्रियता के बिना भी हिमाचल जीती कांग्रेस,कैसे ?

राहुल की सक्रियता के बिना भी हिमाचल जीती कांग्रेस,कैसे ?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 भाजपा गुजरात में और कांग्रेस हिमाचल में जीत गई। जबकि दिल्ली में हारने के बावजूद भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा। तो हम कुल-मिलाकर इन चुनाव परिणामों का क्या सार निकालें? सबसे पहले गुजरात की बात करें। आम आदमी पार्टी ने वहां चाहे जैसा प्रदर्शन किया हो, मानकर चलें अगले चुनावों में वह सबसे बड़ा विपक्षी दल बनकर वहां उभरेगी।

अगर आप ऐतिहासिक रूप से देखें तो पाएंगे कि ‘आप’ एक बार किसी क्षेत्र में पांव जमाती है तो उसके बाद वहां तेजी से आगे बढ़ती है। सामान्यतया वह वैसा कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाकर करती है। ‘आप’ की एक और खूबी यह है कि वह भाजपा के विरुद्ध उठने वाले असंतोष के स्वरों को अच्छी तरह से भांप लेती है और उनका अपने पक्ष में दोहन करती है।

दूसरी तरफ, गुजरात में भाजपा की बड़ी जीत के बावजूद ‘आप’ उसके लिए एक खतरे की घंटी है। इस बार भाजपा की जीत के दो मुख्य कारण थे। एक, पाटीदारों का बड़ा समर्थन। हार्दिक पटेल को पार्टी में शामिल करते समय भाजपा इंदिरा गांधी के उस सिद्धांत का ही पालन कर रही थी कि एक साथ सभी को अपने खिलाफ मत करो।

दूसरा कारण था, ‘आप’ के द्वारा भाजपा-विरोधी वोटों को तोड़ना। इसका यह भी मतलब है कि भाजपा को बड़ी जीत एक बाहरी ताकत की मदद से मिली है। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो उसे गुजरात में स्वयं को अप्रासंगिक मान लेना चाहिए। राहुल गांधी ने भी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान गुजरात जाना जरूरी नहीं समझा। उन्होंने ऐसा क्यों किया, यह अब भी एक रहस्य है, क्योंकि आज उनकी सबसे ज्यादा जरूरत गुजरात में ही थी।

भाजपा के चौथाई सदी लम्बे राज के बाद अगर मतदाताओं में जरा भी असंतोष था तो उसे भुनाने का यही सबसे अच्छा समय था। राहुल गांधी या तो जमीनी हकीकत से पूरी तरह से कटे हुए हैं, या वे इतने व्यावहारिक हैं कि उन्होंने जानबूझकर गुजरात में छीछालेदर से खुद को पहले ही बचा लिया। लेकिन हिमाचल में तो कांग्रेस जीती है। यह भी एक और ऐसा राज्य है, जिसे भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा नहीं बनाया गया है।

राहुल गांधी ने तो हिमाचल में चुनाव-प्रचार तक नहीं किया था। इसके बावजूद अगर कांग्रेस वहां जीत गई तो इसका कारण भाजपा के अंतर्विरोध थे। यह कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि वे चुनावी राजनीति में इतने अप्रासंगिक हो गए हैं कि कांग्रेस की जीत-हार अब उन पर निर्भर नहीं रही। सवाल उठता है, इसके बाद अब आगे क्या?

गुजरात के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने मुझसे कहा कि अब गुजरात के कांग्रेस नेता धीरे-धीरे भाजपा और आम आदमी पार्टी में शामिल होने लगेंगे। अगर ऐसा होता है तो इसके बाद गुजरात में कांग्रेस उबर नहीं सकेगी। भाजपा गुजरात की जीत का श्रेय मोदी मॉडल के सुप्रशासन को देगी और हिमाचल की हार के लिए भितरघात को जिम्मेदार ठहराएगी।

वहीं कांग्रेस यह कोशिश करेगी कि हिमाचल को भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता के सबूत की तरह पेश करे और गुजरात में गुटबंदी का रोना रोए। क्या इसके बाद भाजपा हिमाचल में कुछ करेगी? सम्भावनाएं कम ही हैं। जैसी कि भाजपा की आदत है, वह सही मौके का इंतजार करेगी और इस दौरान कांग्रेस में मौजूद बागी स्वरों को बढ़ावा देते रहेगी?

मोदी और राहुल की तरह अरविंद केजरीवाल भी ‘आप’ के इकलौते सर्वेसर्वा हैं। उन्होंने भी यह सबक अच्छी तरह से सीख लिया है कि लोगों को अपने विरुद्ध नहीं करना चाहिए। एक जमाने में वे ध्रुवीकृत नेता हुआ करते थे, लेकिन एनआरसी-सीएए और अनुच्छेद 370 जैसे राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर भाजपा का विरोध नहीं करके उन्होंने जता दिया कि अब वे बदल गए हैं।

वे उम्मीदवारों का चयन बड़ी सतर्कता से करते हैं और उनके प्रदर्शन पर नजर बनाए रखते हैं। उनका माइक्रोमैनेजमेंट बहुत बढ़िया है। भारत का लोकतांत्रिक भविष्य एक सशक्त और संयुक्त विपक्ष पर निर्भर है। लेकिन कम से कम राहुल गांधी तो वैसे विपक्ष का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं लग रहे।

हिमाचल में राहुल गांधी ने चुनाव-प्रचार तक नहीं किया था। कांग्रेस वहां जीती तो इसका कारण भाजपा के अंतर्विरोध थे। इसने यह भी दिखा दिया कि गांधी परिवार चुनावी राजनीति में अप्रासंगिक हो गया है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!