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भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता दत्तोपन्त ठेंगडी भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक थे। - श्रीनारद मीडिया

भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता दत्तोपन्त ठेंगडी भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक थे।

भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता दत्तोपन्त ठेंगडी भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक थे।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पुण्यतिथि पर विशेष

राष्ट्र ऋषि श्रद्धेय श्री दत्तोपंत जी ठेंगड़ी का जन्म 10 नवम्बर, 1920 को, दीपावली के दिन, महाराष्ट्र के वर्धा जिला के आर्वी नामक ग्राम में हुआ। दत्तोपंत जी के पित्ताजी श्री बापूराव दाजीबा ठेंगड़ी, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता थे, तथा माताजी, श्रीमति जानकी देवी, गंभीर आध्यात्मिक अभिरूची से सम्पन्न, साक्षात करूणामूर्ति, और भगवान दतात्रेय की परम भक्त थी। परिवार में एक छोटा भाई और एक छोटी बहन थी।

श्रद्धेय दत्तोपंत जी की 11वीं तक की शिक्षा, आर्वी म्युनिशिपल हाई स्कूल में सम्पन्न हुई। बाल्यकाल से ही, उनकी मेधावी प्रतिभा तथा नेतृत्व क्षमता की चर्चा सब ओर थी। 15 वर्ष की अल्पायु में ही, आप आर्वी तालुका की ‘‘वानर सेना’’ के अध्यक्ष बने। अगले वर्ष, म्युनिशिपल हाई स्कूल आर्वी के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये। 1936 में, नागपुर के ‘‘मौरिस कॉलेज’’ में दाखिला लेकर अपनी स्नातक की पढाई पूरी की और फिर, नागपुर के लॉ कॉलेज से, एल. एल. बी. की उपाधि प्राप्त की।

मौरिस कॉलेज में अध्ययन के दौरान, आप सन् 1936-38 तक क्रान्तिकारी संगठन ‘‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसियेसन’’ से सम्बन्ध रहे। श्रद्धेय दत्तोपंत जी ठेंगड़ी अपने बाल्यकाल से ही, संघ शाखा में जाया करते थे। हालांकी वह अनियमित स्वयंसेवक थे। फिर भी अपने सहपाठी और मुख्य शिक्षक श्री मोरोपंत जी पिंगले के सानिध्य में, दत्तोपंत जी ने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघ शिक्षा वर्गों का तृतीय वर्ष तक का शिक्षण क्रम पूरा किया।

1936 से नागपुर में अध्यनरत रहने तथा माननीय मोरोपंत जी के सानिध्य के कारण दत्तोपंत जी को परम पूजनीय डॉक्टर जी को प्रत्यक्ष देखने, सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आगे चलकर परम पूजनीय श्री गुरूजी का अगाध स्नेह और सतत मार्गदर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

दिनांक 22 मार्च 1942 को संघ के प्रचारक का चुनौती भरा दायित्व स्वीकार कर आप सुदूर केरल प्रान्त में संघ का विस्तार करने के लिए ‘‘कालीकट’’ पहुंचे। 1942 से 1945 तक रा. स्व. संघ प्रचारक के नाते यशस्वी कार्य खड़ा करने के साथ ही, 1945 से 1947 तक, कलकत्ता मेें, संघ के प्रचारक के नाते, तथा 1948 से 49 तक बंगाल.असम प्रान्त के प्रान्त प्रचारक का दायित्व सम्पादन किया।

इस समय राष्ट्रीय परिदृष्य में, भारत विभाजन, तथा पूज्य महात्मा जी की हत्या से उत्पन्न परिस्थितियों का बहाना बनाकर संघ पर आरोपित प्रतिबंध और देशभक्तों द्वारा अन्यायकारी प्रतिबंध के विरूद्ध देशव्यापी सत्याग्रह, इसी बीच जून माह में, सरकार के साथ बातचीत का घटनाक्रम तेजी से घटा और श्री वेंकटराम शास्त्री की मध्यस्थता में, सरकार ने संघ पर लगाया गया प्रतिबंध वापिस लिया।

ऐसे चुनौती पूर्ण समय में, श्रद्धेय दत्तोपंत जी को बंगाल से वापिस बुला लिया गया और 9 जुलाई, 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की औपचारिक घोषणा हुई। और, दत्तोपंत जी को, विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य तथा नागपुर विदर्भ के प्रदेशाध्यक्ष के नाते जिम्मेदारी दी गई। श्री दत्ताजी डिडोलकर को महामंत्री तथा बबनराव पाठक को संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया। वर्ष 1949 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य, हिन्दुस्तान समाचार के संगठन मंत्री, 1951 से 1953, संगठन मंत्री, भारतीय जनसंघ, मध्य प्रदेश, 1956 से 1957 तक रहे।

 

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