धुरन्धर के रहमान डकैत से हजार गुने अधिक क्रूर…

धुरन्धर के रहमान डकैत से हजार गुने अधिक क्रूर…

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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विलाप की आदी हो चुकी भारत की बिकी हुई बौद्धिकता अभी कल तक धुरन्धर फ़िल्म के बहाने आरफा खानम शेरवानी की अध्यक्षता में छाती कूट रही थी। पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के लिए इनका कलेजा फट रहा था। तबतक कल ही एक पाकिस्तानी आतंकी ने ऑस्ट्रेलिया में दर्जनों लोगों को भून गया…

ऐसा भी नहीं कि यह संसार में पाकिस्तानियों का पहला कुकृत्य हो। वे विश्व के जिस कोने में गए हैं, वहाँ यही करते रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में यदि उनकी ठीक ठाक संख्या हो गयी है, फिर वहाँ यह रोज ही होता रहेगा। आतंक ही उनका मूल चरित्र है। पूरी दुनिया उनके उत्पात से त्रस्त है, फिर भी भारत के कुछ टुच्चे उनके लिए हमेशा रोते कलपते रहते हैं।

क्या लगता है, ऑस्ट्रेलिया की घटना के बाद इन्हें लज्जा आएगी? नहीं। वे उस आतंकी युवक के विरुद्ध दो शब्द बोलेंगे? ये लोग सबसे पहले अपनी लज्जा ही तो बेचते हैं। आरफा शेरवानी हो या कोई रोशन पैजामा, हजार आतंकी घटनाओं के बाद भी इनका पाकिस्तान प्रेम कम नहीं होगा। शेरवानी भी अपनी तरह से उसी एजेंडे पर लगी हुई हैं जिसपर वह पाकिस्तानी आतंकी लगा हुआ है।

जिन लोगों ने उस आतंकी की गोलीबाजी को बुरा नहीं बताया, वे भी प्रसन्नता के साथ बताने लगे हैं कि देखो, उस आतंकी को पकड़ने वाला भी पाकिस्तानी है। क्या हुआ जो उसने दर्जन भर लोगों को मार दिया, दुनिया बस इस बात के लिए पाकिस्तान को धन्यवाद दे कि वहां के एक युवक ने ही उसे पकड़ लिया… ऐसी निर्लज्जता भी तथाकथित भारतीय बुद्धिजीवियों का आभूषण है।

पाकिस्तान एक देश नहीं, एक विभाजनकारी मानसिकता का नाम है। उसके पास संसार को देने के लिए केवल आतंक है, घृणा है, भय है… उस देश का जन्म ही करोड़ों लाशों पर हुआ था। उसके जन्म के समय लोरियां नहीं, लाखों बलत्कृत स्त्रियों की चीखें गूंज रही थी। यह देश जबतक रहेगा, तबतक संसार के लिए खतरा ही बना रहेगा।

किसी भी कारण से हो, पर पाकिस्तान या पाकिस्तानियों के पक्ष में बोलता व्यक्ति मुझे संसार के सभ्य समाज के लिए खतरा ही लगता है। भारत में जी रहा व्यक्ति यदि पाकिस्तानियों के प्रति संवेदना का भाव रखता है तो उसमें और किसी आतंकी में कोई विशेष अंतर नहीं।

धुरन्धर हो या कोई और फिल्म, उसमें पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के क्रूर और असभ्य स्वरूप का करोड़वां हिस्सा भी नहीं दिखाया जा सकता। लेकिन इतना जरूर है कि ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिये, उनका मूल चरित्र दिखाया जाता रहना चाहिये। कम से कम भारत के तो हर बच्चे को याद रहना चाहिये कि पाकिस्तानी ऐसे ही होते हैं। धुरन्धर के रहमान डकैत से हजार गुने अधिक क्रूर…

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