क्या न्यायालयों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

न्यायायिक ढांचों को सुधारने की चर्चा से पहले यह जानना जरूरी है होगा कि वर्तमान स्थिति क्या है। जजों की संख्या से लेकर लंबित केस हों या फिर देशभर के न्यायालय परिसरों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव। इन सभी पैमानों पर स्थिति चिंताजनक है।

नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर बोर्ड पर पल-पल उभरते आंकड़े यह बात बयां करते हैं। यह स्थिति क्यों बनी? इसका जवाब तलाशते हुए जो तथ्य सामने आते हैं वह यह है कि केंद्र और राज्यों सरकारों के बजट में न्यायिक तंत्र के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए आवंटित राशि जीडीपी का एक प्रतिशत भी नहीं है।

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केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा में पूछे गए सवाल पर लिखित जवाब दिया था कि देश की विभिन्न अदालतों में 4.70 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट में इस साल दो मार्च तक 70,154 और देश के 25 उच्च न्यायालयों में 21 मार्च तक 58,94,060 मामले लंबित थे। उन्होंने कहा कि इसमें अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार में लंबित मामलों का आंकड़ा शामिल नहीं है।

हाईकोर्ट में लंबित मामले

  • 58.39 से अधिक मामले लंबित हैं
  • 42 लाख से ज्यादा सिविल केस
  • 16.39 लाख क्रिमिनल केस

86.2 प्रतिशत मामले एक साल से अधिक समय से लंबित हैं

(अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार में लंबित मामलों का आंकड़ा नेशनल ज्युडिशियल डाटा ग्रिड के पास उपलब्ध नहीं है।)

लंबित होने के कारण क्या हैं

28.4 प्रतिशत मामलों में स्टे है। यही लंबित मामलों की सबसे बड़ी वजह है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री ने न्यायिक बुनियादी ढांचे और अदालती सुविधाओं की स्थिति पर डाटा संकलित किया है। न्यायालयों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे की व्यवस्था के लिए भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (एनजेआइएआइ) की स्थापना के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। इस प्रस्ताव के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश इस संस्था के संरक्षक होंगे। एनजेआइएआइ भारतीय न्यायालय प्रणाली के लिए कार्यात्मक बुनियादी ढांचे की योजना, निर्माण, विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिए रोड मैप तैयार करेगा और एक केंद्रीय निकाय के रूप में कार्य करेगा। इस प्रस्ताव पर ही चर्चा संभव है।

  • न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है
  • संसाधनों को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों व केंद्रशासित प्रदेशों को फंड शेयरिंग पैटर्न में वित्तीय सहायता कर रही है। यह व्यवस्था 1993-94 से क्रियान्वित है।
  • अब तक केंद्र सरकार ने राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को 8758.71 करोड़ रुपये आवंटित किए हैैं।
  • 2014-15 से अब तक 5314.40 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं जो इस योजना के तहत कुल रिलीज का लगभग 60.68 फीसदी है।
  • सरकार ने इस सीएसएस को एक अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2026 तक पांच वर्षों की अवधि के लिए जारी रखने की मंजूरी दी है।
  • इसका कुल 9000 करोड़ रुपये है, और इसमें 5307 करोड़ रुपये केंद्र का हिस्सा शामिल है।
  • जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में कोर्ट हाल और आवासीय इकाइयों के अलावा शौचालयों, डिजिटल कंप्यूटर कक्षों और वकीलों के हाल के निर्माण को भी योजनाओं में शामिल कर विस्तार दिया गया है।

सुविधाएं…जो नहीं हैं

26 प्रतिशत अदालत परिसरों में अलग महिला शौचालय नहीं

16 प्रतिशत में पुरुषों के लिए शौचालय नहीं हैं

46 प्रतिशत अदालत परिसरों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था नहीं है

95 प्रतिशत अदालत परिसरों में मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं

73 प्रतिशत अदालत कक्षों में न्यायाधीशों के पास कंप्यूटर नहीं है

68 प्रतिशत अदालत कक्षों में अलग रिकॉर्ड कक्ष नहीं है।

49 प्रतिशत न्यायालयों में पुस्तकालय नहीं हैं।

98 प्रतिशत अदालतों में दृष्टिहीन नागरिकों की सुविधा के लिए आने-जाने का रास्ता नहीं है

55 प्रतिशत न्यायालयों में हेल्प डेस्क नहीं है।

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