France Riots:नाहेल की मौत के बाद फ्रांस में क्यों भड़की हिंसा?

France Riots:नाहेल की मौत के बाद फ्रांस में क्यों भड़की हिंसा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

फ्रांस में 17 वर्षीय किशोर की पुलिस फायरिंग में मौत के बाद हिंसा और विरोध प्रदर्शन पांचवें दिन भी जारी है। कई जगहों पर अभी भी तोड़फोड़ और आगजनी हो रही है। अभी तक करीब तीन हजार कारें-वाहन तोड़े-जलाए जा चुके हैं, ढाई हजार से ज्यादा दुकानें जलाई या लूटी जा चुकी हैं और सैकड़ों पुलिस थानों-सरकारी भवनों पर हमले हुए हैं। ऐसे में अबतक 2,400 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हुई है।

कौन था पुलिस फायरिंग में मारा गया नाहेल?

पुलिस फायरिंग में मंगलवार को मारा गया 17 वर्षीय नाहेल नाइजीरियाई मूल का किशोर था। वह नैनटेरे शहर में एक डिलीवरी ड्राइवर के तौर पर काम करता था। साथ ही वह पिछले 3 वर्षों से पाइरेट्स ऑफ नैनटेरे रग्बी क्लब का सक्रिय सदस्य था। पुलिस के मुताबिक, किशोर तेज रफ्तार से गाड़ी ड्राइव कर रहा था। ऐसे में पुलिस ने उसे रोकने का प्रयास किया। हालांकि, नाहेल रुका नहीं और पुलिस ने पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली दाग दी। जिसमें उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

इस घटना के बाद फ्रांस के कई हिस्सों में नस्लीय भेदभाव को लेकर हिंसा भड़क उठी। इस बीच, नाहेल का शनिवार को अंतिम संस्कार किया गया। एकलौते बेटे की मौत की वजह से मां मौनिया सदमे में हैं। उन्होंने कहा कि गोली मारने वाले पुलिसकर्मी के प्रति उनके मन में गुस्सा है, लेकिन बाकी लोगों से उन्हें कोई शिकायत नहीं है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके बेटे के चेहरे को देखने के बाद फायरिंग की।नाहेल की शिक्षा अभी संपन्न नहीं हुई थी। हालांकि, वह इलेक्ट्रीशियन बनने का सपना देख रहे थे। ऐसे में उन्होंने सुरेसनेस के एक कॉलेज में दाखिला भी लिया, लेकिन अटेंडेंस रिकॉर्ड काफी खराब था।

मैक्रों ने रद्द किया जर्मनी दौरा

फ्रांस में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है और कई शहरों में हालात ज्यादा बेकाबू होते दिखाई दे रहे हैं। वहीं, कुछ जगहों पर बीते दिनों की तुलना में थोड़ी शांति दिखाई दी। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फ्रांस की मौजूदा स्थिति को देखते हुए सर्वप्रथम ब्रसेल्स में हो रही यूरोपीय संघ की बैठक को बीच में ही छोड़कर पेरिस लौट आए थे और अब उन्होंने जर्मनी का दौरा भी रद्द कर दिया।

कैसे भड़की हिंसा?

नाहेल की मौत के बाद लोगों के मन में पुलिस के खिलाफ नफरत पनपने लगी और सोशल मीडिया ने ‘आग में घी’ डालने का काम किया। वहीं, राष्ट्रपति मैक्रों ने देश में बेकाबू हालात के लिए सोशल मीडिया को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया है।हिंसाग्रस्त फ्रांस के फुटबॉल स्टार किलियन एम्बाप्पे सहित कई अन्य शख्सियतों ने शांति की अपील की है और कहा कि हिंसा से कोई समाधान नहीं निकलता। हालांकि, इस अपील का कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में सरकार ने उपद्रवियों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाकर 45 हजार कर दी।

17 साल के नाहेल की हत्या से भड़के दंगे 2005 में हुई घटना की याद दिलाते है। 27 अक्टूबर, 2005 को एक फुटबॉल मैच के बाद पुलिस से भागते समय दो किशोरों जायद बेना और बौना ट्रैओरे ने भी अपनी जान गंवा दी थी।

अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री डोमिनिक डी विलेपिन और आंतरिक मंत्री निकोलस सरकोजी ने अपने शुरुआती बयान में कहा था कि दोनों पीड़ित चोर थे। उनके इस बयान ने आग में घी डालने जैसा काम किया था, क्योंकि पुलिस अधिकारियों ने अपने शुरुआती बयान में कबूल कर लिया था कि दोनों पीड़ित बच्चों ने कोई चोरी नहीं की थी।

2005 के दंगे

दो किशोरों की हत्या के अगले ही दिन जमकर हिंसक प्रदर्शन हुए। 300 CRS पुलिसकर्मियों पर पत्थरों और मोलोटोव कॉकटेल से बौछारे हुई। जब हालात बद से बदतर होने लगे तो टेलीविजन स्टेशन टीएफ1 पर 30 अक्टूबर, 2005 को फ्रांस के आंतरिक मंत्री ने इस मामले में जांच शुरू करने की घोषणा की। उसी शाम क्लिची में पुलिस और दंगाइयों के झड़प के बीच बिलाल मस्जिद के प्रवेश द्वार के सामने एक आंसू गैस ग्रेनेड फट गया, जिससे हालात और भी खराब हो गए। यह दंगे तीन हफ्ते तक लगातार जारी रहे।

आपातकाल जैसी रही स्थिति

दंगों के बीच सेवरान में बस में आग लगने से एक महिला गंभीर रूप से जल गई थी। वहीं, ला कौरन्यूवे में पुलिस अधिकारियों का एक व्यक्ति पर हमला करते हुए का एक वीडियो भी वायरल हुआ। 7 नवंबर की रात को 1,400 से अधिक कारों को आग के हवाले कर दिया गया। स्कूल और दुकान भी झुलस गए।

आग में जल रहे फ्रांस को बचाने के लिए प्रधानमंत्री डोमिनिक डी विलेपिन ने कार्रवाई करने का निर्णय लिया। उन्होंने फ्रांस में आपातकाल लागू करने की घोषणा की। 9 नवंबर से पूरे इलाके में कर्फ्यू लगाया गया और सामान्य स्थिति बहाल होने में 10 दिन लगे। इस दंगे में 10,000 से अधिक वाहन जलाए गए और 300 विभिन्न जिलों में 233 सार्वजनिक भवन और 74 निजी भवन क्षतिग्रस्त कर दिए गए। 4,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। मार्च 2015 में 10 साल के कानूनी उतार-चढ़ाव के बाद, दो पुलिस अधिकारी को आपराधिक अदालत में पेश किया गया, लेकिन उन्हें बरी कर दिया गया था.

क्यों आया ये कानून?

साल 2016 में पेरिस में युवाओं ने एक पुलिस अधिकारी पर हमला कर दिया था और उसे आग लगा दी थी। बुरी तरह से जल जाने के कारण पुलिस अधिकारी कोमा में चला गया था। इस घटना के बाद पूरे पुलिस अधिकारियों ने अपनी सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाने की मांग की। इसके बाद तत्कालीन गृह मंत्री बर्नार्ड कैजनेउवे ने पुलिस के कानून को बदलने का फैसला किया था। मार्च 2017 में दंड संहिता के अनुच्छेद 435-1 को पारित किया गया और रोफ्यू दोब्तोंपेरे’ कानून को लागू किया गया।

फ्रांस में ड्राइवर को शूट करने की इस साल की यह तीसरी घटना

समाचार एजेंसी रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रैफिक चेकिंग के दौरान फ्रांस में ड्राइवर को शूट करने की इस साल की यह तीसरी घटना है। बता दें, पिछले साल यानी 2022 को ऐसी गोलीबारी की 13 घटनाएं सामने आई है। वहीं, 2020 में 2 और 2021 में 3 ऐसे मामले सामने आए।

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