बिहार में प्रत्येक वर्ष बन रहे है 100 करोड़ रुपये के गमछे

बिहार में प्रत्येक वर्ष बन रहे है 100 करोड़ रुपये के गमछे

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

प्रत्येक दिन करीब 25 लाख रुपये का गमछा तैयार होता है.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में गया के मानपुर में स्थित पटवाटोली के पावर लूम इन दिनों सालाना 100 करोड़ रुपये से अधिक के गमछे बना रहे हैं. डेढ़ हजार से अधिक घरों से घिरे इस पटवाटोली में 10 हजार से अधिक लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं. यहां रह रहे एक हजार से अधिक बुनकरों के घरों में 12 हजार से अधिक पावरलूम संचालित हैं, जहां प्रतिदिन करीब 25 लाख रुपये की वैल्यू का एक लाख से भी अधिक गमछा बनकर तैयार हो रहा है.

यहां का तैयार गमछा बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सहित देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंच रहा है. इन गमछाें को तैयार करने में प्रतिदिन औसतन 50 हजार किलो 10 से 40 नंबर तक के धागे का उपयोग किया जाता है, जिसकी अनुमानित लागत करीब 25 लाख रुपये बतायी गयी है. बुनकरों के अलावा 12 हजार से अधिक कारीगर यहां रहकर गमछा बना रहे हैं.

बुनकरों के इस व्यवसाय से कारीगरों सहित 40 हजार से अधिक लोगों का भरण पोषण हो रहा है. पटवा टोली के पावर लूम में गमछे के अलावा रजाई, तोशक, गद्दा, तकिया का कपड़ा, झारखंडी साड़ी, पूजा साड़ी, लाल बॉर्डर की साड़ी, पीतांबरी, रामनामा, लहंगा, बेडशीट सहित कई अन्य किस्म के कपड़ों का यहां उत्पादन हो रहा है.

सूबे में हस्तकरघा का महत्वपूर्ण केंद्र है पटवाटोली

फल्गु नदी के पूर्वी तट पर पटवाटोली क्षेत्र बसा हुआ है. पूरे बिहार के लिए यह हस्तकरघा का महत्वपूर्ण केंद्र है. जानकार बताते हैं कि यह क्षेत्र टिकारी के राजा बुनियाद सिंह के समय बुनियादगंज के नाम से जाना जाने लगा. महाराज कैप्टन गोपाल शरण के सत्ता में आने से यह क्षेत्र गोपालगंज बना. आज भी मुख्य बाजार की सड़क गोपालगंज रोड के नाम पर है. जयपुर के राजा सवाई मानसिंह के नाम पर यह मानपुर हो गया. इसका इतिहास गयाजी से भी पुराना मौर्यकाल का रहा है. अपने जमाने के मशहूर शायर रहे अंजुम मानपुरी की लिखी किताब ”मिरइक्का की गवाही” व ”टमटम वाले” आज भी लाल किला के म्यूजियम में सुरक्षित है.

वहीं कहा जाता है कि मानपुर सवाई मानसिंह के नाम पर है. 1594 ईस्वी में बंगाल के नवाब की नाफरमानी के कारण मुगल बादशाह अकबर ने अजमेर के शासक राजा सवाई मानसिंह को मानपुर भेजा. उन्होंने अपनी छावनी फल्गु के पूर्वी तट पर लगायी. नवाब को सबक सिखाने के बाद राजा सवाई मान सिंह ने नदी किनारे गंगा-जमुनी पोखर से मिट्टी निकाल कर चौमहला महल का निर्माण कराया व चार वर्षों तक रहे भी. इसी बीच सिंचाई के लिए कई पोखर व तालाब खुदवाये, कुएं बनवाये. सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया. वर्तमान में भी मानपुर सूर्य पोखर व इसके किनारे सूर्य मंदिर उनके समय की कृति की याद ताजा कराता है.

Leave a Reply

error: Content is protected !!