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अलविदा द्रोणाचार्य की नगरी दोन के कर्मयोगी - श्रीनारद मीडिया

अलविदा द्रोणाचार्य की नगरी दोन के कर्मयोगी

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माँ नारायणी के परम भक्त, उर्जावान उद्योगपति और संवेदनशील शिक्षाविद्, भावुक लेखक दोन के कर्मयोगी कुमार बिहारी पाण्डेय जी ताजिंदगी आपकी यादें हमारी धरोहर रहेंगी……

✍️ गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज की सुबह बड़ी उदास सी थी। पता नहीं क्यों? मन भी उदास सा लग रहा था, समझ में नहीं आ रहा था कि क्यों ऐसा हो रहा है? तक़रीबन 12 बजे डॉक्टर राकेश तिवारी के फेसबुक पर के एक पोस्ट ने स्तब्ध कर दिया। उस समय में मैं एक स्वास्थ्य शिविर में था। मैं लौट पड़ा घर की ओर। सुबह से उदास मन बस बरस पड़ा। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। मेरे परिवार के सभी सदस्य भी खबर सुन गुमसुम से हो गए।

क्योंकि स्नेह का एक चमन सूख चुका था, आशीष का एक सुनहरा आशियाना उजड़ चुका था, निश्चल प्रेम की बगिया उजड़ चुकी थी। एक उर्जावान उद्योगपति, एक संवेदनशील शिक्षाविद्, एक भावुक साहित्यकार, एक निष्ठावान कर्मयोगी, माँ नारायणी के लाडले बेटे हमारे परम आदरणीय दोन के कर्मयोगी कुमार बिहारी पाण्डेय के श्री हरि के लोक गमन की जानकारी जो मिली थी। उनके साथ बिताये सुखद सान्निध्य के अनमोल पल याद आने लगे।

अभी कुछ दिन पूर्व ही तो उनसे मिलने का सुअवसर मिला था। रघुनाथपुर के बीडीओ मेरे मित्र अशोक तिवारी ने बताया कि कुमार बिहारी जी आपसे मिलना चाह रहे हैं। दोन के क्षेत्र में एक आधुनिक गुरुकुल के स्थापना की जानकारी मुझे थी। एक दिन समय निकाल कर पंहुचा दोन। उनका सुखद सान्निध्य ,उनका दुलार, उनका स्नेह, उनके व्यक्तित्व का माधुर्य, माँ नारायणी के प्रति उनकी आस्था, उनके आवास की प्राकृतिक सुंदरता सब कुछ बस अद्भुत था। लेकिन अभी तो बस उनसे पहली मुलाकात ही तो हो रही थी।

बड़े ही दुलार से, आत्मीयता से भोजन कराया था उन्होंने। काफी बातें हुई, जो उनके व्यक्तित्व की सरलता और सहजता की तस्दीक कर रही थी। आते समय उन्होंने अपने द्वारा लिखित पुस्तकों को उपहारस्वरूप दिया था। उनकी पुस्तक ‘अनुभवों का आकाश’ पढ़ने के बाद मैं उनके व्यक्तित्व की संघर्ष गाथा से परिचित हो सका और उनके कर्मयोगी स्वरूप के बारे में जान पाया।

उनकी पुस्तकों को पढ़ता रहा फोन पर बातें होती रही। ज़िन्दगी की कई जटिलताएं सुलझती रही। उनके अध्यात्मिकता के प्रकाश से मैं भी आलोकित होता रहा। क्या सुखद संयोग होता था? जब मैं अपने घर पर माता रानी की पूजा कर रहा होता था, तभी उनका फोन आता था। जब मैं बोलता कि माता रानी का पूजा कर रहा हूँ तो वे भी भावविभोर हो उठते थे। माँ नारायणी को प्रणाम करते और मेरे परिवार का हाल चाल पूछ्ते। ये वाक़्ये अब मेरी यादों के धरोहर हैं जो ताजिंदगी मुझे याद रहेंगे।

फिर कुछ दिनों बाद अनुज पुष्पेन्द्र पाठक के साथ उनके आवास पर दोन जाना हुआ। फिर वहीं स्नेह, वहीं दुलार, वहीं आवभगत। वहीं विचार मंथन का लम्बा कारवाँ । लेकिन उस समय तक मैं उनके व्यक्तित्व को समझ चुका था। कैसे 9 साल की उम्र में माँ के गुजर जाने के बाद वे घर से निकल गए। कोलकाता, मुंबई, दिल्ली के होटलों में काम किया। राजा महाराजा के यहां नौकरी की । मुम्बई में चौकीदारी की । फिर हुनर को सीखा। अपना इंजीनियरिंग के व्यवसाय को शुरू किया और अस्तित्व में आया सुनीता इंजीनिरिंग वर्क।

तभी ख्याल आया अपना क्षेत्र। खोल दिया दोन में जे आर कॉन्वेंट स्कूल जैसा आधुनिक गुरुकुल। बेहद किफायती दाम पर उच्च कोटि की गुणवत्तापरक शिक्षा का उजास। यह थी एक कर्मयोगी के साधना के सफर की संक्षिप्त कहानी।

फिर कुछ दिनों बाद जे आर कॉन्वेंट स्कूल के विज्ञान मेला में आने का उनका सस्नेह निमंत्रण मिला। उस विज्ञान मेले में स्कूल के छात्रों ने अपनी सृजनात्मकता से मन मोह लिया। लेकिन कुमार बिहारी पाण्डेय जी की मौलिक और सृजनात्मक सोच भी अपनी असर अवश्य दिखा रही थी। उन्होंने मंच पर विशेष तौर पर अपने स्नेह का मंगल आशीष
प्रदान किया। मेरी अंतिम मुलाकात भी वहीं रही।

अभी कुछ दिन पहले फोन पर बात हुई थी तो उन्होंने तबियत के खराब होने की बात और हॉस्पिटल में भर्ती होने की जानकारी दी थी। दो दिन पहले ही फिर उनसे लम्बी बात फोन पर हुई थी। एक एक समाचार के बारे में पूछा। अपने बारे में बोले थोड़ी सांस की तकलीफ हैं। फिर अपने परम प्रिय माँ नारायणी को याद करते हुए कहाँ कि वे सब ठीक कर देगी। मेरी अंतिम बात भी उनसे यहीं रही।

आज जब आपके देव लोक गमन की खबर सूनी तो…….. की बोर्ड पर अंगुली जरूरी चल रही थी लेकिन मन भीग भीग जा रहा था। मेरे बच्चे आपसे मिल नहीं पाये थे लेकिन फोन पर आपसे बात को ही याद कर वे भी सिस कने लगे। बस यहीं बात बार बार विचलित कर रही थी कि आपका दुलार प्यार अब नहीं मिल पाएगा…
अलविदा दोन के कर्मयोगी

श्री हरि अपने श्रीचरणों में आपको स्थान दें। ॐ शांति ॐ

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