Sharad Yadav:तीन राज्‍यों से सात बार रहे लोकसभा सांसद

Sharad Yadav:तीन राज्‍यों से सात बार रहे लोकसभा सांसद

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

शरद यादव ने भी अन्य नेताओं की ही तरह छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। साल 1971 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने छात्र राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। यादव ने राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान बनाने के अलावा बिहार की राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल किया। शरद यादव सात बार लोकसभा का सदस्य और दो बार राज्यसभा का सदस्य भी रह चुके हैं।

डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित होकर कई आंदोलन में हुए शामिल

राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी रहे शरद यादव का जन्म एक जुलाई 1947 में मध्य प्रदेश में होशंगाबाद के एक गांव अखमाऊ में किसान परिवार में हुआ था। डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित होने वाले शरद यादव सक्रिय युवा नेता के तौर पर कई आंदोलनों में शामिल हुए। वह कई बार जेल भी जा चुके हैं। मीसा (MISA) कानून के तहत वह साल 1969-70, साल 1972 और साल 1975 में हिरासत में लिए गए और जेल गए। शरद यादव राजनीति के साथ-साथ पढ़ाई में भी अव्वल रहे। उन्होंने B.E. (सिविल) में गोल्ड मेडल जीता था।

सात बार चुने गए सांसद

शरद यादव जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्होंने बिहार प्रदेश के मधेपुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार लोकसभा, मध्य प्रदेश के जबलपुर से दो बार और उत्तर प्रदेश के बदायूं से एक बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। वह कुल मिलाकर तीन राज्यों से लोकसभा निर्वाचित हुए हैं, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शमिल है। जेपी आंदोलन दौरान यादव साल 1974 में पहली बार मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता। साल 1977 में भी उन्होंने इसी सीट से एक बार फिर चुनाव में जीत दर्ज कर संसद में पहुंचे।

दो बार चुने गए राज्यसभा सांसद

शरद यादव को साल 1986 और 2004 में दो बार राज्यसभा का सांसद चुना गया। यादव फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाला। वह कई कमेटियों के सदस्य भी रह चुके हैं। मधेपुरा सीट से साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

जबलपुर से था शरद यादव का खास नाता

शरद यादव ने जबलपुर से ही राजनीतिक एबीसीडी पढ़ी थी। शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग महाविद्यालय के छात्र थे। न सिर्फ छात्र बल्कि वो जबलपुर छात्र संघ के अध्यक्ष भी थे। राजनीति में भी उनकी एंट्री यहीं से हुई हालांकि उनके राजनीतिक करियर को एक नया मुकाम और पहचान दोनों बिहार से मिलe।

शरद यादव को पहली बार जय प्रकाश नारायण ने खुद की मर्जी से उम्मीदवार बनाया था। सेठ गोविन्द दास के निधन के बाद जबलपुर की सीट खाली हुई और तभी शरद यादव इस सीट से उम्मीदवार बने थे। एक नया चेहरा और नए जज्बे को सभी ने पसंद किया। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पीसी सेठी ने शरद यादव को हराने के लिए सारे तिकड़म लगा दिए थे, लेकिन उसके बावजूद जेपी नारायण का उम्मीदवार यानी शरद यादव ने विजय हासिल की थी। इस तरह से शरद यादव ने राजनीति में एंट्री मारी और आज उनका नाम ही काफी है।

समाजवाद से रहा नाता

शरद यादव ने जेपी आंदोलन के समय समग्र क्रांति की मशाल थामी। जेपी आंदोलन के समय समग्र क्रांति की मशाल थामने के बावजूद शरद यादव कभी समाजवादी विचारधारा मात्र के प्रति दुराग्रही नहीं रहे। यही कारण है कि कांग्रेस से लेकर बीजेपी के सभी नेता उनका आदर करते हैं।जब भी उन्हें बड़ा पद मिला उन्होंने जबलपुर के हक की आवाज उठाई। ब्राडगेज के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।

देवा के मंगोड़े के दीवाने थे शरद यादव

जबलपुर शहर की खास पहचान ‘देवा मंगोड़े वाले’ से थी। हालांकि अब जीवित नही हैं लेकिन उनके बेटे पिता की धरोहर को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। ये वहीं देवा के मंगोड़े थे जो शरद यादव को पसंद थे। शरद यादव छात्र राजनीति के दौर में देवा के मंगोड़े के दीवाने थे।

सिर्फ मंगोड़े नहीं बल्कि यहां के चाय-पान के अड्डों में शरद यादव की आवाजाही थी और यहीं बैठकर राजनीति की खूब चर्चा होती थी। श्याम टाकीज चौक पर महफिल जमती थी। रामेश्वर नीखरा सहित कई ऐसे लोग थे जो शरद का उत्साहवर्धन करते थे।

इसी शहर ने शरद यादव को बेबाक बनाया। नर्मदा की माटी ने उनके व्यक्तित्व को सोंधी खांटी सुगंध दी और नर्मादा जल ने उनके स्वभाव को सौम्य-मिलनसार व तरल के साथ ही तेज़-तर्रार भी बनाया। शरद यादव तभी जमीन से जुड़े नेता भी कहलाए।

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