गूलर नेत्र रोग, मधुमेह, डायरिया सहित कई बीमारियों में लाभकारी

गूलर नेत्र रोग, मधुमेह, डायरिया सहित कई बीमारियों में लाभकारी

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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गूलर के पेड़ और इसके फल में अनेक औषधीय गुण होते हैं। इसलिए इसके पेड़ को बोलचाल में ‘हकीम सरदार’ भी कहा जाता है। सीवान शहर के ही डीएवी पीजी महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्‍यक्ष डा. रवीन्‍द्र पाठक बताते हैं कि गूलर फाइकस परिवार का एक विशाल वृक्ष है, जिसके फल अंजीर की भांति होते हैं। इसके फल तने पर गुच्छे के रूप में लगते हैं। फल में कीट-पतंगे भी रहते हैं। इस कारण इसे जंतुफल भी कहा जाता है। वह कहती हैं कि 12 महीने फल देने के कारण इसको सदाफल भी कहा जाता है। इसकी गिनती अंजीर प्रजाति में की जाती है। इसका फल कई बीमारियों में लाभकारी होता है।

औषधीय गुण: वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक डा0 आर0 के0 पांडेय बताते हैं कि आयुर्वेद में गूलर को औषधि का खजाना माना गया है। इससे नेत्र रोग, मधुमेह, मूत्र विकार, डायरिया सहित कई प्रमुख रोगों की अचूक दवा बनती है। गूलर के पेड़ से निकला दूध बवासीर, मुंह के अल्सर व घाव सुखाने में लाभदायक होता है। गूलर का फल ल्युकोरिया, रक्त विकार, त्वचा विकार, पित्त विकार, और शारीरिक कमजोरी दूर करने में उपयोगी होता है। चेचक के उपचार में भी काम आता है। पेड़ का तना, पत्ती, फल व दूध सभी का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि यदि कोई नियमित तौर पर एक वर्ष तक इसका फल खाए तो उसको नेत्ररोग की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। बच्चों की कई बीमारियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

पर्यावरण को शुद्ध करता है: सीवान शहर के ही डीएवी पीजी महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्‍यक्ष डा. रवीन्‍द्र पाठक बतातेे हैं कि कोरोना काल में गूलर बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है। दरअसल, गूलर का पेड़ भरपूर आक्सीजन देता है। इसका फल एंटी वायरस, एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। साथ ही विषैले पदार्थो को शरीर से निष्कासित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

मानसून में ही लगाएं: डा. रवीन्‍द्र पाठक बताते हैं कि मानसून के मौसम में गूलर का पौधा लगाया जाता है। इसी मौसम में नर्सरी अथवा जंगल से तीन या चार इंच की डंडी (जिसे कलम कहते हैं) द्वारा इसे रोपा जा सकता है।

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