क्या बाबा जातियों में बंटे बिहारियों को एक करने आए है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्राम्भ से हीं पाठ्यपुस्तकों में या विचार-विमर्श में बिहार की पहचान.. भगवान बुद्ध, महावीर, सम्राट अशोक के रूप में हीं कराई गई। बाद मैं गुरू गोविंद सिंह भी बिहार के अटूट पहचान बने।

…और इसमें कुछ गलत भी नहीं है।

बिहार का नाम बौद्ध विहार पर पड़ा। वर्ष में एक बार छठ पूजा की थोड़ी बहुत चर्चा हो जाती थी। लेकिन …उससे ज्यादा चर्चा कोशी नदी को बिहार का शोक के रूप में की जाती थी। कोशी या कोसी भरना छठ पूजा का सबसे पवित्र अनुष्ठान है। यह बात कम हीं बताई गई कि …आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य की जोड़ी ने भारत को सैन्य शक्ति सम्पन्न बनाया, विखंडित भारत को एक किया।

चाणक्य ब्राह्मण थे। चंद्रगुप्त मौर्य को मुरा नाम की दासी का पुत्र माना जाता है। …चंद्रगुप्त-चाणक्य की जाति भिन्न थी …लेकिन राष्ट्रीयता एक थी, धर्म एक था। लाख जातियां में तोड़ने की कुत्सित मानसिकता के बावजूद यहीं… राष्ट्रधर्म हमें एक रखता है।
चंद्रगुप्त मौर्य के पोते अशोक ने अपने दादा जी की प्रतिष्ठा को तो रखी ….लेकिन अशोक के बौद्ध बनते हीं …भारत पर बाहरी आक्रमण भी तेज हो गए।

बौद्ध मत को अव्यावहारिक तौर पर अपनाने से भारत सैन्य दृष्टि से कमजोर होता गया…और बाहरी आक्रमणकारी शक्तियाँ भारत में लूट, आतंक और नरसंहार करती रहीं। नालंदा, विक्रमशीला जैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों को हम बौद्ध अध्ययन केन्द्र के रूप में पढ़ते रहे। ऐसा एहसास कराया जाता था …कि बिहार में बौद्ध दर्शन के अलावा कुछ है ही नहीं। वैसे…इन दोनों विश्वविद्यालयों को हिंदू राजवंशों ने हीं स्थापित किया..और पूरी दुनिया में प्रसिद्धी दिलाई।

हां, यह भी बड़े शान से पढ़ाया जाता था …कि कोई बख्तियार खिलजी नामक बाहरी लुटेरा अपने सैनिकों के साथ घोड़ा दौड़ाते हुए आया ..और नालंदा विश्वविद्यालय में घूसकर करीब दस हजार बौद्ध छात्रों की हत्या कर दी, विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर आग के हवाले कर दिया। लाइब्रेरी छ: महीने तक जलती रही। इस छ: महीने तक लाइब्रेरी जलने की घटना को बड़े गर्व से बताया जाता था …कि दुनिया जाने कि हमारे नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में लाखों पुस्तकें थीं। इस बात पर कभी भी चर्चा नहीं हुई है …कि इतनी बड़ी संख्या में पुस्तकें पढ़कर बस ‘मेमने’ हीं तैयार हुए जो चुपचाप एक ….’भेड़िये’ के शिकार बन गए। समाज …इस बात पर उद्वेलित नहीं हुआ कि भविष्य में ऐसे ‘शिकारी भेड़ियों’ का खात्मा कैसे किया जाए? नालंदा विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय था, यहीं गर्व का विषय है। अब इसी गर्व की अनुभूति में …नालंदा के बाजू में किसी रेलवे स्टेशन का नाम उस लुटेरे के नाम पर कब हो गया, पता हीं नहीं चला।
इसी ….संतुष्टि भाव के स्थिर तालाब में …एक युवा सन्यासी ने जय हनुमान बोलकर एक छोटा-सा कंकड़ फेंक दिया है। और.. तालाब में उथल-पुथल है, उफान है और भक्ति के महासागर में गोते लगाने को बेचैन हो उठा है बिहार। यहीं …भारत की आंतरिक शक्ति है…यहीं रत्नगर्भा सनातन धर्म है, जो विभिन्न रत्नविचारों, मतों, पंथों को अपने अंदर समेटे हुए है।

यहीं माता जानकी की भूमि है जिसे जगतनियंता भी वंदन करके गए हैं। यहीं एक गज के करूण पुकार पर करूणामय देव दौड़े चले आए थे। बालाजी बागेश्वर हनुमान जातीय रूप से बंटे बिहारियों को एक करने आए हैं। यह एक बड़ा बदलाव है। यहीं अवतार है। यहीं अवसर है। बाबा का प्रण जल्द पूर्ण हो।

आभार- पी के पाठक

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