Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या उग्र टीवी चैनलों की बहसों पर रोक लगाना आवश्यक हो गया है? - श्रीनारद मीडिया

क्या उग्र टीवी चैनलों की बहसों पर रोक लगाना आवश्यक हो गया है?

क्या उग्र टीवी चैनलों की बहसों पर रोक लगाना आवश्यक हो गया है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

समाज एवं राष्ट्र-निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाला मीडिया विशेषतः इलेक्ट्रोनिक मीडिया आजकल बहस के ऐसे अखाड़े बन गये हैं, जहां राष्ट्र-विरोधी, नफरत एवं द्वेषभरी चर्चाओं ने समाज एवं राष्ट्र में जहर घोलने का काम किया है। निश्चित ही मन की भड़ास निकालने, टीआरपी के लिए समाज में विभाजनकारी और हिंसक प्रवृत्ति पैदा करने वाले इन मंचों को नियंत्रित किया जाना जरूरी है।

मारे देश के कुछ टीवी न्यूज चैनल और उनके एंकर कभी कभी इतने क्रांतिकारी हो जाते हैं कि वे खुद ही पुलिस बन जाते है, खुद ही वकीन और खुद ही जज बन जाते हैं। लेकिन अब कोर्ट से जुड़े हुए मामले पर न्यूज रूम में चर्चा करना ही एंकरों को भारी पड़ सकता है।

टीवी चैनलों पर बहस को देखते-सुनते आजकल एक सवाल अक्सर मन में पैदा होता है कि किसी मुद्दे पर चर्चा या बहस के दौरान प्रस्तोता और पैनल विशेषज्ञों आदि का धर्म क्या हो? इन बहसों का उद्देश्य क्या हो? ये बहसें कैसी हों, जो एक सकारात्मक परिवेश बनाएं और किसी सार्थक परिणाम तक पहुंचें। बहस को पुरातन संदर्भों में देखें तो यह किसी विषय या विवाद के दो या अधिक विद्वानों के बीच चर्चा या शास्त्रार्थ की श्रेणी में आती है।

मन्दिर हो या चुनाव, राजनेता हो या धर्मगुरु, गरीबी हो या अशिक्षा, बेरोजगारी हो या महंगाई, निर्माण कार्य हो या नवीन योजनाएं- इन मुद्दों पर बहस के बहाने नफरत एवं विद्वेषभरे भाषणों को हवा देना कई टीवी चैनलों के एंकरों की आदत बन गई है। जो टीवी चैनल जितनी आक्रामक एवं मसालेदार बहसों को कराने में माहिर होते है, वे उतने ही ज्यादा लोकप्रिय माने जाते हैं और इन बहसों एवं चर्चाओं को कराने वाले एंकर उतने ही लोकप्रिय।

ऐसे एंकरों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को हाल ही सख्त टिप्पणी करनी पड़ी। शीर्ष अदालत ने सवाल किया- यदि टीवी न्यूज एंकर हेट स्पीच की समस्या का हिस्सा हैं तो उन्हें हटा क्यों नहीं दिया जाता? कोर्ट की टिप्पणी थी, ‘टीवी चैनल और उसके एंकर शक्तिशाली विजुअल मीडियम के जरिए टीआरपी के लिए समाज में विभाजनकारी और हिंसक प्रवृत्ति पैदा करने वाला कुछ खास एजेंडा बेचने का औजार बन गए हैं।’ धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नफरत फैलाने वाले न्यूज चैनलों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ऐसे चैनलों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

चैनलों की नैतिकता, मर्यादाओं और परिचालन के मामलों पर प्रमुख न्यूज चैनलों ने न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी का गठन किया था। हेट स्पीच पर लगाम कसने की दिशा में दोनों संगठनों ने जो कदम उठाए, वे बेअसर एवं अप्रभावी रहे। अदालत ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि प्रिंट मीडिया के विपरीत समाचार चैनलों के लिए कोई भारतीय प्रेस परिषद नहीं है। नफरत फैलाने वाली सामग्री के प्रसारण पर रोक के लिए सख्त गाइडलाइन के साथ सजग निगरानी तंत्र भी जरूरी है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!