हिंदी हमारा अधिकार नहीं उत्तरदायित्व है-सुरेंद्र नाथ तिवारी।

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भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने के लिए हिंदी एक माध्यम है-डाॅ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव।

विश्व में हिंदी को प्रतिष्ठित करने में विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस, विश्व हिंदी सम्मेलन और प्रवासी भारतीय का योगदान है।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय मोतिहारी स्थित हिंदी विभाग में हिंदी साहित्य सभा की ओर से गाँधी भवन परिसर स्थित नारायणी कक्ष में “अमेरिका में हिन्दी और हिन्दी साहित्य” विषय पर व्याख्यान का आयोजन गुरूवार को किया गया।

अमेरिका से पधारे मुख्या वक्ता सुरेंद्र नाथ तिवारी ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि आप रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी और रामचरितमानस ग्रंथो को पढ़ेंगे तो आप में स्वतः हिंदी का ज्ञान और प्रखर हो जाएगा। हिंदी वह सिढ़ी है जिससे चढ़कर आप भारतवर्ष की ऊंचाई को जान सकते हैं, क्योंकि भाषा में एक जान होती है, एक आत्मा होती है, उस आत्मा को पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति लालायित रहता है।

मैं 1992 से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति से जुड़ा रहा हूं,इसके द्वारा ‘विश्वा’ नाम की एक पत्रिका निकाली जाती रही है। 18 अक्टूबर 1980 को पहली बार बाल्टीमोर (अमेरिका) में कवि सम्मेलन हुआ और आज 20 से 25 शहरों में प्रतिवर्ष कवि सम्मेलन का आयोजन होता है। संस्था के द्वारा बच्चों को हिंदी शिक्षण भी दिया जाता है। हिंदी साहित्य के लिए ‘जागृति’ नाम से एक कार्यक्रम भी चलाई जाती है ताकि जनता में जागरूकता आए और यह साहित्य जीवंत रहे।

मुझे यह कहते हुए हर्ष हो रहा है कि इस कार्यक्रम के मंच पर हिंदी के कई ख्याति प्राप्त विद्वान आए और उन्होंने अपने उद्बोधन से लोगों को प्रभावित किया। यह कार्यक्रम प्रत्येक महीने की दूसरी शनिवार को होता है। आज अमेरिका के कुछ विद्यालयों में सामाजिक विज्ञान विषय में ही हिंदी की पढ़ाई होती है। दरअसल स्वतंत्रता के बाद भारत का व्यापार बढ़ा है, यही कारण है कि आज देश में 168 से अधिक अरबपति हैं। इसका मतलब है कि दुनिया में भारत की हनक बड़ी है। हम जितने मजबूत होंगे, उतनी ही हमारा सम्मान बड़ेगा।आज अमेरिका जैसे देश में हिंदी भाषा सत्रह लाख लोगों द्वारा बोली समझी और पढ़ी जाती है यह हम सभी के लिए गर्व का विषय है|

यह कहना पड़ेगा कि हमारी फूट ने विदेशी जमीन पर हिंदी के पठन-पाठन व विस्तार को संकीर्ण किया है, लेकिन हमारी मिट्टी में मिठास है, जो अनेकता है,इसे हम बाहर जाकर महसूस कर सकते हैं। ये भाषाएं हमें बांधती हैं इसके लिए जरूरी है कि हिंदी से निकलकर कई और भाषाओं की पुस्तकों का अध्ययन किया जाना चाहिए। भाषाओं के प्रति समन्वय का भाव रखना चाहिए। हिंदी हमारा अधिकार नहीं उत्तरदायित्व है। कविताओं में बदलाव के लिए अध्ययन की आवश्यकता है। मैं यह कह सकता हूं कि जोक और व्यंग कविता की आत्मा नहीं है। कम शब्दों में अधिक से अधिक भाव को आप कविता के माध्यम से पहुंचा सकते हैं, यह मुझे अपनी कालजई पुस्तकों से प्राप्त हुआ है।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि दूरवर्ती इलाके में हिंदी के लिए काम करने वाले हमारे आदरणीय हैं।आपका विश्वविद्यालय में हार्दिक स्वागत है। आपकी कविताओं को मैंने पढ़ा है सुना है, आपकी कविता में मिथक है प्रेम है और सबसे बढ़कर प्रेरणा है। हिंदी के प्रति प्रेम, कर्मठता हमारी बोली-बानी भाषा को और समृद्ध कर रही है। आपकी कविता से पता चलता है कि आपको अपनी मिट्टी से कितना प्यार है। आपकी टिप्पणियां भी काफी मूल्यवान है। भारतवर्ष की संस्कृति से जुड़ने के लिए हिंदी निश्चित तौर पर एक माध्यम है, इस माध्यम का सदैव स्वागत होना चाहिए। यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आप हमारे बीच आए। आप शतायु हो, दीर्घायु हो और निरन्तर कविता करते रहे।

गौरतलब है कि सुरेंद्रनाथ तिवारी मूल रूप से पूर्वी चंपारण जिले में चिकनौटा ग्राम के रहने वाले है। भागलपुर विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद आप सेना में सेवा दिये,तत्पश्चात आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गये,जहां के प्रतिष्ठित ओहेयो विश्वविद्यालय से आपने एम.ई.और मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी कर कई विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य भी किये। आप पिछले चालीस वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं। कवि के रूप में आपकी ख्याति है,आपने कई साहितयिक मंचों का संचालन करने के साथ-साथ कविता पाठ भी किया है। आपकी की कविताओं में भारत का कण-कण बसता है। सुरेंद्र नाथ तिवारी प्रसिद्ध पत्रिका विश्वा के संपादन से सम्बद्ध रहे हैं,साथ ही अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति के भी न्यासी हैं।

इस मौके पर कई छात्र-छात्राओं ने मुख्य अतिथि से प्रश्न किए, जिसका उन्होंने बखूबी उत्तर दिया। इसके बाद कई शोधार्थियों ने अपनी कविता पाठ से पूरे सभागार को मुग्ध कर दिया। वहीं सुरेंद्रनाथ तिवारी ने भी अपनी कविताओं से सभी को भाव-विभोर कर दिया।
इस अवसर पर संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम कुमार झा, संस्कृत विभाग के सह-आचार्य डॉ. बबलू पाल, हिंदी विभाग के सह-आचार्य डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा, डॉ. गरिमा तिवारी,डॉ. श्यामनंदन, देवप्रिय मुखर्जी, विश्वजीत मुखर्जी और सुरेंद्र नाथ तिवारी की पत्नी कामिनी तिवारी सहित कई छात्र सभागार में उपस्थित रहे।


पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन शोधार्थी सोनू ठाकुर ने किया, जबकि हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि विश्व में हिंदी को प्रतिष्ठित करने में तीन संस्थाओं का विशेष योगदान है। पहला विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस, दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन और तीसरा आप जैसे प्रवासी भारतीय।वही मुख्य अतिथि का परिचय शोधार्थी राजेश पाण्डेय ने प्रस्तुत किया और अंत में समारोह का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी श्रीप्रकाश ने किया।

 

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