देश में कैसे-कैसे ब्रिज और क्या है इनकी खासियत?

देश में कैसे-कैसे ब्रिज और क्या है इनकी खासियत?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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रेल मंत्रालय ने 15 मार्च को सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया। ये वीडियो चिनाब नदी पर बन रहे दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे आर्च ब्रिज के बारे में है। ब्रिज का काम अंतिम चरण में है। पूरी तरह बनने के बाद ये ब्रिज पेरिस के एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा होगा। 1315 मीटर लंबे इस ब्रिज की लागत 1250 करोड़ रुपए आई है। इस ब्रिज को इंजीनियरिंग के कारनामे के तौर पर देखा जा रहा है।

ब्रिज के आर्च के दोनों हिस्सों को जोड़ दिया गया है। बताया जा रहा है कि इस ब्रिज पर माइनस 20 डिग्री सेल्सियस टेम्परेचर का भी कोई असर नहीं होगा। ब्रिज 250 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा रफ्तार वाली हवाओं को भी सहन कर सकता है। उम्मीद है कि दिसंबर 2022 तक इस पुल पर से ट्रेनों की आवाजाही शुरू हो जाएगी।

इससे पहले 13 मार्च को भी रेल मंत्रालय ने इस ब्रिज की खासियत बताने वाला एक वीडियो पोस्ट किया था।

बोगीबील ब्रिज असम
ये देश का सबसे लंबा रेल और रोड ब्रिज है। इसे डबल डेकर बनाया गया है। इसके ऊपर की 3 लेन पर सड़क बनी है और नीचे की 2 लेन पर रेल की पटरी बिछी है। असम के डिब्रूगढ़ के पास बोगीबील में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने इस पुल की लंबाई तकरीबन 4.94 किलोमीटर है।

लगभग 5,900 करोड़ रुपए से बने इस पुल को सुरक्षा रणनीति के नजरिए से काफी अहम माना जाता है। भारतीय सेना इस पुल के जरिए अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती हिस्सों में आसानी से पहुंच सकती है। पुल की सड़क इतनी मजबूत बनाई गई है कि इस पर से भारी सैन्य टैंक भी आसानी से गुजर सकते हैं।

इस पुल के शुरू होने के बाद असम से अरुणाचल प्रदेश के बीच की यात्रा का समय चार घंटे कम हो गया। इस परियोजना की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 22 जनवरी 1997 को रखी थी। 25 दिसंबर 2018 को इसे आम लोगों की आवाजाही के लिए खोल दिया गया।

बांद्रा-वर्ली सी लिंक

ये भारत का पहला 8 लेन ब्रिज होने के साथ-साथ सबसे लंबा समुद्रीय ब्रिज भी है। 5.6 किलोमीटर लंबा ये पुल बांद्रा को वर्ली से जोड़ता है। इस पुल के बनने से बांद्रा और वर्ली के बीच लगने वाले 45 मिनट के सफर को 6 मिनट में पूरा किया जा सकता है।

1999 में पुल के निर्माण कार्य की शुरुआत की गई। प्रारंभिक तौर पर इसकी अनुमानित लागत 660 करोड़ रुपए आंकी गई थी, लेकिन ब्रिज का पूरा काम 1600 करोड़ से भी ज्यादा में हो पाया। 2009 में इसे सार्वजनिक उपयोग के लिए खोला गया। एक अनुमान के मुताबिक पुल में पृथ्वी की परिधि के बराबर स्टील के तारों का इस्तेमाल किया गया है।

सिग्नेचर ब्रिज दिल्ली

यह भारत का यह पहला एसिमिट्रिकल केबल ब्रिज है यानी इसका आकार एक धनुष के जैसा है। कुतुबमीनार से लगभग दोगुना ऊंचा ये ब्रिज वजीराबाद को आउटर रिंग रोड से जोड़ता है। पेरिस के एफिल टॉवर की तरह इस ब्रिज के टॉप से दिल्ली के नजारों को देखा जा सकता है।

4 एलिवेटर्स के जरिए लोगों को ब्रिज के टॉप पर ले जाया जाता है जहां से वे दिल्ली शहर को देख सकते है। 675 मीटर लंबे और 154 मीटर ऊंचे इस पुल को बनाने में 1518 करोड़ रुपए की लागत आई है। 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने ब्रिज को बनाने की घोषणा की थी और नवंबर 2018 में ये बनकर तैयार हुआ।

अटल सेतु

रावी नदी पर बना अटल सेतु पंजाब को जम्मू-कश्मीर और हिमाचल से जोड़ने वाला केबल पुल है। 592 मीटर लंबे और 13.50 मीटर चौड़े इस पुल को बनाने में 200 करोड़ रुपए का खर्च आया। इस पुल का उद्घाटन उस वक्त के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने 24 दिसंबर 2015 को किया था।

पुल के बनने के बाद जम्मू-कश्मीर के बाशोली से पंजाब के दुनेरा के बीच यात्रा का समय काफी घट गया है। पहले इस दूरी को तय करने में जहां 4-5 घंटे लग जाते थे, वहीं अब बस आधा घंटा ही लगता है।

ढोला-सादिया सेतु

26 मई 2017 को आम जनता के लिए खोला गया ये पुल भारत का सबसे लंबा पुल है। इसे भूपेन हजारिका सेतु के नाम से भी जाना जाता है। 9.15 किलोमीटर लंबा ये पुल लोहित नदी पर बना है। 938 करोड़ रुपए की लागत से बने इस पुल का काम 2010 में शुरू हुआ था।

पुल पर यातायात शुरू होने के बाद असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की दूरी में लगने वाला समय 4 घंटे तक कम हो गया है। इस पुल पर से 60 टन वजनी टैंक आसानी से गुजर सकते हैं।

वाह्र ब्रिज मेघालय

ये भारत का सबसे लंबा स्टील आर्च ब्रिज है। वाह्र नदी पर बने इस पुल की लंबाई 169 मीटर है। 2014 से बन रहे इस पुल को 22 जनवरी 2021 को आम जनता के लिए खोला गया। ब्रिज भोलागंज और सोहबर को नोंगजिरी से जोड़ता है। इसे बनाने में 49.395 करोड़ रुपए की लागत आई है।

 

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