कनिष्क हवाई जहाज समुद्र में कैसे दफन हो गई?

कनिष्क हवाई जहाज समुद्र में कैसे दफन हो गई?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एटीसी हाई अल्टीट्यूड पर तीन प्लेन को गाइड कर रहा था। देखते ही देखते ये तीनों प्लेन एक ही लोकेशन पर आ गए। इसलिए टूजी रडार पर प्लेन का नंबर आपस में ऐसे मर्ज हो गया कि ठीक से पढ़ पाना भी मुश्किल होने लगा। तभी रडार पर अचानक तीनों में से एक प्लेन गायब हो गया।

लेकिन कहां? एक पल को लगा कि ये तीनों प्लेन आपस में टकरा गए हो। पर ऐसा नहीं था और इनके बीच हजारों फीट का फासला था। तो फिर ये कैसे हो गया? कनाडा ने भारत पर खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाया है और भारतीय राजनयिक के निष्कासन का कारण भी यही बताया है। दोनों देशों के रिश्ते रातों-रात तनावपूर्ण नहीं हुए हैं. पिछले कुछ वर्षों से तनाव बना हुआ है।

भारत ने कनाडा के आरोपों को बेतुका बताया और जवाबी कार्यवाही में कनाडा के राजनयिक को भी देश छोड़ने का आदेश सुनाया। पिछले कुछ महीनों में भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं। इसी सिलसिले में 1985 के कनिष्क विमान हादसे को याद करना भी जरूरी है जिसमें 329 लोगों की जान चली गई थी।

दो ब्लास्ट और निशाने पर भारत

12 अक्टूबर 1971 को डॉ. जगजीत सिंह चौहान ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक इश्तेहार छपवाया। इसमें उन्होंने अपने आप को तथाकथित खालिस्तान का पहला राष्ट्रपति बताया। उस वक्त बहुत कम लोगों ने इस घोषणा को तवज्यो दी लेकिन 80 का दशक आते आते खालिस्तान का आंदोलन परवान चढ़ गया। पंजाब पुलिस के आंकड़े की माने तो 1981 से 1993 तक 12 वर्षों में चली खालिस्तानी हिंसा में 21 हजार 469 लोगों ने अपनी जान दी।

एक जमाने में भारत के सबसे समृद्ध राज्य पंजाब की अर्थव्यवस्था को खस्ता कर दिया। साल 1985 में कनाडा के माउंट्रियल एयरपोर्ट से एक फ्लाईट टेकऑफ करती है। इस फ्लाईट की डेस्टिनेशन मुंबई थी। लेकिन बीच में फ्लाईट लंदन में हॉल्ट लेती है। इसलिए फ्लाईट आयरलैंड के एयरस्पेस में घुसती है। जब प्लेन एटलांटिक महासागर के ऊपर था अचानक रडार पर पर से गायब हो जाता है। बाद में प्लेन 31 हजार फीट की ऊंचाई से सीधा समुद्र में जाकर गिरता है।

82 बच्चे 4 नवजात समेत 329 लोगों के लिए एटलांटिक उस दिन कब्रगाह बन जाता है। वहां से कुछ हजार मील दूर टोकियो के एयरपोर्ट पर एक और घटना होती है। इस प्लेन हादसे से करीब एक घंटा पहले ही बैगेज एरिया में बम फटा और दो लोगों की जान चली गई। जब तहकीकात हुई तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि इन दोनों हादसों का आपस में कनेक्शन था। बाद में पता चला कि इस साजिश का निशाना भारत था और साजिश को बब्बर खालसा नामक आतंकी संगठन ने अंजाम दिया था।

खुफिया अलर्ट के बावजूद बरती गई लापरवाही

कनाडा में प्रवासी भारतीयों के बीच महीनों से अफवाहें थीं कि कुछ बड़ा होने वाला है। बहुत सारे संकेत भी दिखाई दे रहे थे। लेकिन कोई भी ध्यान से ध्यान नहीं दे रहा था। आख़िरकार फुसफुसाहटें इतनी तेज़ हो गईं कि भारतीय ख़ुफ़िया ब्यूरो भी सुन सके। उन्होंने 1 जून 1985 को कनाडाई अधिकारियों और एयर इंडिया प्रशासन दोनों को एक टेलेक्स भेजा, जिसमें उनसे सिख चरमपंथियों द्वारा संभावित हवाई हमले के खिलाफ सुरक्षा उपाय करने को कहा गया।

लेकिन इतना ही नहीं था। ब्लास्ट से कुछ दिन पहले, कनाडाई खुफिया अधिकारी, जो आतंकवादी समूह बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) या टाइगर्स ऑफ ट्रू फेथ के संस्थापक और नेता तलविंदर सिंह परमार पर नज़र रख रहे थे, उन्होंने एक जंगल में उनके द्वारा किए गए विस्फोटक परीक्षण के बारे में सुना।

लेकिन फिर भी उन्होंने इसे बंदूक की गोली समझकर नजरअंदाज कर दिया। अगले ही दिन निगरानी बंद कर दी गई। और तो और, खतरे के सबूत के बावजूद कनाडा की सुरक्षा ढीली थी। कनाडा के सभी हवाई अड्डों से खोजी कुत्ते गायब थे क्योंकि वे सभी वैंकूवर में प्रशिक्षण सत्र में थे। उड़ान के दिन टोरंटो के पियर्सन हवाई अड्डे पर एक्स-रे स्क्रीन ‘टूट’ गईं।

23 जून 1985 का वो काला दिन

22 जून को मंजीत सिंह नामक एक व्यक्ति ने एयरलाइंस को फोन किया, पूछा कि क्या उसका टिकट कन्फर्म है, और उसे बताया गया कि वो प्रतीक्षा सूची में है। सम्राट कनिष्क में उसका टिकट था, जिसे भारत आना था। मंजीत चाहता था कि उसका बैगेज एयरइंडिया की फ्लाईट में सीधे चेक-इन कर दिया जाए। लेकिन दिक्कत ये थी मंजित का टिकिट वेटिंग पर था। बिजनेस क्लास के टिकटधारी मंजित की जिद के बाद चेक-इन कराने को एयरपोर्ट कर्मचारी तैयार हो गई। मंजित का लाल रंग का सूटकेस चेक-इन करा दिया गया। इसके बाद बैंकूवर से टोरंटो 30 लोग पहुंचते हैं ताकि कनिष्क में सवार हो सके।

लेकिन मंजित नहीं क्योंकि वो फ्लाईट में बैठा ही नहीं। टोरंटो में एयर इंडिया का स्टाफ सामान की चेकिंग कर रहा था उसी वक्त इत्तेफाक से एक्स रे मशीन खराब हो गई। तभी हाथ से पकड़ने वाले स्कैनर से सामान की चेकिंग करने लगा। इस दौरान मंजित की बैग के पास से हल्की सी बीप की आवाज भी आती है। लेकिन चेकिंग करने वाले ने इसे नजरअंदाज कर दिया। मंजित का बैग इस तरह एयर इंडिया के कनिष्क 182 में चढ़ जाता है। टोरंटो से फ्लाईट माउंट्रियल पहुंचती है जहां कुछ और लोग विमान में सवार होते हैं। अब तक यात्रियों की संख्या 307 हो गई।

इनमें 68 कनाडा के नागरिक थे और इनमें 84 बच्चे भी शामिल थे। अधिकतर भारत के मूल निवासी थे। कनिष्क 182 आयरलैंड के आसमान में थी और लंदन की ओर जा रही थी। 23 जून को सुबह के 9 बजे एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने पाया कि विमान रडार से गायब हो गया। एयर इंडिया फ्लाईट 182 को कोई चेतावनी कॉल भी जारी करने का मौका नहीं मिला। कनाडा के माउंट्रियल एयरपोर्ट से उड़ान भरने के 45 मिनट के भीतर ही इसमें विस्फोट हो गया। विमान में सवार 329 लोगों में से केवल 131 लोगों के शव ही समुद्र से बरामद किए जा सके।

एक और विमान को उड़ाने की थी साजिश

हमलावर ने उसी दिन एयर इंडिया के एक और विमान पर हमला करने की योजना बनाई थी। लेकिन मानवीय चूक की वजह से ये हमला नाकाम हो गया। दूसरा बम जापान के टोक्यो हवाई अड्डे पर फंसा, जिसमें सामान संभालने वाले दो लोगों की मौत हो गई। असल योजना थाइलैंड में बैंकांक जाने वाली एयर इंडिया 301 को बम से उड़ाने की थी। इन हमलों के पीछे सिख आतंकवादियों का हाथ बताया गया।

हमला के कुछ ही घंटों के भीतर अमेरिका के न्यूयार्क के न्यूजपेपर ऑफिसों में हमले की जिम्मेदारी लेने से संबंधित कॉल आने शुरू हो गए। तीन अलग-अलग समूहों दशमेश रेजिमेंट, ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट फेडरेशन, कश्मीर लेबरेशन आर्मी ने धमाके की श्रेय लेने के लिए कॉल किया।

कृपाल आयोग का गठन

भारत सरकार ने धमाके की जांच के लिए कृपाल आयोग गठित की। इसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति बीएन कृपाल ने की थी। इससे इतर सीबीआई ने भी मामले की साजिश की जांच की थी। कृपाल आयोग का काम ये पता लगाना था कि ये ब्लास्ट था या फिर इंजन की खराबी से विस्फोट हुआ था। आयोग ने पाया कि ये आतंकी हमला था। सीबीआई ने जांच में पता लगाया कि हमले में पंजाब के आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल का हाथ था और इसका मास्टरमाइंड तलविंदर सिंह परमार था।

कनाडा में धीमी जांच

एयर इंडिया 182 का परीक्षण कनाडा के इतिहास में सबसे लंबा और सबसे महंगा था, जो दो दशकों से अधिक समय तक चला और इसकी लागत लगभग 130 मिलियन डॉलर थी। फिर भी, इस सब के लिए, यह काफी हद तक निरर्थकता का अभ्यास था। 1985 और उसके बाद के वर्षों की घटनाओं ने आपदा से लेकर अव्यवस्था और हार की उपेक्षा तक की एक प्रक्षेपवक्र का अनुसरण किया। 1985 में आरसीएमपी और कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा (सीएसआईएस) द्वारा जांच शुरू करने के साथ एक आशाजनक शुरुआत से लेकर 1991 में रेयात पर हत्या और बम रखने का आरोप लगने, 1992 में भारत में एक पुलिस मुठभेड़ में परमार के मारे जाने के बाद मुकदमा एक स्थिर स्थिति में पहुंच गया।

भारत में अपनी आतंकवादी गतिविधियों के बीच 1981 में पंजाब के दो पुलिस अधिकारियों की हत्या में परमार मुख्य व्यक्ति था, लेकिन वह कनाडा वापस चला गया और यहां तक ​​कि पश्चिम जर्मनी की यात्रा भी की। दोनों देशों ने परमार को भारत में प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया, पश्चिमी जर्मनी ने उसे जाने देने से पहले एक साल के लिए जेल में डाल दिया। मिलेवस्की ने ब्लड फॉर ब्लड में लिखा, “पश्चिमी सरकारें भारत की आंतरिक लड़ाई में पक्ष लेने की इच्छुक नहीं थीं। फ़्लाइट 182 बमबारी के बाद के वर्षों में परमार 1988 में पाकिस्तान चले गए और अपनी मृत्यु तक पंजाब में सीमा पार भूमिगत रूप से अपनी गतिविधियाँ जारी रखीं।

हालाँकि, 1992 की मुठभेड़ से पहले के दिनों पर एक छाया मंडरा रही है। पंजाब पुलिस के सेवानिवृत्त डीएसपी हरमेल सिंह चंडी ने 2007 में आरोप लगाया था कि वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर हिरासत में मारे जाने से पहले उन्होंने परमार से पांच दिनों तक पूछताछ की थी। चंडी ने दावा किया कि ये वरिष्ठ अधिकारी परमार के कबूलनामे के रिकॉर्ड को भी “नष्ट” करना चाहते थे, जिसमें बमबारी में उसकी संलिप्तता की सीमा का विवरण दिया गया था।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!