केंद्र खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण कैसे हुआ है?

केंद्र खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण कैसे हुआ है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत सरकार ने किसानों को उचित पारिश्रमिक प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2023-24 मौसम के लिये खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को मंज़ूरी दी है।

  • हालाँकि किसान संगठनों ने बढ़ती लागत के साथ MSP नहीं बढ़ने को लेकर चिंता जताई है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य:

  • MSP किसानों को भुगतान की जाने वाली गारंटीकृत राशि है जिस पर सरकार उनकी उपज खरीदती है।
    • सरकार ने 22 अनिवार्य फसलों के लिये MSP और गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) की घोषणा की।
      • अनिवार्य फसलें खरीफ मौसम की 14 फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य व्यावसायिक फसलें हैं।
    • इसके अलावा तोरिया और छिलके वाले नारियल का MSP क्रमशः तोरिया/सरसों और खोपरा के MSP के आधार पर तय किया जाता है।
    • MSP कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित है, जिसमें उत्पादन की लागत, मांग और आपूर्ति, बाज़ार मूल्य के रुझान, अंतर-फसल मूल्य समानता आदि जैसे विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है।
      • CACP कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार का एक संबद्ध कार्यालय है। यह जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया।
    • भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) MSP के स्तर पर अंतिम निर्णय (अनुमोदन) लेती है।
  • MSP का उद्देश्य उत्पादकों को उनकी उपज के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना है।

खरीफ फसलें: 

  •  खरीफ फसलें वे फसलें हैं जो जून से सितंबर तक वर्षा ऋतु में बोई जाती हैं।
    • धान, मक्का, कदन्न, दालें, तिलहन, कपास और गन्ना कुछ प्रमुख खरीफ फसलें हैं।
  • भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन में खरीफ फसलों का योगदान लगभग 55% है।

वर्ष 2023-24 के लिये खरीफ फसलों हेतु MSP:

  • केंद्र ने दावा किया है कि वर्ष 2023-24 के लिये खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी केंद्रीय बजट 2018-19 की अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के कम- से-कम 1.5 गुना के स्तर पर MSP तय करने की घोषणा के अनुरूप है।
    • सभी 14 खरीफ फसलों के लिये MSP में 5.3 से लेकर 10.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। व्यावहारिक तौर पर देखें तो यह 128 रुपए बढ़कर 805 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है।
    • वर्ष 2022-23 में हरे चने (मूँग) में सबसे अधिक 10.4% की वृद्धि हुई, इसके बाद तिलहन में 10.3% की वृद्धि देखने को मिली

किसानों की चिंताएँ:

  • अपर्याप्त लागत निर्धारण: किसानों ने इंगित किया है कि MSP (A2+FL लागत) की गणना के लिये CACP द्वारा उपयोग की जाने वाली उत्पादन लागत में किसानों द्वारा किये गए सभी खर्च; भूमि का किराया, ऋण पर ब्याज, पारिवारिक श्रम आदि शामिल नहीं किये गए हैं।
    • उनकी मांग है कि MSP का निर्धारण स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित उत्पादन की व्यापक लागत (C2) के आधार पर होना चाहिये।

उत्पादन लागत के तीन प्रकार:

  • ‘A2’: यह किसान द्वारा बीज, उर्वरक, कीटनाशकों, किराये के श्रम, लीज़ पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर सीधे तौर पर नकद और वस्तु के रूप में किये गए सभी भुगतान लागतों को कवर करता है।
  • ‘A2+FL’: इसमें A2 और अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक आरोपित मूल्य शामिल होता है।
  • ‘C2’: यह A2+FL के शीर्ष पर स्वामित्व वाली भूमि और अचल पूंजीगत संपत्तियों पर किराये तथा ब्याज को छोड़कर एक अधिक व्यापक लागत है।
  • बाज़ार प्रतिबिंब का अभाव: उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि MSP वास्तविक बाज़ार स्थितियों और मुद्रास्फीति के रुझान को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
    • उन्होंने मांग की है कि किसानों को उचित लाभ सुनिश्चित करने हेतु MSP को थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) से जोड़ा जाना चाहिये।
  • खरीद तंत्र पर संदेह: उन्होंने किसानों को उनकी उपज हेतु MSP सुनिश्चित करने के लिये खरीद तंत्र और पर्याप्त बुनियादी ढाँचे एवं भंडारण सुविधाओं की उपलब्धता पर भी संदेह जताया है।
    • उनका आरोप है कि सरकार अक्सर बाज़ार की कीमतों में हेर-फेर करने और MSP को कम करने हेतु आयात या निर्यात नीतियों का सहारा लेती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ और फसल-विशिष्ट मुद्दे: उन्होंने MSP के कार्यान्वयन में क्षेत्रीय असमानताओं और फसल-विशिष्ट मुद्दों पर भी प्रकाश डाला है।
    • उन्होंने दावा किया है कि MSP केवल कुछ फसलों और कुछ राज्यों को लाभ पहुँचाता है, जबकि कई अन्य फसलों एवं क्षेत्रों को नकार देता है।
    • उन्होंने मांग की है कि MSP को सभी फसलों और सभी राज्यों तक बढ़ाया जाना चाहिये एवं MSP हेतु कानूनी गारंटी होनी चाहिये।

आगे की राह

  • तकनीकी समाधान: सटीक कृषि, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और रिमोट सेंसिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करने से फसल की पैदावार को अनुकूलित करने, उत्पादन लागत को कम करने एवं किसानों की जानकारी तक पहुँच बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
    • मोबाइल एप्लीकेशन और प्लेटफॉर्म विकसित करना जो किसानों को रीयल-टाइम बाज़ार की जानकारी, मौसम अपडेट और सर्वोत्तम विधि प्रदान करते हैं, जिससे वे फसल चयन एवं मूल्य निर्धारण के बारे में उचित निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैं।
  • फसलों का विविधीकरण: किसानों को उच्च मूल्य और जलवायु के अनुकूल फसलों की खेती हेतु प्रोत्साहित करके फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने से पारंपरिक फसलों के लिये MSP पर उनकी निर्भरता कम हो सकती है।
    • जैविक खेती, ऊर्ध्वाधर खेती और हाइड्रोपोनिक्स जैसी नवीन कृषि पद्धतियों को अपनाकर किसानों को स्थानीय बाज़ारों से जोड़कर उच्च लाभ अर्जित करने में मदद मिल सकती है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सरकार, निजी क्षेत्र और किसान संगठनों के बीच साझेदारी को सुविधाजनक बनाने से बाज़ार संबंध अच्छे बन सकते हैं, मूल्यवर्द्धन में वृद्धि हो सकती है तथा किसानों से सौदेबाज़ी में सुधार हो सकता है।

 

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