कैसे भरा भारत का अनाज भंडार?

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30 फीसद से अधिक हुई पैदावार.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में दुनिया की 17.84 फीसद आबादी और 15 फीसद मवेशी रहती है। जबकि केवल 2.4 फीसद भूमि और चार फीसद जल ही उसके हिस्से में है। इन विरोधाभाषी आंकड़ों के बावजूद भारत न सिर्फ अपनी लगभग डेढ़ अरब आबादी का पालन-पोषण करता है बल्कि दुनिया की खाद्य सुरक्षा का भार उठाने का साहस दिखा पा रहा है तो कारण सरकार की दूरगामी सोच भी है। सरकार की नीतियों, उत्पादकता बढ़ाने वाले वैज्ञानिक इनोवेशंस, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, प्री एंड पोस्ट हार्वेस्टिंग मैनेजमेंट और आधुनिक टेक्नोलाजी पर क्रियान्वयन के नाते यह संभव हो सका है। कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते निजी निवेश और स्टार्टअप से और बेहतर की अनुमान है।

कृषि क्षेत्र के घिसटते पांव को रफ्तार देने में देश में कृषि वैज्ञानिकों की बड़ी संख्या अरसे है। साढ़े तीन सौ से अधिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, 75 कृषि विश्वविद्यालयों और इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICR) के कुल 20 हजार से अधिक वैज्ञानिकों की फौज जिसने भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन कई स्तर पर सुस्ती थी और यही कारण है कि लैब (प्रयोगशाला) के सफल नतीजों को लैंड (जमीन) पर उतारने वाली ‘लैब टू लैंड स्कीम’ होने के बावजूद यह पूरी तरह असर नहीं दिखा पा रही थी।

पिछले सात आठ वर्षों में इसे ईमानदारी से जमीन पर उतारने की कोशिश शुरू हुई। हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्रों को सक्रिय किया गया, मुफ्त बीजों का वितरण हुआ। केंद्र की एक लाख करोड़ रुपए की लागत वाली एग्री इंफ्रा फंड स्कीम ने इस क्षेत्र की बुनियादी जरूरतों को पूरा किया है।

प्रत्येक जिले में स्थापित 731 कृषि विज्ञान केंद्रों को बनाया गया वाइब्रेंट

खेती के प्रमुख इनपुट मिट्टी की सेहत, सिंचाई को पानी, उन्नतशील प्रजाति के बीज और टेक्नोलाजी की उपलब्धता के लिए सरकारी नीतियों के माध्यम से कारगर तरीके से जमीन पर उतारा गया। इसके पहले चरण में ही प्रत्येक जिले में स्थापित 731 कृषि विज्ञान केंद्रों को वाइब्रेंट बनाया गया। उत्पादकता के अंतर को घटाने के लिए सीड रिप्लेशमेंट रेट को बढ़ाया है। फर्टिलाइजर की उपलब्धता और उसके संतुलित प्रयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। नीम कोडेट यूरिया इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

जीनोम एडिटिंग की केंद्र सरकार ने दी अनुमति

ट्रांसजेनिक के विवादों से अलग केंद्र सरकार ने सीड टेक्नोलाजी में फसलों की जीनोम एडिटिंग की अनुमति दे दी है। इससे उत्पादकता में कई गुना तक की वृद्धि हो सकती है। कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की घटती संख्या की चुनौती से निपटने के लिए मशीनीकरण को बढावा दिया गया है। इस क्षेत्र में हर स्तर पर मशीनों का प्रयोग होने लगा है। बोआई से लेकर फसल सुरक्षा, कटाई ही नहीं बल्कि पोस्ट हार्वेस्टिंग में आधुनिक मशीनों का प्रयोग हो रहा है। इस क्षेत्र में नए-नए स्टार्टअप आ रहे हैं, जिससे खेती की लागत घटेगी और उत्पादकता में वृद्धि संभव हुई है।

मार्केटिंग में सुधार कर ई- नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ईनाम) से देश की 1000 मंडियों को जोड़ दिया गया है, जिससे कृषि उपज कारोबार को नई दिशा मिली है। छोटी जोत की चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक खेती के कांसेप्ट को लागू करते हुए फार्मर्स प्रोड्यूसर्स आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) को कानूनी जामा पहनाया गया है। कम लागत वाली खेती को प्रोत्साहित करते हुए सरकार ने प्राकृतिक और जैविक खेती को आगे बढ़ाया है।

हार्टिकल्चर उत्पादों में दर्ज हुई 16 फीसद तक की वृद्धि

उत्पादकता की वजह से ही खाद्यान्न की पैदावार में कुछ वर्षों के भीतर ही खाद्यान्न की पैदावार में 30 फीसद और हार्टिकल्चर उत्पादों में 16 फीसद तक की वृद्धि दर्ज की गई है। खाद्यान्न का कुल उत्पादन वर्ष 2014-15 में जहां 25.15 करोड़ टन था वह वर्ष 2021-22 में बढ़कर 31.60 करोड़ टन पहुंच गया है।

इसी तरह बागवानी फसलों की पैदावार वर्ष 2014-15 में 28.34 करोड़ टन थी वह 2021-22 में बढ़कर 33.10 करोड़ टन पहुंच चुकी है। दलहन की पैदावार 2015-16 में 1.63 करोड़ टन थी जो वर्ष 2021-22 में 2.7 करोड़ टन पहुंच गई है। इसी तरह तिलहनी फसलों की कुल पैदावार जहां पहले 2.53 करोड़ टन थी वह अब बढ़कर 3.71 करोड़ टन पहुंच गई है।

देश की बढ़ती आबादी का पेट भरने के साथ अब हम विश्व बाजार में भी अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गए हैं। इसका श्रेय देश के मेहनती किसानों, अच्छी जलवायु और केंद्र व राज्यों के बीच बेहतर नीतिगत समन्वय को भी दिया जाना चाहिए। डेयरी और मत्स्य क्षेत्र को विकसित करने के लिए अलग से मंत्रालय गठित किया गया है, जिसमें किसानों की आमदनी बढ़ाने से लेकर निर्यात की अपार संभावनाएं हैं।

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