अपने घर में लड्डू गोपाल को रखे है या रखना चाहते हैं तो जाने सेवा की विधि

अपने घर में लड्डू गोपाल को रखे है या रखना चाहते हैं तो जाने सेवा की विधि

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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लडडू गोपाल जी  कितना प्यारा कितना नटखट नाम लगता है. सुनते ही मुख पर मुस्कान आ जाए. यदि तो वह रहस्य है जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण के भक्त उनके बालस्वरूप लडडू गोपाल को अपने घर में विराजमान कराते हैं. श्रीकृष्ण की भक्त और उनकी भक्ति की विधि सबसे निराली है. स्वयं ब्रह्माजी इस रहस्य को अब तक नहीं समझ पाए हैं. उन्होंने श्रीकृष्ण के इतने स्वरूपों के दर्शन किए हैं जिसके वर्णन में करोड़ो वर्ष लगेंगे. यह मनगढंत बात नहीं ऐसा ब्रह्माजी ने स्वयं बताया है. यह प्रसंग प्रश्न उपनिषद में आता है.

भगवान श्रीकृष्ण को किस-किस रूप में भजा जा सकता है, यह प्रश्न ऋषियों ने ब्रह्माजी के सामने रखा था. भगवान को कोई बालक रूप में कोई, संगी-साथी रूप में कोई मित्र-सखा तो कोई प्रेमी रूप में भजता है. यह बात ऋषियों को परेशान करती थी. उन्हें शंका हुई कि यदि श्रीकृष्ण स्वयं नारायण हैं तो इस प्रकार की आराधना तो उनका निरादर है.

ऋषियों ने अपनी चिंता ब्रह्माजी के सामने रखी थी. ब्रह्माजी ने बहुत सुंदर उत्तर दिया था. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को भजने-पूजने के संबंध में जो सुंदर बातें बताई हैं वे सब प्रश्न उपनिषद में आती हैं. यह पूरा प्रसंग मैंने आपको पहले सुनाया था. श्रीकृष्ण की पूजा कैसे होनी चाहिए. यहां आप पुनः पढ़ सकते हैं. नीचे लिंक है-

 

भगवान के बालरूप यानी लडडू गोपाल जी की भी पूजा की जाती है. लड्डू गोपाल जी की पूजा, संतान सुख, संतान के उत्तम भविष्य, घर में सुख-शांति, धन-धान्य की कामना से की जाती है. इसमें भाव ऐसा होता है कि लडडू गोपाल जी अब यह घर मेरा नहीं है- आपका है. आप ही इसके स्वामी, इसके पालक, इसके रक्षक सबकुछ हैं. जो होगा वह सब आपके आशीर्वाद से होगा. जो प्राप्त होगा वह आपका प्रसाद होगा. मैं अपने कर्म वैसे ही रखूंगा या रखूंगी जो कर्म शास्त्रसम्मत हैं. इसके आगे सब आपके हाथ में प्रभु. आप ही पालनहार, आप ही खेवनहार.

लडडू गोपालजी की निरीह बालक के रूप में सेवा के पीछे क्या भाव है?

लडडू गोपाल जी की सेवा भक्ति बड़े नियम से होती है बिलकुल एक असहाय शिशु की तरह. संसार को चलाने वाले की सेवा एक असहाय शिशु की तरह करने के पीछे का भाव समझिए. गोपाल जी चाहते हैं हमारे अंदर सेवा का भाव ऐसा हो कि अपने तो अपने, द्वार तक पहुंच गए किसी अपरिचित को भी प्रेमभाव से रखेंगे. उसकी सेवा-भगत करेंगे, उसे अंजाने में भी कष्ट न हो इसका प्रयास करेंगे. यदि ऐसा कर लेते हैं तो फिर आप अपनी, अपने परिजनों और अपने घर-संसार की ओर से बेफिक्र रहिए. आपके लिए लडडू गोपाल तैनात हैं न. यदि सिर्फ उनकी चारों पहर की सेवा करते हैं लेकिन भाव नहीं आया तो फिर समझिए कि आपने घर में अपना मन बहलाने के लिए एक खेल का सामान भर रख लिया है. बस, इससे आगे कुछ नहीं.

 

घर में विराजे लडडू गोपाल की सेवा विधिः  

भाव का नाम ही भगवान है. मन चंगा तो कठौती में गंगा. लडडू गोपाल जी की सेवा तो भाव का शिखर बिंदु हैं जहां भगवान का घर में प्रवेश ही इस भाव से काराया जाता है कि अब इस घर का मालिक कोई और हो गया. जैसे मालिक का विशेष ध्यान रखना होता है वैसे ही लडडू गोपाल जी का विशेष ध्यान रखना होता है. अपने सामर्थ्य अनुसार घर में विराजमान लडडू गोपाल जी की सेवा करनी चाहिए. भगवान को ताम-झाम कभी नहीं चाहिए. हम उन्हें संसार का ऐश्वर्य क्या देंगे भला, उन्हें तो श्रद्धा-प्रेम की तलाश है.

नीचे कुछ प्रचलित मान्यताएं, कुछ विधान बताए जा रहे हैं. ये विधान भगवान को भजने वाले उन भक्तों की सेवा से प्रचलन में आए जिनकी भक्ति के वश में वशीभूत हो गए लडडू गोपाल जी. परंतु यदि अंतिम विधान नहीं है. इसे तो बस एक मार्गदर्शक मान लें.

लडडू गोपाल जी की सेवा में प्रचलित विधान जिसका रखें विशेष ध्यानः

  • जिस घर में लडडू गोपाल जी का प्रवेश हो जाता है वह घर लडडू गोपाल जी का हो जाता है. इसी भाव से लडडू गोपाल जी का घर में अभिनंदन करें. मेरा घर का भाव मन से छोड़कर लडडू गोपाल जी के घर का भाव मन में बिठा लेना चाहिए.
  • जिस घर में लडडू गोपाल जी आ गए वहां पर मांस-मदिरा जुआ आदि का प्रवेश नहीं होना चाहिए. इस नियम को नहीं मान सकते तो फिर लडडू गोपालजी को न लाएं, अन्यथा भगवान कुपित हो जाते हैं.
  • एक बात अक्सर आती है कि क्या घर में एक से अधिक लडडू गोपाल जी हो सकते हैं. वैसे तो इस विषय पर प्रामाणिक रूप से क्या कहा जा सकता है पर भाव से देखें तो एक ही रखें. घर का स्वामी एक ही हो. वैसे घर में एक से अधिक बच्चे होते हैं इसलिए एक से अधिक लडडू गोपाल जी का विराजमान होना कोई अनुचित है ऐसा कहना शायद उचित न हो. हां कई बार ऐसा होता है कि परिवार के सदस्यों में आपसी प्रतिस्पर्धा या आपसी खटपट के परिणामस्वरूप एक से अधिक लडडू गोपाल जी या कई बार किसी टोटके के रूप में लोग रख लेते हैं. यह उचित नहीं है. बाकी तो भगवान और भगत के बीच का भाव है, जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन्हीं देखि तैसी.
  • लडडू गोपाल जी की जरूरतों का ध्यान भी परिवार के सदस्य की जरूरतों के अनुसार ही रखना चाहिए. उन्हें भी पर्व-त्योहार आदि पर विशेष लाड-प्यार चाहिए. लडडू गोपाल जी की हर आवश्यकता का ध्यान रखें.
  • लडडू गोपाल जी की आवश्यकता का ध्यान रखने का अर्थ यह नहीं कि उनके लिए बहुत ताम-झाम करने की जरूरत है. लडडू-गोपाल जी तो बालक भाव में हैं. उन्हें ताम-झाम से क्या काम. उन्हें तो प्रेम चाहिए.
  • लडडू गोपाल जी को प्रतिदिन सुबह स्नान अवश्य कराना चाहिए. जैसा मौसम है उसके अनुकूल पानी हो. सर्दी हो तो गुनगुना पानी, गर्मी है तो ठंढा जल. हो सके तो उसमें गुलाबजल भी थोड़ा डाल दें.
  • स्नान कराने के बाद लडडू गोपाल जी को साफ-सुथरे वस्त्र पहनाएं. वस्त्र की रोज धुलाई होनी चाहिए. लडडू गोपाल जी को चटक रंग पसंद हैं. उन्हें बन-ठन के रहना भी पसंद है. ऐसा समझना चाहिए.
  • लडडू गोपाल जी के वस्त्र भी ऋतु के अनुसार होने चाहिए. सर्दियों में गर्म कपड़े, गर्मियों में हल्के सूती कपड़े. गर्मी से बचाव का प्रबन्ध भी होना चाहिए.
  • लडडू गोपाल जी बालक हैं. उन्हें खिलौने बहुत प्रिय हैं जैसे हर बालक को होते हैं. लडडू गोपाल जी के लिए खिलौने अवश्य लेकर आएं और उनके साथ समय निकालकर खेलें भी.
  • जिस प्रकार आपको भूख महसूस है वैसे ही लडडू गोपाल जी को भी भूख लगती है. आपके घर के बालक जिस-जिस समय भोजन की आशा रखते हैं वैसे ही लडडू गोपाल जी को भोजन अल्पाहार आदि कराना है.
  • घर से बाहर यदि कुछ खा रहे हैं तो भोजन को प्रणाम कर कहें पहले गोपाल जी आप भोग लगाओ, फिर मैं करूंगा. विनती करने के बाद कुछ पल विराम कर लें. फिर उस भोजन को लडडू गोपाल जी का प्रसाद समझकर सप्रेम ग्रहण करें.
  • घर में यदि खाने-पीने की कोई विशेष वस्तु आ रही है तो परिवार के सदस्यों की गिनती करते समय लडडू गोपाल जी की भी गिनती हो. उनके हिस्से का भी सामान आना चाहिए.
  • लडडू गोपाल जी को भी बाहर घुमाने समय-समय पर अवश्य लेकर जाएं. उनका भी मन घर में रहके अकुला जाता है.
  • सबसे बड़ी बात, लडडू गोपाल जी से कोई ना कोई नाता अवश्य बनाएं. भाई, पुत्र, मित्र, गुरु कोई भी नाता उनसे बना सकते हैं. जो भी नाता लडडू गोपाल जी से आप बनाते हैं उसे श्रद्धा और निष्ठा से निभाएं.
  • अपने लडडू गोपाल जी को कोई प्यारा सा पुकार का नाम अवश्य दें. उन्हें स्नान कराते समय, वस्त्र पहनाते समय, खिलौने आदि भेंट करते समय या घुमाने ले जाते समय इस नाम से प्रेम के साथ पुकारें. बिलकुल अपने घर के सदस्य की तरह.
  • लडडू गोपाल जी रूठते भी हैं. यशोदा मैया से वह अक्सर रुठ जाया करते थे और मैया घंटों मनातीं तो मानते. यदि लडडू गोपाल जी से प्रेम प्रदर्शन नहीं करते रहेंगे तो वह रुठ जाएंगे. उनके साथ खेलें. घर के सदस्य की तरह प्रेम से भोजन कराएं.
  • पहले लडडू गोपाल को भोजन कराएं, जल आदि दें. उन्हें संतुष्ट करने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें.
  • रोज रात में लडडू गोपाल जी को शयन अवश्य कराएं. जैसे छोटे बालक को प्रेम से सुलाना पड़ता है उसी प्रकार से उनको भी सुलाएं. उन्हें थपकी दें, लोरी सुनाएं, कहानियां सुनाएं. जैसे आपके बच्चों को भाता है वही प्रेम लडडू गोपाल जी के लिए चाहिए.
  • प्रतिदिन सुबह लडडू गोपाल जी के प्रेम से पुकारकर जगाएं. उनके नाम से पुकार सकते हैं.
  • लडडू गोपाल जी का भी जन्मदिन मनाना होता है. वैसे तो जन्माष्टमी को संसार भर में लडडू गोपाल जी का जन्मदिन धूम-धाम मनाया जाता है. फिर भी जिस तिथि को आपने अपने घर में उन्हें प्रवेश कराया है वह दिन उनका जन्मदिन हुआ. जन्माष्टमी के अलावा उस दिन भी जन्मदिन मनाना होगा. धूम-धाम से घर को सजाकर बच्चों को घर बुलाकर उनके साथ लडडू गोपाल जी का जन्मदिन मनाएं. लडडू गोपाल जी के लिए खिलौने लाएं और बच्चों को रिटर्न गिफ्ट दें.

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