भारतीय महिलाओं को चाहिए स्वास्थ्य सुविधाओं की शक्ति.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महिला हो या पुरुष अच्छी सेहत और स्वास्थ्य सुविधाओं पर दोनों का समान अधिकार है। पर भारत में महिलाओं को भारी लिंग भेद संबंधी पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है। खासकर जब स्वास्थ्य देखभाल की बात आती है, उन्हें पुरुषों की तुलना में काफी कम सुविधाएं मिलती हैं। वहीं कुपोषण, बुनियादी स्वच्छता की कमी भारत में महिलाओं के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों की कमी को ज्यादा जटिल बना देता है। नवरात्रि के मौके पर आइये महिलाओं के स्वास्थ्य के सामने मौजूद चुनौतियों को परखते हैं।

महिलाओं का कम लिंगानुपात और जीवन प्रत्याशा

लिंगभेद की शुरुआत जन्म के पहले से हो जाती है जिसके चलते लिंगानुपात कम होता है। पितृसत्ता और परंपराओं के कारण बेटियों की भ्रूण हत्या होती है। हालांकि अब इसमें कमी आई है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएं हैं। वहीं प्रति 1000 पुरुषों पर शहरों में यह संख्या 949 तो गांवों में 929 है। 2001 में स्थिति और बदतर थी तब 1000 पुरुषों पर 933 महिलाएं थीं।

अब बात जीवन प्रत्याशा की वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिक्स 2021 के मुताबिक महिलाएं भारत में पुरुषों की तुलना में औसतन तीन साल ज्यादा जीवित रहती हैं। पर यह महिलाओं के सेहतमंद जीवन को नहीं दर्शाता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर देखें तो महिलाएं पुरुषों की तुलना में करीब 5 साल ज्यादा जीवित रहती हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट हेल्थ केयर इन इंडिया विजन 2020 रिपोर्ट के मुताबिक खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते महिलाओं की उम्र 17.5 साल तक कम हो जाती है। स्पष्ट रूप से, इससे निपटने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है।

स्तन कैंसर की स्थिति

वहीं विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाओं को स्तन कैंसर का पता देर से चलता है, जिससे कई महिलाओं को जान गंवानी पड़ती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 60% से 70% रोगियों की तुलना में भारत में केवल 1% से 8% भारतीय महिलाओं का रोग प्रारंभिक चरण में निदान किया जाता है।

अन्य चुनौतियां

-हेल्थ मिनिस्ट्री की रिपोर्ट के मुताबिक मातृ मृत्यु अनुपात (Maternal Mortality Ratio) 2016-18 में 113 थी।

-साक्षर आबादी के लिए कुल प्रजनन दर (टीएफआर) शहरी क्षेत्रों में 1.7 है। जबकि ग्रामीण भारत में यह 2.3 पर देखी गई।

-कम हवादार स्थान पर रहने वाला और काम करने वाली महिलाओं को टीबी होने की आशंका ज्यादा होती है।

-किशोर (15-19 वर्ष) अखिल भारतीय स्तर पर प्रजनन दर 2017 में 13.0 से घटकर 2018 में 12.2 हो गई है।

प्रतिरक्षा

टीकाकरण गंभीर लेकिन रोके जा सकने वाली बीमारियों के हानिकारक अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों को रोकने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में 7.4 मिलियन बच्चे हैं जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है – यह दुनिया में सबसे बड़ी संख्या है। लड़कियों को लड़कों की तुलना में कम टीके प्राप्त होते हैं।

कुपोषण

भारत को विकासशील देशों में कुपोषित महिलाओं की उच्चतम दर वाले देशों में माना जाता है। यह उन परिदृश्यों में विशेष रूप से गंभीर है जहां आर्थिक असमानता है। कुपोषित होने से व्यक्ति संक्रामक रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। खराब पोषण मातृ स्वास्थ्य और शिशुओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

मातृ स्वास्थ्य देखभाल

भारत में खराब सामाजिक आर्थिक स्थिति बहुत सी महिलाओं की पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को सीमित करती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके बच्चों का स्वास्थ्य खराब होता है। कई क्षेत्रों में गरीबी और उचित चिकित्सा देखभाल तक पहुंच की कमी के कारण मातृ मृत्यु दर अभी भी अधिक है।

मासिक धर्म स्वच्छता

मासिक धर्म की देखभाल के मामले में भारत में केवल कुछ प्रतिशत महिलाओं के पास स्वच्छता तक पहुंच है। आज भी, भारत में लाखों महिलाएं कपड़े, पत्ते या भूसी जैसे अस्वच्छ तरीकों पर निर्भर हैं। इसके परिणामस्वरूप संक्रमण, चकत्ते हो सकते हैं।

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