क्या समाज में जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार व्याप्त है?

क्या समाज में जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार व्याप्त है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में पटना ज़िला कलेक्टर का हालिया निर्देश जिसमें कानोसन गाँव में दलित द्वारा संचालित उचित मूल्य की दुकान (FPS) से सभी राशन कार्डों को पड़ोसी गाँव में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया है, महत्त्वपूर्ण नैतिक और संवैधानिक प्रश्न उठाता है।

उचित मूल्य की दुकान (FPS):

  • FPS भारत में सरकार द्वारा संचालित एक विनियमित रिटेल आउटलेट या स्टोर है।
    • उचित मूल्य की दुकानों का प्राथमिक उद्देश्य जनता को आवश्यक वस्तुओं जैसे खाद्यान्न, खाद्य तेल, चीनी और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को रियायती या उचित मूल्य पर वितरित करना है।
    • ये दुकानें आमतौर पर सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का हिस्सा हैं जिनका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और कम आय वाले परिवारों पर आर्थिक बोझ को कम करना है।
      • इस प्रणाली में आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से लाभार्थियों के सत्यापन के लिये एक मज़बूत तंत्र मौज़ूद है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल (e-POS) मशीनों की सहायता से ऑनलाइन लेनदेन की निगरानी करने की सुविधा है।
      • लाभार्थियों को सही मात्रा में राशन मिले यह सुनिश्चित करने के लिये e-PoS उपकरणों को इलेक्ट्रॉनिक वज़न मशीनों के साथ एकीकृत किया गया है।
      • ये FPS और ePOS मशीनें वन नेशन वन राशन कार्ड योजना (ONORC) के कार्यान्वयन एवं निर्बाध कार्यान्वयन में सहायक साबित हुई हैं।

घटना में शामिल विभिन्न नैतिक पहलू:

  • नैतिक मुद्दों:
    • भेदभाव और सामाजिक समानता:
      • इस मामले में मुख्य नैतिक मुद्दा राशन कार्डों के हस्तांतरण के कारण जाति के आधार पर भेदभाव है।
    • कर्तव्य की उपक्षा:
      • राशन कार्डों को स्थानांतरित करने के ज़िला कलेक्टर के निर्देश को कर्तव्य की उपेक्षा के रूप में देखा जा सकता है।
      • सार्वजनिक प्राधिकारियों को सत्यनिष्ठा की नैतिक अवधारणा के अनुसार निष्पक्ष रूप से और सभी नागरिकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करना आवश्यक है।
    • मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण:
      •  जाति-आधारित भेदभाव के शिकार व्यक्ति द्वारा अनुभव किया गया मानसिक आघात, जिसके कारण आत्महत्या का प्रयास और शरीर पर चोट लगना एक महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंता का विषय है।
      • करुणा, सहानुभूति और व्यक्तियों के कल्याण की रक्षा करने का कर्तव्य महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • कानूनी ढाँचे का प्रयोग:
      • भोजन का अधिकार अभियान के संयोजक SC/ST अधिनियम और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कानूनी ढाँचे को लागू करने का आह्वान करते हैं।
      • विधि के शासन को कायम रखने और संविधान का सम्मान करने के नैतिक सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिये।
    • हाशिये पर रहने वाले समुदायों का सशक्तिकरण:
      • हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सशक्तिकरण से संबंधित अनिवार्य सिद्धांतों का उल्लंघन एक प्रमुख नैतिक चिंता का विषय है।
      • निष्पक्षता, समता और गैर-भेदभाव, न्याय एवं समानता के नैतिक सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिये।
    • नैतिक दायित्व:
      • अपने कार्यों के परिणामों का हल करने में ज़िला कलेक्टर और अभिजात वर्ग के परिवारों का नैतिक दायित्व बढ़ जाता है।

घटना के अन्य परिप्रेक्ष्य:

  • संवैधानिक आदेशों का उल्लंघन:
    • भारतीय संविधान समानता, न्याय और गैर-भेदभाव के मौलिक मूल्यों को स्थापित करता है जैसा कि संविधान के भाग-III (अनुच्छेद 17) में मौलिक अधिकारों के तहत निहित है।
    • जाति के आधार पर की जाने वाली भेदभावपूर्ण कार्रवाइयाँ इन संवैधानिक सिद्धांतों का खंडन करती हैं।
  • वैधानिक आदेशों का उल्लंघन:
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (संशोधित 2015) का कार्यान्वयन न करना:
      • अनुसूचित जाति के व्यक्ति के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार SC/ST अधिनियम, 1989 के दायरे में आता है जिसका उद्देश्य हाशिये पर रहने वाले समुदायों के खिलाफ अत्याचारों को रोकना और दंडित करना है।
      • यह जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम:
      • यह अधिनियम गाँवों में FPS के लोकतांत्रिक सशक्तीकरण को कायम रखता है तथा हाशिये पर रहने वाले समुदायों के वितरण नियंत्रण की वकालत करता है।
      • राशन की दुकानों को दूसरे FPS में स्थानांतरित करना इस कानून की भावना का उल्लंघन है।

समान स्थितियों में की जाने वाली कार्रवाईयाँ: 

  • निवारक कदम:
    • जागरूकता स्थापित करना:
      • जाति-कलंक और भेदभाव के मिथकों को तोड़ने के लिये मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन के मॉडल को अपनाया जा सकता है जहाँ गणमान्य लोग पका हुआ भोजन ग्रहण करते हैं।
  • दंडात्मक कार्रवाई:
    • जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये आगे की कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिये।
      • ऐसी गलत गतिविधियों को नौकरशाहों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों से जोड़ना ताकि यह भविष्य में एक निवारक के रूप में कार्य करें।
    • लाइसेंस निरस्तीकरण:
      • दलित FPS डीलरों का लाइसेंस रद्द होने से आर्थिक प्रभाव और आजीविका को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • स्वत: संज्ञान लेना:
    • भोजन का अधिकार, अभियान उच्च न्यायालयों अथवा सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय से भेदभावपूर्ण राशन कार्ड हस्तांतरण पर स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह करता है।
    • कानून के शासन और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिये ऐसी कार्रवाईयाँ आवश्यक हैं।
  • लोकतांत्रिक सशक्तिकरण तथा समावेशिता:
    • उचित मूल्य दुकानों की भूमिका (FPSs):
      • FPSs हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये खाद्य सुरक्षा और आवश्यक वस्तुओं तक पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • समावेशिता और आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये FPSs का लोकतांत्रिक सशक्तीकरण महत्त्वपूर्ण है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!