भाजपा को बिहार में गृह विभाग लेने में 20 वर्ष लग गए
नये सरकार के मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभाग बीजेपी के पास
श्रीनारद मीडिया, स्टेट डेस्क:

बिहार विधानसभा में भारी मतो से जीत का सुनामी लाने का श्रेय भले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम गया, पर नये सरकार के मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभाग और हर उलझा हुआ पेंच बीजेपी के पास गया। पढे कौन- कौन से मुद्दे थे जहां जदयू को बैंकफुट पर आना पड़ा। और ऐसा तब हो रहा है जब बीजेपी 89 और जेडीयू का नंबर 84 है न कि 74 और 43।
गृह विभाग लेने में 20 वर्ष लग गए
बिहार में भाजपा को गृह विभाग लेने में 20 वर्ष लग गए। वर्ष 2005 से गृह विभाग पाने की जिद्द को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धत्ता बताया। लेकिन इस बार बाई हुक एंड क्रुक इस विभाग को पाने में सफलता मिली। सम्राट चौधरी के नेतृत्व में प्रदेश भाजपा ने इस बार दोनों उप मुख्यमंत्री के पद को लेकर जो जिद की उसे पूरा किया और सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा की जोड़ी ही कायम रही।
अध्यक्ष और सभापति
अध्यक्ष और सभापति को ले कर भी खींचतान चल रही थी उस मसले पर भी बाजी अपने हाथ रखा। अवधेश नारायण सिंह विधान परिषद के सभापति है ही। अब विधानसभा अध्यक्ष पद पर प्रेम कुमार विराजमान होंगे। मंत्रिमंडल विस्तार और महत्वपूर्ण विभागों के बंटवारे में गृह मंत्रालय जैसी अहम जिम्मेदारी बीजेपी के खाते में जाने के बाद, यह स्पष्ट है कि बीजेपी अब बिहार की ‘डबल इंजन’ सरकार में न केवल बड़ी सहयोगी है, बल्कि सबसे प्रभावशाली ताकत बनकर उभरी है। यह स्थिति जेडीयू के लिए आने वाले समय में कठिन चुनौती खड़ी कर सकती है। बीजेपी अब अपनी बढ़ी हुई ताकत का उपयोग केवल प्रशासनिक नियंत्रण तक ही सीमित नहीं रखेगी, बल्कि अपने वैचारिक एजेंडे और संगठनात्मक विस्तार को बिहार में तेज करेगी।
बीजेपी की प्लानिंग
उम्मीद है कि बीजेपी, केंद्र से मिलने वाले फंड और परियोजनाओं का उपयोग करते हुए, उन क्षेत्रों और समुदायों पर ध्यान केंद्रित करेगी जहां उसका प्रभाव अभी भी सीमित है, जिससे 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए मजबूत आधार तैयार किया जा सके। गृह विभाग, दोनों उपमुख्यमंत्री पद (सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा), और विधानसभा अध्यक्ष पद पर अपने नेताओं (प्रेम कुमार) को बैठाने में बीजेपी की सफलता यह दर्शाती है कि इस बार नीतीश कुमार को गठबंधन में अभूतपूर्व दबाव का सामना करना पड़ रहा है। नीतीश कुमार, जो पिछले दो दशकों से निर्णायक भूमिका में रहे हैं, अब बैकफुट पर आकर गठबंधन धर्म निभाते दिख रहे हैं। आने वाले समय में, बीजेपी संभवतः प्रशासन के प्रदर्शन की निगरानी और जवाबदेही के नाम पर जेडीयू के मंत्रियों पर भी दबाव बढ़ाएगी।
सुशासन ब्रांड पर असर!
कुल मिलाकर इससे सरकार के फैसलों पर नीतीश कुमार का व्यक्तिगत नियंत्रण कम हो सकता है और उन्हें बीजेपी के कोर एजेंडे के साथ तालमेल बिठाने में अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ सकती है, जिससे उनके अपने ‘सुशासन’ के ब्रांड पर असर पड़ने की आशंका है। बीजेपी नेतृत्व ने विधानसभा और विधान परिषद के प्रमुख पदों पर अपने नेता बैठाकर, विधायिका और कार्यपालिका दोनों पर अपनी ‘स्मार्ट मूव’ को पूरा कर लिया है। यह कदम न केवल पार्टी के नियंत्रण को मजबूत करता है, बल्कि जेडीयू को राज्य की शीर्ष राजनीतिक नियुक्तियों में सीमित कर देता है। भविष्य में, यह खींचतान स्थानीय निकायों के चुनाव, निगमों में नियुक्तियों और संगठनात्मक फेरबदल में भी देखने को मिल सकती है, जहाँ बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने के लिए दबाव डालेगी। बीजेपी की यह रणनीति स्पष्ट करती है कि उसका लक्ष्य केवल सरकार चलाना नहीं, बल्कि बिहार में स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होना है, ताकि 2029 में वह पूरी तरह से अपने दम पर चुनाव लड़ सके, जैसा कि पार्टी नेतृत्व ने ‘अवध’ और ‘मगध’ जीतने के अपने बयानों में संकेत दिया है।
यह भी पढ़े
सिसवन की खबरें : अखंड अष्टयाम प्रारंभ
सिधवलिया की खबरें : आपसी विवाद मे एक महिला सहित दो व्यक्ति घायल
सोनपुर मेला में रंग–रौनक के बीच जिम्मेदारी की बात, लगी परिवार नियोजन की पाठशाला
रघुनाथपुर के संदीप ने स्वर्ण पदक जीत कर जिले का नाम रोशन किया
21 नवम्बर 📜📞 विश्व हैलो दिवस (World Hello Day) 📞
21 नवम्बर 📜 📺 विश्व दूरदर्शन/टेलीविजन दिवस (World Television Day) पर विशेष


