Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
उम्रकैद मतलब आजीवन कठोर कारावास-सुप्रीम कोर्ट. - श्रीनारद मीडिया

उम्रकैद मतलब आजीवन कठोर कारावास-सुप्रीम कोर्ट.

उम्रकैद मतलब आजीवन कठोर कारावास-सुप्रीम कोर्ट.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

कुछ करने के लिए दबाव बनाया जाए, तभी माना जाएगा उकसावा-SC

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उम्रकैद का मतलब ‘आजीवन कठोर कारावास’ की सजा ही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई के केस समेत विभिन्न फैसलों में इसे पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है। इसके साथ ही अदालत ने इस मामले की फिर से समीक्षा करने से इन्कार कर दिया।

शीर्ष अदालत ने आजीवन कारावास की पहले से तय कानून की समीक्षा करने से किया इन्कार

जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह अहम आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों याचिकाएं खारिज कर दी। ये दोनों याचिकाएं हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दोषियों की तरफ से विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की गई थी।

महात्मा गांधी की हत्या के मामले समेत अन्य कई केस में सुनाए गए फैसले का दिया हवाला

दोनों ने यह जानना चाहा था कि क्या उन्हें दी गई आजीवन कारावास की सजा को आजीवन कठोर कारावास के रूप में माना जाना चाहिए। पीठ ने सुनवाई से इन्कार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए फैसले का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि 1961 में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल विनायक गोडसे बनाम महाराष्ट्र के केस में भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि आजीवन कारावास की सजा को आजीवन कठोर कारावास के बराबर माना जाना चाहिए।

गोपाल विनायक गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या के मामले में 1949 में दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। याचिका दायर करने वालों में से एक हिमाचल प्रदेश का राकेश कुमार शामिल था। राकेश को उसकी पत्नी की हत्या के मामले में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने आइपीसी की धारा 302 के तहत उम्र कैद की सजा सुनाई है।

2018 में शीर्ष अदालत उसकी याचिका में शामिल सिर्फ इस सवाल पर सुनवाई करने के लिए राजी हुई थी कि उसे आजीवन कारावास की सजा देते समय कठोर कारावास का विशेष-तौर पर उल्लेख करने का औचित्य क्या है। दूसरी याचिका गुवाहाटी के सजायाफ्ता मुहम्मद आजीज अली ने दायर की थी।

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उकसावा उस स्थिति में साबित होता है, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे पर कुछ करने के लिए दबाव बनाता है और ऐसे हालात बन जाते हैं कि दूसरे व्यक्ति के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता।

जस्टिस एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले को रद करते हुए यह टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एक व्यक्ति को सुनाए गए तीन साल के सश्रम कारावास की सजा को बरकरार रखा था।

हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली वेल्लादुरई की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। शीर्ष अदालत ने कहा कि 25 साल से विवाहित आरोपित और उसकी पत्नी के बीच झगड़ा हुआ और दोनों ने कीटनाशक पी लिया। घटना में पत्नी की मौत हो गई, जबकि पति को बचा लिया गया। दंपती के तीन बच्चे भी हैं।

पीठ ने कहा, किसी व्यक्ति द्वारा उकसावा वह कहलाता है जब एक व्यक्ति किसी दूसरे पर कोई काम करने के लिए दबाव बनाए। उकसावा तब कहा जाता जब आरोपित ने अपने कामकाज, तरीकों और गतिविधियों से ऐसी स्थिति पैदा कर दी होती, जहां महिला (मृतका) के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा होता।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मुकदमे में अपील करने वाले के खिलाफ आरोप है कि घटना के दिन झगड़ा हुआ था। इसके अलावा और कोई दस्तावेज या रिकार्ड नहीं है, जो उकसावे को साबित कर सके।

तबादले का स्थान तय नहीं कर सकता कर्मचारी: सुप्रीम कोर्ट

वहीं, पिछले दिनों दूसरे एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई कर्मचारी किसी स्थान विशेष पर तबादला करने के लिए जोर नहीं दे सकता है। नियोक्ता को अपनी जरूरतों के हिसाब से कर्मचारियों का तबादला करने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के अक्टूबर 2017 के एक आदेश को चुनौती देने वाली एक लेक्चरर की याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने अमरोहा से गौतमबुद्ध नगर ट्रांसफर किए जाने के लिए संबंधित प्राधिकार द्वारा उनके अनुरोध को खारिज किए जाने के खिलाफ अर्जी को रद कर दिया था।

Leave a Reply

error: Content is protected !!