मधु लिमये एक प्रबुद्ध समाजवादी नेता थे.

मधु लिमये एक प्रबुद्ध समाजवादी नेता थे.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रख्यात समाजवादी नेता मधु लिमये आधुनिक भारत के विशिष्टतम व्यक्तित्वों में से एक थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी और बाद में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराकर भारत में शामिल कराने में आगे रहे. वे प्रतिबद्ध समाजवादी, प्रतिष्ठित सांसद, नागरिक स्वतंत्रता के हिमायती, एक विपुल लेखक होने के साथ ऐसे व्यक्ति थे, जिनका सारा जीवन देश के आम आदमी की भलाई में गुजरा.

मधु लिमये देश के लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के करिश्माई नेता थे और अपनी विचारधारा के साथ उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया. मधु लिमये पर महात्मा गांधी के शांति और अहिंसा के दर्शन का बहुत प्रभाव था. एक प्रबुद्ध समाजवादी नेता के रूप में उन्होंने 1948 से लेकर 1982 तक विभिन्न चरणों में और अलग अलग भूमिकाओं में समाजवादी आंदोलन का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया.

मधु लिमये का जन्म एक मई, 1922 को महाराष्ट्र के पूना में हुआ था. अपनी स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने 1937 में पूना के फर्ग्युसन कॉलेज में दाखिला लिया और छात्र आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया. फिर वे एसएम जोशी, एनजी गोरे वगैरह के संपर्क में आये और राष्ट्रीय आंदोलन और समाजवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित हुए. जब 1939 में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा, तो उन्होंने सोचा कि यह देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करने का एक अवसर है. लिहाजा, अक्टूबर, 1940 में मधु लिमये ने विश्व युद्ध के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया और अपने युद्ध विरोधी भाषणों के लिए गिरफ्तार कर लिये गये.

उन्हें सितंबर, 1941 में रिहा किया गया. अगस्त 1942 में जिस कांग्रेस सम्मेलन में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ का आह्वान किया था, उसमें मधु लिमये मौजूद थे. यह पहला मौका था, जब उन्होंने गांधी को करीब से देखा. गांधी सहित कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद मधु लिमये अपने कुछ सहयोगियों के साथ भूमिगत हो गये और अच्युत पटवर्धन, उषा मेहता और अरुणा आसफ अली के साथ भूमिगत प्रतिरोध आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. सितंबर, 1943 में उन्हें एसएम जोशी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया तथा जुलाई, 1945 तक वर्ली, यरवदा और विसापुर की जेलों में बिना किसी मुकदमे के रखा गया.

मधु लिमये ने 1950 के दशक में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लिया, जिसे उनके नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने 1946 में शुरू किया था. उपनिवेशवाद के कट्टर आलोचक मधु लिमये ने 1955 में एक बड़े सत्याग्रह का नेतृत्व किया और गोवा में प्रवेश किया. उन्हें पांच महीने तक पुलिस हिरासत में रखा गया था. दिसंबर 1955 में पुर्तगाली सैन्य न्यायाधिकरण ने उन्हें 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनायी.

लेकिन मधु लिमये ने न तो कोई बचाव पेश किया और न ही भारी सजा के खिलाफ अपील की. जब वे गोवा की जेल में थे, तो उन्होंने लिखा था कि ‘मैंने महसूस किया है कि गांधी जी ने मेरे जीवन को कितनी गहराई से बदल दिया है, उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और इच्छा शक्ति को कितनी गहराई से आकार दिया है.’ उन्होंने पुर्तगाली कैद में 19 महीने से अधिक समय बिताया. कैद के दौरान उन्होंने जेल डायरी के रूप में एक पुस्तक ‘गोवा लिबरेशन मूवमेंट और मधु लिमये’ लिखी, जो 1996 में प्रकाशित हुई.

अब उसका दोबारा प्रकाशन किया गया है. साल 1957 में पुर्तगाली हिरासत से छूटने के बाद भी मधु लिमये ने गोवा की मुक्ति के लिए जनता को जुटाना जारी रखा तथा भारत सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए आग्रह किया. जन सत्याग्रह के बाद भारत सरकार गोवा में सैन्य कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई और गोवा पुर्तगाली शासन से मुक्त हुआ. दिसंबर, 1961 में गोवा भारत का अभिन्न अंग बना.

भारतीय संविधान और संसदीय मामलों के ज्ञाता मधु लिमये 1964 से 1979 तक चार बार लोकसभा के लिए चुने गये. स्वस्थ लोकतांत्रिक लोकाचार से प्रतिबद्ध होने के कारण वे हमेशा अपने सिद्धांतों के साथ खड़े रहे और असामान्य राजनीतिक परिस्थितियों के दौरान भी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया. आपातकाल के दौरान पांचवीं लोकसभा के कार्यकाल के विस्तार के खिलाफ जेल से उनका विरोध इस बात की गवाही है.

उन्हें जुलाई, 1975 से फरवरी, 1977 तक मध्य प्रदेश की विभिन्न जेलों में रखा गया था. उस समय उन्होंने अपने युवा साथी शरद यादव के साथ आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा संवैधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग के विरोध में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. वे जनता पार्टी के गठन और आपातकाल के बाद केंद्र में सत्ता हासिल करने वाले गठबंधन में सक्रिय थे. उन्हें मोरारजी सरकार में मंत्री पद देने का प्रस्ताव भी किया गया, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. बाद में एक मई, 1977 को उनके 55वें जन्मदिन पर उन्हें जनता पार्टी का महासचिव चुना गया.

मधु लिमये ने 1982 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद अंग्रेजी, हिंदी और मराठी में 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं. वे अपने लेखन में भी तार्किक, निर्णायक, निर्भीक थे. उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास से संबंधित मुद्दों पर अपनी चिंता जारी रखी. उन्होंने न तो स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन ली और न ही पूर्व सांसद पेंशन को स्वीकार किया. संक्षिप्त बीमारी के बाद 72 वर्ष की आयु में आठ जनवरी, 1995 को मधु लिमये का नयी दिल्ली में निधन हो गया.

ये भी पढे…

Leave a Reply

error: Content is protected !!