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कुपोषित बच्चों में टीबी का जोखिम अधिक, साठ फीसदी मामले फेफड़ों के - श्रीनारद मीडिया

कुपोषित बच्चों में टीबी का जोखिम अधिक, साठ फीसदी मामले फेफड़ों के

कुपोषित बच्चों में टीबी का जोखिम अधिक, साठ फीसदी मामले फेफड़ों के

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-शिशु का बीसीजी टीकाकरण जरूरी, टीबी संक्रमण से रखता है सुरक्षित

-लक्षणों की पहचान कर करायें जरूरी इलाज,​ नियमित दवा सेवन है जरूरी

श्रीनारद मीडिया, गया (बिहार):

टीबी एक संक्रामक रोग है। यह रोग संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैलता है। खांसने या छींकने से मुंह और नाक से निकलने वाली बूंदों में मौजूद बैक्टीरिया स्वस्थ्य व्यक्ति तक पहुंच कर उसे संक्रमित करता है। बच्चों में भी टीबी यानि ट्यूबरक्लोसिस संक्रमण की संभावना होती है। स्वस्थ्य बच्चे टीबी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो उनके भी टीबी संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। टीबी आनुवांशिक भी हो सकता है। ऐसे घर में जहां टीबी के मरीज हो वहां बच्चों में संक्रमण की संभावना होती है। टीबी की उच्च दर वाले क्षेत्र में रहने वाले बच्चों में टीबी की संभावना बढ़ जाती है। टीबी की रोकथाम के लिए समुदाय में जागरूकता जरूरी है। इसके लिए टीबी के लक्षणों की जानकारी रखना महत्वपूर्ण हो जाता है।

संचारी रोग अधिकारी डॉ पंकज कुमार सिंह ने बताया टीबी माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु के कारण होता है। सामान्य तौर पर टीबी से फेफड़ा प्रभावित होता है। बच्चों में टीबी के साठ फीसदी मामले फेफड़ों के मिलते हैं। कम उम्र के बच्चों में बलगम नहीं बनता है। ऐसे में टीबी जांच नहीं हो पाती है। इसके लिए बच्चों के बीमार रहने संंबंधी जरूरी जानकारी प्राप्त कर उनका इलाज किया जाता है। साथ ही टीबी स्किन टेस्ट किया जाता है। स्वस्थ्य बच्चों की तुलना में कुपोषित बच्चों में टीबी संक्रमण की संभावना बहुत अधिक होती है।

टीबी के लक्षणों की जानकारी रखना महत्वपूर्ण:
बच्चों में टीबी के लक्षणों में हमेशा खांसी रहना, कमजोरी तथा शारीरिक ग​तिविधियों में हिस्सा नहीं लेना, वजन कम होना, भूख की कमी, बुखार और रात में पसीना चलना आदि है। बच्चों को दो हफ्तों से अधिक खांसी रहने पर उनकी जांच कराना आवश्यक हो जाता है। बच्चों में ऐसे लक्षणों के दिखने पर तुरंत चिकित्सीय परामर्श लेना जरूरी है। कमजोर इम्युनिटी वाले बच्चे तथा गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर या एचआईवी से ग्रसित बच्चों को टीबी का सबसे अधिक जोखिम होता है। टीबी की पहचान होने पर उन्हें चार, छह तथा नौ माह तक एंटी टीबी दवाइयां दी जाती हैं, जिसका नियमित सेवन करना जरूरी है। टीबी की दवा का नियमित सेवन नहीं करने पर यह रोग बच्चे पर पुन’ हावी हो जाता है।

टीबी की रोकथाम के लिए बीसीजी टीकाकरण:
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मंजुल विजय ने बताया टीबी संक्रमण से बचाव के लिए बच्चों को बीसीजी का टीका दिया जाता है। यह टीबी रोकने के लिए कारगर है। यह टीका बच्चों में टीबी और मैनिनजाइटिस से सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाता है। वैक्सीनेशन शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता और टीबी रोगाणु से लड़ने में सक्षम बनाता है। छह साल से कम उम्र के बच्चों को बीसीजी का टीका लगाया जाता है। इस टीके की सुई बच्चे को उसकी बांह के ऊपरी हिस्से में दी जाती है। शिशु के जन्म के छह माह तक बीसीजी का टीका लगाया जाना जरूरी है। टीकाकरण शिशु रोग विशेषज्ञ की निगरानी में ही कराना चाहिए। बच्चा छह साल की उम्र से कम है तो शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह से बीसीजी का टीकाकरण अवश्य करायें।

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