भारत में कोरोना की वजह से 3 हजार से ज्यादा बच्चों ने माता-पिता खो दिए.

भारत में कोरोना की वजह से 3 हजार से ज्यादा बच्चों ने माता-पिता खो दिए.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कोरोना ने देशभर में करीब 3 हजार से ज्यादा बच्चों के सिर से माता-पिता का साया छीन लिया है। कई राज्यों की सरकारों ने ऐसे बच्चों को आर्थिक सहायता देनी शुरू की है, लेकिन कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन बच्चों के लिए चिंता जाहिर की है। उनका मानना है कि कोरोना का कहर कम होने के बाद इन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। आइए अलग-अलग राज्यों के कुछ ऐसे मामलों पर नजर डालते हैं, जिनमें कोरोना ने बच्चों से उनके परिवार को छीन लिया।

14 साल की सोनाली रख रही भाई-बहनों का ध्यान
भारत के पूर्वी तट पर स्थित पट्टापुर गांव में एक छोटे लेकिन रंगों से दमकते मकान में सोनाली रेड्डी अपने छोटे भाई-बहनों के साथ रहती हैं। उन्हें खाना बनाकर खिलाने से लेकर रात में लोरी सुनाने की जिम्मेदारी भी सोनाली पर ही है। उन्हें डर है कि वे अनपे भाई-बहनों को मां क समान लाड़-प्यार नहीं दे पाएंगी।

14 साल की सोनाली परिवार के पालक की भूमिका निभा रही है। कुछ वर्ष पहले बिजनेस में घाटा उठाने के बाद उसके पिता ने आत्महत्या कर ली थी। मई में कोरोना वायरस की विनाशकारी लहर के बीच संक्रमण से उसकी मां का निधन हो गया।

सोनाली उन तीन हजार से अधिक बच्चों में शामिल हैं जो महामारी में अनाथ (राज्य सरकारों के अनुसार) हो गए हैं। इनमें से बहुत बच्चों के सामने मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। राज्य सरकारों ने हर अनाथ बच्चे के लिए 500 रु. से 5000 रु. हर माह सहायता देने की घोषणा की है। मुफ्त भोजन और शिक्षा की व्यवस्था अलग है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बच्चों के लिए सम्मान की जिंदगी और अच्छे अवसर उपलब्ध कराने का वादा किया है।

वकीलों और एक्टिविस्ट के मुताबिक कोरोना से प्रभावित हुए बच्चों को सरकारी सहायता पाने के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र जुटाना मुश्किल हो रहा है। कुछ बच्चों की स्कूल में वापसी कठिन होगी।

सरकार से मिल र ही अनाथ पेंशन
पट्टापुर में सोनाली की दादी बच्चों के साथ रहने आ गई हैं। सोनाली बताती है, मां ने हम सबको तमाम कठिनाइयों से सुरक्षित रखा था। लगता है, वे अब भी हमारे साथ हैं। इस बीच सरकार ने बच्चों को अनाथ पेंशन का भुगतान कर दिया है। उनके नाम से बैंक खाते खोले गए हैं। उन्हें कई बोरा चावल भी दिया है।

हैदराबाद के सात्विक रख रहे छोटी बहन का ध्यान
पट्टापुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैदराबाद शहर में 13 वर्षीय सात्विक रेड्डी की स्थिति भी सोनाली जैसी है। उसकी तीन साल की बहन हनवी मम्मी, डैडी के बारे में पूछती है। सात्विक के पिता गोपाल, मां गीता और दादी की मई में वायरस से एक के बाद एक मौत हो गई।

कोरोना ने छीन लिए यूपी के शावेज के माता-पिता
उत्तरप्रदेश के मुरादनगर में 18 साल के शावेज सैफी और उसकी छोटी बहन कहकशां की कहानी भी आंसुओं और गम के अंधेरे में डूबी है। शावेज के माता-पिता- शबनम और शमशाद अप्रैल में बीमार पड़े। उनके पास इलाज कराने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था। कुछ दिन बाद माता-पिता की मृत्यु हो गई। शावेज पिता के साथ कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था।

किराया ना चुकाने के कारण शावेज को मकान खाली करना पड़ा है। अब चाचा उसकी मदद करते हैं। वह कहकशां को पढ़ाना चाहता है। पट्टापुर की सोनाली, हैदराबाद के सात्विक और मुरादनगर के शावेज जैसे कई अनाथ बच्चे मुश्किलों से जूझ रहे हैं।

दुनिया में सबसे अधिक बालवधुएं भारत में
दूरदराज के इलाकों में रहने वाले गरीब परिवारों के कई अनाथ बच्चों के बिकने और उनके बाल विवाह का खतरा है। देश में बड़े पैमाने पर बच्चों की तस्करी होती है। यूनिसेफ के अनुसार विश्व में सबसे अधिक बालिका वधुएं भारत में हैं।

कुछ सामाजिक धारणाओं के कारण बच्चों को गोद लिए जाने का विकल्प भी मुश्किल है। महामारी से उभरे सामाजिक मुद्दों पर लिखने वाली दिल्ली यूनिवर्सिटी की कानून की छात्रा मेधा पांडे कहती हैं, देश में भयावह त्रासदी के बीच सरकार छवि बचाने की कोशिश में लगी है। मुसीबतजदा बच्चों के लिए सरकार ने एक छोटा उपसमूह बनाया है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!