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मस्जिदों ने खोले महिलाओं के लिए दरवाजे,कहाँ ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में पुणे से यह संघर्ष शुरू हुआ था और अब यहीं से पूरे देश के लिए सुधार-बदलाव की मिसाल भी पेश की गई है। शहर की तीन मस्जिदों में महिलाओं को नमाज के लिए मिली अनुमति ने कम से कम सामाजिक स्तर पर देशभर के लिए आधार तैयार करने का काम किया है। इस्लाम में महिलाओं और पुरुषों की बराबरी के इस संघर्ष के लिए पांच साल से जूझ रहीं यास्मीन पीरजादा के लिए इससे बेहतर दृश्य नहीं हो सकता कि उनके गांव मुहम्मदिया से लेकर पुणे शहर की दो मस्जिदों में नमाज कक्ष की दिशा बताने वाले ये बोर्ड लगे हैं जिन पर लिखा है, अहम एलान- ख्वातीन (महिलाएं) के लिए तहारत वजू और नमाज का माकूल इंतजाम है।

महिलाओं के लिए 3 मस्जिदों ने खोले दरवाजे

महिलाओं को मस्जिदों में पांच वक्त की नमाज की अनुमति देने के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय संविधान पीठ को विचार करना है, मगर उसके पहले पुणे की तीनों मस्जिदों मुहम्मदिया जामा, बागबान और कोंडोवा पारबेनगर मस्जिद के ट्रस्ट ने यह अनुभूति कर ली कि इस तरह के प्रतिबंध मजहब समेत किसी भी आधार पर टिक नहीं सकते।

यास्मीन पीरजादा की इस लड़ाई में हर कदम पर उनका साथ देने वाले जुबेर अहमद पीरजादा ने दैनिक जागरण को बताया कि हम खुश हैं और यही चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला अगर हमारे पक्ष में आया तो फिर पूरे देश में अधिकारों की इस लड़ाई को नया मुकाम मिल जाएगा। पीठ को मस्जिदों में महिलाओं को नमाज की इजाजत से लेकर सबरीमाला मंदिर, पारसी और बोहरा समुदाय की महिलाओं के अधिकारों के सवालों के संदर्भ में अपना फैसला देना है।

पूरी तरह हालात बदलने में लगेगा वक्त

पीरजादा के अनुसार, पर्सनल ला बोर्ड ने जिस तरह यह पक्ष रखा कि महिलाओं के लिए मस्जिदों में नमाज वर्जित नहीं है, उसके बाद उन लोगों पर नैतिक दबाव बना है जो इसके विरोधी थे। पीरजादा कहते हैं कि अब सिलसिला शुरू हो गया है। हालात पूरी तरह बदलने में वक्त लगेगा। समाज के अंदर हलचल हो रही है।

पर्सनल ला बोर्ड ने फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में कहा था कि एक मुस्लिम महिला नमाज के लिए मस्जिद में जाने की अधिकारी है और यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह अपने इस अधिकार का कैसे इस्तेमाल करती है। इस्लाम के अनुसार, यह उसके लिए बाध्यकारी नहीं है कि उसे समूह में ही नमाज पढ़नी है।

क्या है पूरा मामला ?

यास्मीन और जुबेर पीरजादा ने अक्टूबर 2018 में पत्र लिखकर पुणे के बोपोडी में मुहम्मदिया जामा मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत मांगी थी, जिसके जवाब में मस्जिद ने कहा कि पुणे और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश का चलन नहीं है। बाद में दारुल उलूम देवबंद के हवाले से भी यही जानकारी दी गई। इसके बाद इस युगल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।

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