राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम: जिले की एक बच्ची को न्यूरल ट्यूबे डिफेक्ट के सफल इलाज को भेजा गया पटना एम्स

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सदर अस्पताल से एम्बुलेंस के माध्यम से इलाज के लिए रवाना

श्रीनारद मीडिया, किशनगंज, (बिहार):

संक्रमण काल में जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान दे रहा है। इसी क्रम में जिले के दिघलबैंक प्रखंड के हरवाडांगा निवासी पंकज यादव की पुत्री की पीठ में न्यूरल ट्यूबे डिफेक्ट के सफल इलाज के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत एम्स, पटना भेजा गया है। जहां उसका इलाज और आने जाने का इंतजाम बिहार सरकार के द्वारा किया जायेगा।

आरबीएसके के तहत 30 रोगों का किया जाता हैं इलाज: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ. श्री नंदन ने बताया की दिघलबैंक प्रखंड के हरवाडांगा निवासी पंकज यादव की पुत्री की पीठ में न्यूरल ट्यूबे दिफ्फेक्ट के सफल इलाज के लिए जांच के बाद एम्बुलेंस से एम्स पटना भेजा गया है। जहां राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत उसका सफल इलाज किया जायेगा। इसके लिए जिले के राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की पूरी टीम धन्यवाद की पात्र है। जिन्होंने संक्रमण काल में भी बच्चों के ह्रदय एवं अन्य इलाज के लिए स्क्रीनिंग का कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा 0 से 6 साल तक के बच्चों की स्क्रीनिंग की जा रही है तथा इससे अधिक उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य की जांच उनके स्कूल के खुल जाने के बाद की जायेगी। स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यक्रम की सफलता के लिए गठित मोबाइल मेडिकल टीम जिले के हर आंगनबाड़ी केंद्र व स्कूलों में पहुंचती है। तब टीम में शामिल आयुष चिकित्सक बच्चों की स्वास्थ्य जांच करते हैं। ऐसे में सर्दी, खांसी व जाड़ा बुखार जैसी सामान्य बीमारी होने पर तुरंत बच्चों को दवा दी जाती है। लेकिन बीमारी के गंभीर होने की स्थिति में उसे आवश्यक जांच व इलाज के लिए बड़े अस्पताल रेफर किया जाता है, जहां उनका समुचित इलाज किया जाता है। 18 साल तक के बच्चों को किसी प्रकार की गंभीर समस्या होने पर आईजीआईएमएस, एम्स, पीएमसीएच भेजा जाता है। टीम में शामिल एएनएम, बच्चों का वजन, उनकी लंबाई व सिर एवं पैर आदि की माप व नापतौल आदि करती हैं। फॉर्मासिस्ट रजिस्टर में स्क्रीनिंग किये गये बच्चों का ब्योरा तैयार करते हैं। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 0 से 18 साल तक के सभी बच्चों को चार मुख्य समस्याओं पर केंद्रित किया जाता है। इनमें डिफेक्ट एट बर्थ, डिफिशिएंसी डिसीज, डेवलपमेंट डिले तथा डिसएबिलिटी आदि शामिल हैं। इससे जुड़ी सभी तरह की बीमारी या विकलांगता को चिह्नित कर इलाज किया जाता है। आरबीएसके के तहत 30 तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है।

‘‘बाल हृदय योजना’’ कार्यक्रम के तहत दी जा रही है सुविधा: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया जिले में कुल 03 हृदय में छेद के साथ जन्में बच्चों की स्क्रीनिंग की गयी है जो कोचाधामन, बहादुरगंज, दिघल बैंक के निवासी हैं। उनका सुशासन के कार्यक्रम (2020-2025) के अन्तर्गत आत्मनिर्भर बिहार के सात निश्चय-2 में शामिल ‘‘सबके लिए अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधा’’ अन्तर्गत हृदय में छेद के साथ जन्में बच्चों के निःशुल्क उपचार की व्यवस्था को स्वीकृत नई योजना ‘‘बाल हृदय योजना’’ कार्यक्रम के तहत उनका इलाज किया जाना है। उन्होंने बताया बच्चों में होने वाले जन्मजात रोगों में हृदय में छेद होना एक गंभीर समस्या/बीमारी है। एक अध्ययन के अनुसार जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में से 9 बच्चे जन्मजात हृदय रोग से ग्रसित होते हैं, जिनमें से लगभग 25 प्रतिशत नवजात बच्चों को प्रथम वर्ष में शल्य क्रिया की आवश्यकता रहती है।

अपनी जिम्मेदारियों को निभाएं: डीसी
आरबीएसके के जिला समन्वयक डॉ. ब्रहमदेव शर्मा ने बताया कोरोना काल में न्यूरल ट्यूबे डीफेक्ट के सफल इलाज के लिए भेजने में आरबीएसके टीम का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। जो जिम्मेवारी दी गई थी उसे बखूबी निर्वहन किया गया है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 30 रोगों के इलाज के लिए स्क्रीनिंग के लिए पूरी टीम जिले में मुस्तैदी से कार्यरत है।

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