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बैसाखी पर्व पर समाजसेवी पार्षद परमवीर सिंह प्रिंस संत समाज द्वारा सम्मानित - श्रीनारद मीडिया

बैसाखी पर्व पर समाजसेवी पार्षद परमवीर सिंह प्रिंस संत समाज द्वारा सम्मानित

बैसाखी पर्व पर समाजसेवी पार्षद परमवीर सिंह प्रिंस संत समाज द्वारा सम्मानित

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, हरियाणा

कुरुक्षेत्र के पंचायती निर्मल अखाड़ा में बैसाखी के महान पर्व पर कुरुक्षेत्र वार्ड 23 के पार्षद समाजसेवी परमवीर सिंह प्रिंस को षडदर्शन साधुसमाज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष महंत गुरुभगत सिंह,संगठन सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक द्वारा चादर, सरोपा के साथ नेपाल से आई दुर्लभ बुड्ढानीलकंठ भगवान विष्णु की प्रतिमा भेंट कर सम्मानित किया गया। प्रिंस ने संतों का आशीर्वाद प्राप्त किया।

महंत गुरुभगत सिंह जी महाराज ने बैसाखी पर्व के बारे में बताया कि यह पर्व हर वर्ष 13 अप्रैल को मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दुओं, बौद्ध और सिखों के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नववर्ष के त्यौहार जैसे जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथंडु मनाए जाते हैं।
बैसाखी के पर्व की शुरुआत भारत के पंजाब प्रान्त से हुई है और इसे रबी की फसल की कटाई शुरू होने की सफलता के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा के अलावा उत्तर भारत में भी बैसाखी के पर्व का बहुत महत्व है। इस दिन गेहूं, गन्ने, तिलहन आदि की फसल की कटाई शुरू होती है।

वैसाखी त्यौहार, सिख आदेश के जन्म का स्मरण है, जो नौवे गुरु तेग बहादुर के बाद शुरू हुआ और जब उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के लिए खड़े होकर इस्लाम में धर्मपरिवर्तन के लिए इनकार कर दिया था तब बाद में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत उनका शिरच्छेद कर दिया गया। गुरु की शहीदी ने सिख धर्म के दसवें और अन्तिम गुरु के राज्याभिषेक और खालसा के संत-सिपाही समूह का गठन किया, दोनों वैसाखी दिन पर शुरू हुए थे।

प्रकृति का एक नियम है कि जब भी किसी जुल्म, अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा होती है, तो उसे हल करने अथवा उसके उपाय के लिए कोई कारण भी बन जाता है। इसी नियमाधीन जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा जुल्म,अन्याय व अत्याचार की हर सीमा लाँघ,श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया गया, तभी गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व भलाई के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना।

पुराने रीति-रिवाजों से ग्रसित निर्बल व साहसहीन हो चुके लोग, सदियों की राजनीतिक व मानसिक गुलामी के कारण कायर हो चुके थे। भिन्न-भिन्न जाति के लोगों को दशमेश पिता ने अमृत छकाकर सिंह बना दिया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया।

उन्होंने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र (बाटे) से अमृत चखा पाँच प्यारे सजाए। ये पाँच प्यारे किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे, वरन्‌ अलग-अलग जाति, कुल व स्थानों के थे, जिन्हें खंडे बाटे का अमृत चखाकर इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा।

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