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किशोरावस्था के शुरुआती दौर में शारीरिक बदलाव होना लाजिमी: डीसीएम - श्रीनारद मीडिया

किशोरावस्था के शुरुआती दौर में शारीरिक बदलाव होना लाजिमी: डीसीएम

किशोरावस्था के शुरुआती दौर में शारीरिक बदलाव होना लाजिमी: डीसीएम

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स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत पांच दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का हुआ विधिवत उद्घाटन:
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत किया गया है शामिल: प्रशिक्षक

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया, (बिहार):


राज्य स्वास्थ्य समिति के निदेशक एवं एनसीईआरटी द्वारा दिये गए आवश्यक दिशा-निर्देश के आलोक में श्रीनगर स्थित ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के सभागार में “स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम” से संबंधित विषय पर प्रखंड साधन सेवियों का पांच दिवसीय गैर आवासीय प्रशिक्षण शुरू हुआ है । इस प्रशिक्षण शिविर में स्वास्थ्य विभाग की ओर से ज़िले के विभिन्न प्रखंडों से शिक्षक, प्रखण्ड सामुदायिक उत्प्रेरक एवं केयर इंडिया स्वास्थ्य प्रबंधक भाग ले रहे हैं। प्रशिक्षण शिविर का विधिवत उद्घाटन डायट के व्याख्याता प्रो गजेंद्र कुमार भारती, प्रो मंजर आलम एवं प्रशिक्षक ज़िला सामुदायिक उत्प्रेरक संजय कुमार दिनकर एवं यूनीसेफ की ओर से शिवशेखर आनंद, डॉ कुमारी अर्पणा, महम्मद रिजवान, श्रीप्रकाश सिंह, आलोक कुमार, नंदिता कुमारी, शाहनवाजुद्दीन ने संयुक्त रूप से किया।

किशोरावस्था के शुरुआती दौर में शारीरिक बदलाव होना लाजिमी: डीसीएम
जिला सामुदायिक स्वास्थ्य उत्प्रेरक संजय कुमार दिनकर ने बताया पूरे विश्व के किशोर एवं किशोरियों में किशोरावस्था के शुरुआती दौर में काफ़ी कुछ बदलाव होने लगता है। सीमित एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ से संबंधित जानकारी के अभाव में वे नई-नई चुनौतियों जैसे: प्रजनन स्वास्थ्य, चोट एवं हिंसा तथा डिजिटल चुनौतियों का सामना करते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2013-16) के अनुसार देश की 26.89 लड़कियों की शादी 18 वर्ष के पहले कर दी जाती है। 15 से 19 साल की लड़कियों के सर्वेक्षण के समय या तो मां बन चुकी होती है नहीं तो वह गर्भवती हो जाती है। वहीं 15 से 24 वर्ष तक सिर्फ 58% लड़कियां माहवारी के दौरान स्वस्थ्य कर विधि का उपयोग करती हैं और 15 से 24 साल की एक तिहाई से अधिक (3756) विवाहित महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा का शिकार होती हैं। 15 से 19 आयुवर्ष तक की लगभग 54% किशोरियों एवं 29% किशोर एनीमिया की शिकार हो जाते है।

स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत किया गया है शामिल: प्रशिक्षक
यूनीसेफ के प्रमंडलीय सलाहकार सह प्रशिक्षक शिव शेखर आनंद ने बताया जीवन के शुरुआत में ही बच्चों को उनके स्वास्थ्य एवं उत्तम व्यवहार को लेकर तरह-तरह से सलाह दी जाती है। ताकि वह अपने स्वस्थ्य के प्रति सचेत रहें। साथ ही अपना खुशहाल जीवन व्यतीत करते हुए अपनी पूरी क्षमता का एहसास कर सकें। क्योंकि शिक्षित, स्वस्थ्य और उत्पादक युवा ही लचीले, समृद्ध एवं मजबूत समुदाय का आधार बनते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए “स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम” को भारत सरकार के आयुष्मान भारत कार्यक्रम के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम, आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन और विकास मंत्रालय, भारत सरकार की एक संयुक्त पहल है।

कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य:
-स्कूलों में बच्चों को स्वास्थ्य और पोषण के संबंध में उचित जानकारी प्रदान करना।
-बच्चों के जीवन में स्वस्थ व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करना।
-बच्चों एवं किशोरों में शुरुआत दौर में ही बीमारियों का पता लगाना।
-कुपोषित और एनीमिक बच्चों की पहचान कर उचित इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में रेफर करना।
-स्कूलों में शुद्ध पेयजल के उपयोग को बढ़ावा देना।
-किशोरियों में सुरक्षित मासिक धर्म के लिए स्वच्छ प्रथाओं को बढ़ावा देना।
-स्वास्थ्य और कल्याण राजदूतों के माध्यम से योग और ध्यान को बढ़ावा देना।
-बच्चों के लिए स्वास्थ्य, कल्याण और पोषण पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।

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