पहरे के बीच फिर लाल हुईं जेल की दीवारें,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यूं तो जेलों में एक साल से मुलाकात पर पाबंदी है। कोरोना काल में हर सामान की सघन जांच के बाद ही उसे भीतर ले जाने की अनुमति है। हर जेल में सीसीटीवी कैमरों का सुरक्षा कवच भी है। लेकिन, जेल अधिकारियों व कर्मियों की लापरवाही और चूक ने करीब दो साल 10 माह के बाद चित्रकूट जेल में मुन्ना बजरंगी हत्याकांड सरीखे जघन्य वारदात दोहराई है। जेलों की सुरक्षा के जिम्मेदार कठघरे में हैं। जेल में ‘सुरंग’ की दास्तान फिर बड़े सवाल लिए खड़ी है। हालांकि, इस बार चित्रकूट जेल के भीतर पिस्टल हासिल कर दो कुख्यातों की हत्या करने वाला शातिर अंशू दीक्षित भी हमेशा की नींद सो चुका है। लिहाजा जेल में इस गहरी साजिश की कड़ियां भी खुलने से पहले ही दफन भी हो गई हैं। जेल अधिकारियों से लेकर पुलिस के सामने अब जांच से जुड़े अहम बिंदु पहेली हैं।

जेलों में बंदियों के बीच आपसी टकराव, मारपीट से लेकर हत्या की कई घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें बागपत जेल में नौ जुलाई, 2018 को उच्च सुरक्षा बैरक में माफिया मुन्ना बजरंगी उर्फ ओम प्रकाश सिंह की गोली मारकर की गई हत्या सबसे बड़ी वारदात थी। जेल की सलाखों के पीछे नाइन एमएम पिस्टल पहुंची थी और बागपत जेल में ही निरुद्ध सजायाफ्ता बंदी सुनील राठी ने उस पिस्टल से मुन्ना के सीने में ताबड़तोड़ कई गोलियां दागी थीं। कुछ देर बाद ही मुन्ना के खून से लथपथ शव की तस्वीरें भी इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो गई थीं। पुलिस जेल में पिस्टल पहुंचने से लेकर तस्वीरें वायरल होने से जुड़े कई सवालों के जवाब नहीं तलाश सकी थी।

मार्च, 2020 में हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ लखनऊ की स्पेशल क्राइम ब्रांच ने मुन्ना बजरंगी की हत्या का केस दर्ज कर छानबीन शुरू की थी, जो अभी चल रही है। इस हत्याकांड के बाद ही जेलों की सुरक्षा बढ़ाई गई थी। सूबे में पांच हाई सिक्योरिटी जेल बनाए जाने का निर्णय भी हुआ था। जेलों की सुरक्षा में पीएसी की तैनाती भी की गई। कारागार मुख्यालय ने जेलों में अधिकारियों व कर्मियों के मोबाइल के प्रवेश तक पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद कोरोना की पहली लहर के दौरान जेलों में और सख्ती बढ़ा दी गई थी।

जेलों में लगे सीसीटीवी कैमरों की मानीटरिंग की व्यवस्था कारागार मुख्यालय में बने कंट्रोल रूम के जरिए होती है। ऐसे कई पुख्ता बंदोबस्त के बाद भी एक बार फिर सलाखों के पीछे लखनऊ में वर्ष 2007 में छात्र नेता विनोद त्रिपाठी की हत्या करने वाले अंशू दीक्षित ने ऐसा गहरा षड्यंत्र रच डाला, जिसने सुरक्षा के दावों की पोल खुद खोल दी है। अंशू ने मुकीम काला व मेराजुद्दीन उर्फ मेराज की हत्याएं क्यों कीं और पिस्टल किसके बलबूते हासिल की, इस षड्यंत्र में और कौन-कौन शामिल था, इन सवालों के जवाब बेहद अहम हैं। मेराज माफिया मुख्तार अंसारी गिरोह का करीबी था।

रायबरेली जेल में भी उड़ाई थीं सुरक्षा की धज्जियां : चित्रकूट जेल से पहले कुख्यात अंशू दीक्षित ने नवंबर, 2018 में सीतापुर जेल की सुरक्षा-व्यवस्था की भी धज्जियां उड़ाई थीं। तब रायबरेली जेल में बंद अंशू व उसके साथियों द्वारा मोबाइल फोन पर एक व्यक्ति को धमकी देते वीडियो वायरल हुआ था। बैरक में मुर्गा पार्टी करते नजर आए अपराधियों के पास कारतूस भी नजर आ रहे थे। फोन पर ही जेल के भीतर से शराब का आर्डर भी दिया जा रहा था। वायरल वीडियो की गंभीरता को देखते हुए डीएम रायबरेली के आदेश पर अंशू दीक्षित समेत चार बंदियों को 19 नवंबर, 2018 को अन्य जेलों में स्थानांतरित करा दिया गया था।

21 नवंबर, 2018 को रायबरेली की नगर कोतवाली में अंशू समेत चारों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई थी। कारागार अधिकारियों ने जेल में तलाशी के दौरान चार मोबाइल फोन व एक सिम कार्ड बरामद किया था। दोषी वरिष्ठ अधीक्षक समेत छह जेलकर्मी निलंबित भी हुए थे। इस दौरान ही अंशू का जेल में जान का खतरा जताते हुए वीडियो भी वायरल हुआ था। इससे पूर्व जुलाई 2018 में फैजाबाद जेल में बैरक में केक काटकर एक अपराधी का जन्मदिन मनाए जाने का वीडियो वायरल हुआ था। जांच में पाया गया कि जेल अधिकारियों की लापरवाही से ही कारागार के भीतर केक गया और चाकू ले जाया गया था। ऐसी कई अन्य घटनाएं भी जेलों की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े कर चुकी हैं।

जेलों में हुईं कई हत्याएं : जेलों में संगीन घटनाओं का इतिहास पुराना है। वर्ष 2004 में वाराणसी जेल में सभासद बंशी यादव की हत्या की गई थी। वारदात में माफिया मुन्ना का नाम भी सामने आया था, जबकि वर्ष 2005 में वाराणसी जेल में ही मुन्ना के करीबी अन्नू त्रिपाठी को मौत के घाट उतार दिया गया था। वर्ष 2015 से वर्ष 2019 के बीच सूबे की जेलों में हत्या की छह वारदात हुईं थीं। इन पांच सालों में जेल की सलाखों के पीछे अलग-अलग कारणों से 2024 बंदियों की मौत हुई थी। बीते डेढ़ सालों में यह आंकड़ा और बढ़ा है। मई, 2020 में बागपत जिला जेल में बंदियों के दो गुटों में खूनी संघर्ष हुआ था और बंदी ऋषिपाल की हत्या कर दी गई थी।

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