हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा ‘जनकवि मेहरसिंह सम्मान’ से सम्मानित हुए प्रो.राजेन्द्र सिंह.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हरियाणा के मुख्यमंत्री महोदय द्वारा ‘जनकवि मेहरसिंह सम्मान’ से प्रो.राजेन्द्र सिंह(अधिष्ठाता,मानविकी एवं भाषा संकाय, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) सम्मानित हुये. कैथल के आरकेएसडी कालेज में लंबे समय तक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे शिक्षक एवं साहित्यकार राजेंद्र बड़गूजर को हरियाणा साहित्य अकादमी के जनकवि मेहर सिंह पुरस्कार के चयन हुआ। इस पुरस्कार में उन्हें दो लाख रुपये की इनाम स्वरूप राशि मिलेगी। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा यह पुरस्कार हरियाणवीं लोक साहित्य के संकलन, संपादन के लिए दिया जाता है।

हरियाणवी साहित्य पर 22 पुस्तकें कर चुके हैं प्रकाशित :

बता दें कि राजेंद्र बड़गूजर पिछले 12 वर्षों से हरियाणा के लोक साहित्य के अध्येता बनकर उभरे हैं। उन्होंने अनेक गुमनाम लोककवियों की रचनाओं को संपादित किया है और वे उन्हें मुख्यधारा में लेकर आए हैं। हरियाणा के लोक साहित्य पर इनकी 22 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

जिनमें से महाशय दयाचंद मायना ग्रंथावली, धनपत सिंह निदाना ग्रंथावली, छज्जूलाल सिलाना ग्रंथावली, सोरण राम नैणा हरियाणवी रचनावली, महाशय गुणपाल कासंड़ा हरियाणवी ग्रंथावलीं, कृष्णचंद्र रोहणा हरियाणवी रचनावली, फौजी प्रेम सिंह कृत किस्सा भीमराव आंबेडकर और अन्य रागनियां, करतार सिंह कैत की रागनियां, मास्टर दयाचंद आ•ाद ग्रंथावली, देइचंद ग्रंथावली, अमरसिंह छाछिया की रागनियां, मुंशीराम जांडली ग्रंथावली, सांग. सम्राट चंद्रलाल बादी ग्रंथावली व छापकटैया प्रमुख हैं

राजेंद्र बड़गूजर के चार कविता संकलन व दो कहानी संकलन भी प्रकाशित हैं। वह वर्तमान में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार में हिदी के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध के विध्वंस में ‘तोमोए’ जलकर राख हो गया था। सड़क से अपने स्कूल को जलते देख हेडमास्टर जी ने उत्साह से पूछा था- ‘अब हम कैसा स्कूल बनाएँ’
श्रीकोबायाशी से मिले भरोसे ने खिड़की से दुनिया निहारने वाली ‘तोत्तो-चान’ को ज़िन्दगीं का सबसे ज़रूरी पाठ पढ़ा दिया था। ‘तुम एक अच्छी लड़की हो’ वाली बात ‘तोत्तो-चान ने गहरे…कहीं बहुत गहरे सबसे छिपा कर रखी थी।
बीते दो सालों से यह सबकुछ मुझे बार-बार याद आता है। मैं गिरती हूँ…ज़िद्दी हूँ…बेख़ौफ़ हूँ…हर रोज कटने की तैयारी और फिर से जनमने का साहस। उफ़्फ़…मैं क्या लिख रही हूँ।


बात बस इतनी है,
आज आपके वर्षों की मेहनत को विस्तार मिल रहा है। उन तमाम आवाज़ों का यह रंग है जिन्हें पहचान से अलग रखने की साज़िश हो रही थी।
‘हिन्दी विभाग’ को देश ‘केसरिया’ सलाम कर रहा है।
आज भी आप यही कह रहे होंगे-
‘खिलने दो सैकड़ों फूल
होने दो विचारधाराओं में संघर्ष’

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय की ओर से…सभी की ओर से मुबारक़!
आप स्वस्थ रहें…
(मैं ऐसे ही आपको अतिरिक्त ‘तनाव’ देते रहूँगी। वैसे भी बेटियों का यह हक़ है…)
-रश्मि सिंह

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