रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र मर्डर मिस्ट्री में छिपे हैं आज भी कई राज
जब एक बम ब्लास्ट ने बदल दी पूरे बिहार की राजनीति
पुण्यतिथि पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज आजाद भारत के पहले ऐसे कैबिनेट मंत्री की पूण्यतिथि है, जिनकी हत्या कर दी गई थी। खास बात यह है कि हत्या की यह गुत्थी आज तक नहीं सुलझ सकी है। हम बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (PM Indira Gandhi) की सरकार में रेल मंत्री रहे ललित नारायण मिश्र (Rail Minister lalit Narayan Mishra) की। उन्हें दो जनवरी 1975 को बिहार के समस्तीपुर स्टेशन (Samastipur Railway Station) पर बम से उड़ा दिया गया था।
खास बात यह है कि बुरी तरह जख्मी रेलमंत्री को इलाज के लिए पटना ले जा रही ट्रेन सात के बदले करीब 14 घंटे में पहुंची। इस विलंब के कारण इलाज के अभाव में एक दिन बाद उनकी मौत हो गई। इस हत्या में सीबीआइ ने आनंदमार्गियों का हाथ बताया, लेकिन ललित बाबू की पत्नी ने इसे मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री व बिहार के मुख्यमंत्री को इस बाबत पत्र लिख नए सिरे से जांच की मांग रखी। इसके आलोक में जो जांच कमेटी बनाई गई, उसने भी आरोपितों को निर्दोष बताया। अब ललित बाबू के पौत्र वैभव मिश्रा की नए सिरे से निष्पक्ष जांच की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ से छह महीने में जवाब मांगा है।
दो जनवरी 1977 को बम से उड़ाया, एक दिन बाद मौत
ललित नारायण मिश्र समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर बड़ी रेल लाइन का उद्घाटन करने दो जनवरी 1975 को सरकारी विमान से पहुंचे थे। कार्यक्रम के बाद उन्हें विमान से वापस दिल्ली लौटना था। घना कोहरा को देखकर विमान के पायलट ने उन्हें कार्यक्रम छोड़ वापस लौटने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने।
शायद उन्हें मौत खींचकर समस्तीपुर स्टेशन ले गई थी। समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर के बीच बड़ी लाइन का उद्घाटन करने के बाद उन्होंने लोगों को संबोधित किया। फिर मंच से उतरते वक्त भीड़ में से किसी ने बम फेंक दिया। घटना में ललित नारायण मिश्र, उनके भाई व बिहार के मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र (Dr. Jagannath Mishra) तथा एमएलसी सूर्यनारायण झा सहित 29 लोग जख्मी हो गए। बम कांड में ललित बाबू व एमएलसी सूर्य नारायण झा तथा रेलवे के एक क्लर्क राम किशोर प्रसाद की मौत हो गई।
जख्मी रेलमंत्री को ले जाती ट्रेन सात घंटे हो गई लेट
घटना में ललित बाबू बुरी तरह जख्मी हाे गए थे। उन्हें तत्काल इलाज की आवश्यकता थी, लेकिन निकटवर्ती दरभंगा मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (DMCH) ले जाने के बदले उन्हें ट्रेन से पटना के दानापुर रेलवे अस्पताल (Danapur Railway Hospital) ले जाया गया। हद तो यह हो गई कि अंतिम सांसे ले रहे रेलमंत्री को इलाज के लिए ले जाती उनकी ही ट्रेन करीब सात घंटे लेट हो गई। इस कारण इलाज के अभाव में तीन जनवरी को उनकी मौत हो गई। ट्रेन के लेट होने के कारण ललित बाबू के समर्थक इस घटना के पीछे किसी बड़ी राजनीतिक साजिश की आशंका जताते रहे हैं। उनका मानना है कि इस मर्डर मिस्ट्री के कई राज आज भी बेपर्द होने बाकी हैं।
जांच की दिशा पर आपत्ति, नए सिरे से जांच की मांग
घटना की एफआइआर समस्तीपुर रेलवे पुलिस ने दर्ज की, लेकिन आगे जांच की जिम्मेदारी सीआइडी, फिर सीबीआइ को दे दी गई। सीबीआइ के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर, 1979 को मुकदमा बिहार से बाहर ले जाने की इजाजत दी। यह हाई प्रोफाइल मामला 22 मई, 1980 को बिहार से दिल्ली सेशन कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस बीच ललित बाबू की पत्नी कामेश्वरी देवी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को पत्र लिखकर जांच की दिशा पर आपत्ति जताते हुए नए सिरे से जांच की मांग रख दी। मई, 1977 में उन्होंने इस बाबत तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह को भी पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने साफ तौर पर लिखा कि घटना को लेकर आरोपित आनंदमार्गी उनकी नजर में निर्दोष हैं।
ललित बाबू के पुत्र विजय मिश्र और भाई जगन्नाथ मिश्र ने भी कोर्ट में गवाही के समय कहा कि आनंदमार्गियों की ललित बाबू से कोई अदावत नहीं थी। नवंबर, 2014 में सीबीआई की सेशन कोर्ट ने रंजन द्विवेदी, संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपाल जी को उम्र कैद सुनाई। फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद 2015 में आरोपी जमानत पर बाहर आ गए।
ताराकुंडे जांच कमेटी की रिपोर्ट में आरोपित निर्दोष
सवाल यह है कि आनंदमार्गियों को बेकसूर मान रहा परिवार घटना के पीछे किसकी साजिश मानता है और इस मामले की जांच के लिए बनाई गई कमेटी का क्या कहना है? ललित बाबू की मौत के पीछे गहरी साजिश बताने वालों की कमी नहीं है। समर्थकों ने उनके कई राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के नाम बताए। परिवार की मांग पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने मामले की जांच की जिम्मेदारी एम ताराकुंडे को दी, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में सीबीआइ द्वारा आरोपित बनाए गए लोगों को निर्दोष बताया।
ललित बाबू ने अपना भाषण खत्म किया और मंच से नीचे उतरने लगे। तभी भीड़ की तरफ से एक बम उनकी ओर फेंक दिया। एक जोरदार धमाका हुआ और चारों तरफ धूल का गुबार फ़ैल गया। थोड़ी देर बाद धुआं छटा तो ललित बाबू, जगन्नाथ मिश्रा समेत कई नेता गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। आनन-फानन में उन्हें ट्रेन से समस्तीपुर से दानापुर के अस्पताल लाया गया।
यह हत्याकांड कई बार चर्चा में रहा और मामले में दोबारा से जांच की मांग भी की गई। लेकिन 40 साल बाद आए फैसले में आरोपियों को सजा दी गई। इंदिरा गांधी ने भी उस वक्त इस हत्या को विदेशी साजिश बताया था और आज भी यह मौत एक रहस्य मात्र बनकर रह गई है। एक समय यह भी कहा गया कि ललित बाबू की लोकप्रियता ही उनकी मौत का कारण बनी।
- यह भी पढ़े…….
- कंझावला मौत मामले में युवती का किया गया अंतिम संस्कार
- सर्द बयार में लक्ष्मीपुर में संवाद, स्वाद और उमंग की बही त्रिवेणी!
- सावित्रीबाई फुलेः यही से शुरु हुआ इतिहास