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सीवान जिले के सरसर पुरैना गांव में हो रहा है रामलीला मंचन.

सीवान जिले के सरसर पुरैना गांव में हो रहा है रामलीला मंचन.

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नाट्य समिति सरसर पुरैना  द्वारा रामलीला का हो रहा है मंचन.

देर रात्रि तक रामलीला देखने के लिए जुट रहे हैं हजारों दर्शक.

 कई सौ वर्षों से यहां हो रहा है रामलीला का मंचन.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान जिले से सटे उत्तर दिशा में सरसर पुरैना गांव स्थित है, जहां इन दिनों राजकीय मध्य विद्यालय के प्रांगण में ग्रामीणों द्वारा रामलीला का मंचन हो रहा है मंगलवार को इसका समापन होगा. इस मंचन के बारे में प्रो. रामचंद्र सिंह कहते हैं कि यह सैकड़ों वर्ष से हमारे गांव की परंपरा है जिससे हम सभी संस्कारित होकर इस नेक काम में लगे रहते हैं. विजयादशमी के दूसरे दिन से यह रामलीला प्रारंभ हो जाता है, जैसा कि आप यहां देख रहे हैं रावण की भूमिका में एमबीबीएस डॉक्टर से लेकर सभी कामकाजी लोग इस रामलीला में अपनी भूमिका निभाते हैं .

बड़े सौहार्द ढंग से यह कार्यक्रम चलता रहता है एक अन्य ग्रामीण हरि नारायण सिंह बताते हैं कि दिन में 12:00 बजे तक सभी किसी को अपने संवाद याद करने के लिए कह दिया जाता है और सभी रात के 9:00 बजे मंचन के लिए उपस्थित हो जाते हैं यह हमारे प्रभु की माया है कि हम सफल नाटक का मंचन कर पाते हैं.

आगे सरसर पुरैना निवासी प्रो. रामचंद्र सिंह ने बताया कि किवदंतियों के मुताबिक, रामलीला की शुरूआत प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या से हुई. कहा जाता है कि, त्रेता युग में राम जब वन चले गए तब अयोध्यावासियों ने राम की स्मृति को याद रखने के लिए रामलीलाओं की संकल्पना कर उसे मूर्त रूप दिया था, लेकिन उपलब्ध प्रमाणों से ये स्पष्ट है कि रामलीला के प्रेरक गोस्वामी तुलसीदास स्वयं थे, उन्होंने अपने मित्र भक्त मेघा भगत के माध्यम से रामलीलाओं की प्रस्तुति मंचन की शुरूआत कराई थी. अयोध्या से निकल कर रामलीला देश दुनिया के अलग-अलग कोने तक जा पहुंची.

बैकुण्ठ सिंह ने बताया की रामलीला के प्रेरक गोस्वामी तुलसीदास रहे और मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अयोध्या में ही की थी. हम इसकी खोज में पहुंच गए तुलसी चौरा. जहां कहा जाता है कि, संवत सोलह सौ के आसापास गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना की.

यहां आज भी उस वक्त के चबूतरे का अवशेष मौजूद है जिस पर कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने बैठकर इसकी रचना की थी. उन्होंने हमें एक और जानकारी दी, बताया कि त्रेता युग में जब राम का जन्म हुआ तब जो ग्रह नक्षत्र समय काल था वहीं, ग्रह नक्षत्र समय काल उस वक्त भी था जब संवत 1600 में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना शुरू की.

रामलीला नाटक के मंचन का कार्यभार देख रहे निर्देशक ने बताया कि हम लोग के गांव के द्वारा ही आप यहां जितना वस्त्र आभूषण देख रहे हैं इसका इंतजाम किया जाता है और एक बड़े से बक्से में मंचन के बाद प्रत्येक अगले वर्ष के लिए सुरक्षित रख दिया जाता है। सब कोई अपनी श्रद्धा से भूमिका का चयन करते हैं और उसके लंबे लंबे संवाद को याद करके इसे प्रस्तुत किया जाता है।


इस नाटक को देखने के लिए गांव के सभी वर्गों के लोग,सभी जाति धर्म के लोग उपस्थित होते हैं जिसे देख कर मन उमंग से भर जाता है और फिर अगले साल के लिए हम लोग एक नई ऊर्जा से लबरेज हो जाते हैं।कुछ ऐसी ही बात है कि हम सभी प्रत्येक वर्ष इस कार्य को प्रभु राम की दया से कर ले जाते हैं।

मंचन में मुख्य आकर्षण रावण की दरबार में नृत्य करती अप्सराएं दर्शकों को मंत्रमुग्ध और मनोरंजन से भर देती है.

सचमुच में अगर आप संस्कृतिबद्ध मनोरंजन का लुफ्त उठाना चाहते हैं तो सरसर पुरैना पुरे परिवार के साथ पहुंचकर इस रामलीला के मंचन आपको अवश्य देखना चाहिए.

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