नर्क में जाने से बचने के लिए ईश्वर का स्मरण करें:राघव शरण जी महाराज

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राजपुर में श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन श्रीराम के मर्यादा को समझने की जरूरत बताई

श्रीनारद मीडिया, प्रसेनजीत चौरसिया, सीवान (बिहार)

 

नर्क में जाने से बचने के लिए ईश्वर का स्मरण करें.उक्त बातें  सीवान जिले के रघुनाथपुर प्रखंड क्षेत्र के राजपुर गांव में हो रहे श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन राघव शरण जी महाराज ने कही।मनुष्य को प्रभु भक्ति में लीन हो जाना चाहिए ताकि उसे जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा मिल जाए. उन्होंने कहा कि मनुष्य अपने अलग-अलग धर्मों के अनुरूप कुल 28 प्रकार के नर्क में जाता हैं।

उन्होंने बताया कि जो मनुष्य भगवान का कीर्तन करता हो, भगवान के नाम का स्मरण करता हो, तीर्थ करता हो ऐसे मनुष्य के पास यमराज के दूत नहीं जाते बल्कि भगवान के दूत आते हैं. कथा के दौरान श्रीमद्भागवत में भक्त प्रहलाद व हिरण्यकश्यप की कथा सुनाई उन्होंने बताया कि मारने के लिए भगवान नरसिंह रूप में अवतरित हुए क्रोध में थे उनके क्रोध को शांत करने के लिए देवताओं ने भक्त प्रहलाद को ही आगे किया ताकि भगवान अपने भक्तों पर कभी क्रोध नहीं करते बल्कि अपने चरणों में रहने वाले के पक्ष में सदैव रहते हैं.

हिरण कश्यप वध के बाद प्रहलाद ने भी प्रभु से प्रार्थना की उसके पिता को नर्क में नहीं भेजा जाए तब भगवान ने उत्तर दिया कि जिस कूल में तुम्हारे जैसा भक्त हो उसके साथ पीढ़ियां धन्य हो जाती हैं. इसके बाद भक्त प्रहलाद के पुत्र राजा बलि की कथा का वर्णन करते हुए कहे इस समुद्र मंथन के दौरान भगवान के तीन अवतार हुए.

इसके बाद उन्होंने भगवान के वामन अवतार की कथा सुनाई जिसमें भगवान वामन ने राजा बलि से दो पग में पूरी सृष्टि नाप ली जबकि तीसरा पग के लिए राजा बलि अपने आप को समर्पित कर दिए. फिर भगवान ने बलि को वरदान मांगने के लिए कहे तो बलि ने भगवान को ही अपना द्वारपाल बना लिया.

राजा बलि से भगवान को छुड़ाने के लिए माता लक्ष्मी को राजा बलि की बहन बनना पड़ा जिसके बाद माता लक्ष्मी ने भगवान को छुड़ाकर अपने धाम ले गए. आगे कृष्ण जन्म का उल्लेख करते हुए कहा कि कृष्ण की लीला को समझने के लिए श्री राम के मर्यादा को समझना आवश्यक है जिसके बिना कृष्ण की लीला समझना मुश्किल है.

राम जन्म का वर्णन करते हुए कृष्ण जन्मोत्सव की अद्भुत झांकी प्रस्तुत की गई जिसमें उपस्थित श्रोता झूमने से अपने आप को नहीं रोक सके. जन्मोत्सव के बाद सोहर और भजन आरती के बाद प्रसाद वितरण हुआ और चौथे दिन के कथा का समापन हुआ.

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