जम्मू-कश्मीर के कण-कण में सबका साथ,सबका विकास-डॉ संजय जायसवाल.

जम्मू-कश्मीर के कण-कण में सबका साथ, सबका विकास-डॉ संजय जायसवाल.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सबका साथ, सबका विकास यानी सभी के सहयोग से चलने वाली और सभी को विकास यात्रा में भागीदार बनाने वाली सरकार। 2014 से इसी सिद्धांत पर काम कर रही नरेंद्र मोदी की सरकार अगर किसी इलाके में इसे पूरी तरह चरितार्थ करने में कुछ पीछे थी तो वह थी जम्मू कश्मीर की धरती। और इसके पीछे सबसे बडी वजह थी वहां की विशेष कानूनी स्थिति। धारा 370 के चलते न तो वहां के लोगों को अपने सभी संवैधानिक अधिकार हासिल हो पर रहा थे और न ही केंद्र की ओर से चलाए जा रही जनकल्याण की योजनाओं का लाभ मिल पा रहा था। जनमानस का असंतोष इलाके के युवाओं की कुंठा में परिलक्षित हो रहा था।

4-5 अगस्त, 2019 को सवंधिन की धारा 370 और उसी के साथ धारा 35 ए को निरस्त करके मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख क्षेत्र के निवासियों के सामने सशक्तीकरण और विकास से भरी एक नई दुनिया का द्वार खोल दिया। जो बीज दो साल पहले बोया गया था उसके कांपल और उसकी नर्म शाखें पहले कानूनी प्रावधान, फिर शहरी और व्यापारिक प्रतिष्ठान और अब गांव गांव में दिख रही हैं। विकास और सशक्तीकरण के इस बीज को अब एक बडे, छायादार पेड बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

सामाजिक भेदभाव का अंत
अगर बात सीमावर्ती क्षेत्रों से शुरू की जाए तो आजादी के तुरंत बाद और पाकिस्तान से दो युद्धों में शरणार्थी बनकर जम्मू कश्मीर में आई एक बहुत बडी जनसंख्या धारा 370 के कारण स्थानीय निवासी के अधिकार नहीं पा रहे थे। विडंबना ऐसी कि लोकसभा के चुनाव में तो अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते थे मगर विधानसभा और स्थानीय निकाय में नहीं। भेदभाव की दर्दनाक कहानी यहीं समाप्त नहीं होती।

समाज के वंचित वर्ग को भी कई तरह से प्रताडना का शिकार होना पड रहा था। और यह सिलसिला दशकों तक चलता रहा। एक ओर जहां शेख अब्दुल्ला के समर्थक उनके जमीन सुधार कदमों की सराहना करते थे वहीं वह भूल जाते थे कि आजादी के दशकों के बाद भी कुछ वंचित तबकों को अपना पेशा चुनने की आजादी नहीं मिली। एक सफाई कर्मचारी के बच्चे को तमाम डिग्रियां लेकर भी वहीं कम करना पड रहा था और इस जिल्लत, इस मजबूरी की बात को कहीं उठा तक नहीं सकते थे।

महिलाओं को सामाजिक संरक्षण
भेदभाव और प्रताडना सिर्फ समाज के कुछ वर्ग तक ही सीमित नहीं थी। पूरे जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की महिलाओं पर हमेशा एक तलवार लटकती रहती थी। धारा 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए थे। जिसके तहत कोई भी स्थानीय महिला यदि किसी गैर निवासी से विवाह करे तो वह स्थानीय निवासी के अधिकार यानी स्टेट सब्जेक्ट का हक खो देती थी। अब न सिर्फ यह अन्यायपूर्ण प्रावधान खत्म हुआ है बल्कि उसके पति को वहां के अधिकार दिए जाने का नया प्रावधान भी लाया गया है। बेटियों से रिश्ता खत्म करने के बजाय अब नए रिश्ते गढने का आगाज हुआ है।

क्षेत्रीय असंतुलन का अंत
जम्मू कश्मीर आने-जाने वाला हर नागरिक यह जानता है कि भेदभाव का दर्द केवल समाज के कुछ तबकों तक सीमित नहीं था। क्षेत्रीय असंतुलन की शिकायत सबसे मुखर थी। लेकिन तमाम प्रदर्शनों, आंदोलनों के बावजूद कुछ खास बदला नहीं था। अब ऐसे ठोस कदम उठाए जा रहे हैं जिससे असंतुलन के जड में जो वजह है उसका समाधान किया जा सके। विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन इसी दिशा में लिया गया एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। लोगों, खास तौर पर दूरदराज के इलाकों में रहने वालों के लिए, मंत्री या सांसद से कहीं ज्यादा उनके स्थानीय नुमांइदों की अहमियत होती है।

कभी आतंक, कभी विशिष्ट कानून और केंद्र की धारा से अलग रहकर स्थानीय राजनीतिक आकांक्षाओं की वहां हमेशा अनदेखा हुई है। पहली दफा डीडीसी के चुनाव से यह कमी दूर करने का प्रयास हुआ। जब परिसीमन की प्रक्रिया संपन्न हो जाएगी तो यह भी साफ हो जाएगा कि दशकों से पाक प्रयोजित आतंकवाद, आर्थिक गतिविधियों में भारी कमी और अन्य कारणों से जम्मू कश्मीर के संसदीय व विधानसभा क्षेत्रों का स्वरूप कितना बदल चुका है। तभी सही मायनों में विधानसभा चुनाव का अर्थ होगा।

विकास को लगे पर
विकास कार्यो में भेदभाव मिटाना, संवेदनशालता लाना और गति बरकरार रखना, आज इन सभी आयामों को ध्यान में रखा जा रहा है। जिला ही नहीं, उससे भी निचले स्तर पर जाना और अधिकारियों का गांव में जाकर लोगों से उनकी दुश्वारियों का ब्योरा लेना उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अनूठी पहल के रूप में देखा जा रही है। लेकिन नेत्त्व, प्रशासन की जिम्मेदारी केवल परेशानियों का ब्योरा लेने से पूरी नहीं होतीं। आज हर जिले में विशेष भर्ती अभियान चलाए जा रहे हैं। बैक टू विलेज कार्यक्रम के तहत गांव-गांव में युवाओं के लिए स्वरोजगार, आसानी से वित्तीय मदद मुहैया कराना और केंद्रीय योजनाओं के जरिए एक उज्ज्वल भविष्य की नींव डालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

कट्टरपंथी ताकतों की चुनौती
सवाल केवल रोजगार का नहीं है। जम्मू और कश्मीर, खासतौर पर कश्मीर घाटी के युवा वर्ग और जम्मू के सीमावर्ती इलाकों के युवाओं पर पाकिस्तान प्रायोजित ताकतों की बुरी नजर है। अगस्त 2014 के बाद पूरे इलाके में आग लग जाने की भविष्यवाणी करके दुनिया भर में शोर मचाने वाला पाकिस्तान आज ठगा हुआ महसूस कर रहा है। इलाके में शांति और विकास की धारा देख सीमापार बैठी ताकतों में बौखलाहट है। सुरक्षाबलों की मुसतैदी से आतंक अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। ऐसे में इन ताकतों के लिए युवाओं को जबरदस्ती कट्टरपन में ढकेलना ही एकमात्र रास्ता रह गया है।

इसीलिए विकास कार्यां, बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और शिक्षा-रोजगार के बेहतरीन अवसरों के अलावा युवा वर्ग में देशभक्ति व रचनात्मक उर्जा का संचार भी जरूरी है। यही काम सेना की ऑपरेशन सद्भावना और प्रशासन की ओर से चलाए रहे मिशन जे एंड के यूथ का फोकस है। जम्मू कश्मीर के निवासी विकास कार्यों से भरपूर लाभ लें, आतंक-हिंसा से मुक्त जीवन जिएं और युवा उसी तरह देश के भविष्य में रचनात्मक योगदान दें जैसे भारत के अन्य हिस्सों में उनके साथी, यही कश्मीर में उस नई सुबह की परिभाषा है जिसकी बात तो दशकों से वहां के नेता कहकर लोगों को छलते रहे लेकिन अब वह सुबह क्षितिज पर चमकती हुई दिख रही है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!