सवर्ण आयोग की रिपोर्ट: भूमिहार सबसे ज्यादा बेच रहे जमीन,क्यों?

सवर्ण आयोग की रिपोर्ट: भूमिहार सबसे ज्यादा बेच रहे जमीन,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में जातीय गणना की प्रक्रिया लगभग आखिरी चरण में है। किसी भी दिन सरकार इसे जारी करने की घोषणा भी कर सकती है। सरकार का दावा है कि इससे राज्य में जातियों की सही जानकारी के साथ-साथ उनकी सामाजिक और आर्थिक हालात को समझने में सहूलियत होगी। इस आधार पर योजना बनाने में मदद मिलेगी। ऐसा ही एक दावा आज से 12 साल पहले नीतीश कुमार की सरकार ने सवर्ण आयोग बनाकर की थी।

साल 2011 में बने सवर्ण आयोग के एक सदस्य की माने तो लगभग ढाई साल के जतन के बाद 2013 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। तामझाम के साथ रिपोर्ट पब्लिश की गई, लेकिन उनके सुझाव आज भी फाइलों में धूल फांक रहे हैं। सवर्णों की स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने न कोई योजना बनाई और न ही सुझाव पर अमल किया गया।

लगभग 2 साल में 25 जिलों में अपने अध्ययन के आधार पर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को बताया था कि सवर्ण जाति के 49% (ग्रामीण क्षेत्रों के) बच्चे केवल गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं। सवर्णों का मुख्य पेशा कृषि है, लेकिन ये अपनी जमीनों को बेचने के लिए मजबूर हैं। हालात यह है कि राज्य के 55 फीसदी से ज्यादा सवर्ण ऐसे हैं, जिनके पास 1 एकड़ से कम जमीन बची हैं।

46% सवर्ण कृषि पर निर्भर, इसके बाद भी बिक रही जमीन

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि बिहार के 46.3% सवर्णों का मुख्य पेशा कृषि है। रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में 46.3% सवर्ण कृषि पर निर्भर हैं। अगर जातियों की बात करें तो 37.7% ब्राह्मण, 62.5% भूमिहार, 49.8% राजपूत और 22.1% कायस्थ का मुख्य पेशा खेती है।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मुख्य पेशा होने के बाद भी सवर्ण अपनी जमीन बेचने को मजबूर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 10.5% से ज्यादा भूमिहार अपनी जमीन बेच रहे हैं।

वहीं राजपूत में ये आंकड़ा 8%, ब्राह्मण में 5.8% और कायस्थ में 4.6% है। ओवरऑल की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 7.5% सवर्ण अपनी जमीनों को बेच रहे हैं। कृषि से पर्याप्त आमदनी और रोजगार नहीं मिलने के कारण लगभग 18.1% आबादी हमेशा आय के दूसरे श्रोतों पर आश्रित रहती है।

55% सवर्णों के पास एक एकड़ जमीन भी नहीं बची

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बिहार में 55.1 सवर्ण ऐसे हैं, जिनके पास अब एक एकड़ से भी कम जमीन बची हैं। लगभग 33.4 प्रतिशत सवर्ण आबादी ऐसी है, जिनके पास अपनी कृषि योग्य कोई भूमि नहीं है।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि बिहार में अब भी लगभग 20% सवर्ण आबादी के पास रहने के लिए पक्का मकान नहीं है। 19.9% आबादी कच्चा मकान और झोपड़ी में रह रही है। मात्र 47.8% सवर्ण ग्रामीण आबादी के पास अपना पक्का मकान है। 24.8% सवर्ण आबादी ऐसी हैं, जिनके पास सेमी कच्चा मकान हैं।

 बिहार के 36% सवर्ण गरीबी रेखा से नीचे

रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार की 36.6% सवर्ण आबादी गरीबी रेखा के नीचे हैं । यानी सरकार के पैमाने पर ये बीपीएल कार्ड के हकदार हैं। जबकि 48.7% ग्रामीण आबादी के पास एपीएल कार्ड है। वहीं, 14.2% आबादी का राशन कार्ड नहीं बन पाया है। 79 प्रतिशत सवर्ण आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित तौर पर सरकारी राशन दुकानों की उपभोक्ता है।

 ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहार तो शहरी क्षेत्रों में कायस्थ सबसे ज्यादा बेरोजगार

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को बताया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में ब्राह्मण के 8.5%, भूमिहार के 13.2%, राजपूत के 8.6% और कायस्थ के 9.1% लोग बेरोजगार हैं। जबकि शहरी क्षेत्रों ये क्रमश: 8.9%, 10.4%, 10.5%, 14.1% हैं। आंकड़ों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में सवर्ण के 9.6 % बेरोजगार हैं, जिनमें सबसे अधिक भूमिहार के 13.2% युवा बेरोजगार हैं। वहीं, शहरी क्षेत्रों में 10.7% युवा बेरोजगार हैं। शहरी क्षेत्रों में सबसे अधिक कायस्थ के 14.1% युवा बेरोजगार हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में 32.7%, सवर्ण युवा ऐसे हैं, जिन्हें रेगुलर सैलरी मिलती है, जबकि 34 प्रतिशत युवा ऐसे हैं जो काम तो करते हैं, लेकिन उन्हें अनियमित सैलरी मिलती है। 24.7%युवा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार पर निर्भर हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में 23.7% युवा अपना खुद का रोजगार करते हैं तो 60.7% युवा ऐसे रेगुलर सैलरी पर निर्भर करते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में 90% युवाओं के पास ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं

ग्रामीण क्षेत्रों में सवर्ण के मात्र 9.9% युवा ही ग्रेजुएशन या ग्रेजुएशन से ऊपर की पढ़ाई कर पाते हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 31.7% है। जातिवाद आंकड़ों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 21.8% ब्राह्मण, 18.8% भूमिहार, 20.4% राजपूत और 14.6% कायस्थ अशिक्षित हैं। ओवर ऑल देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 20.1% सवर्ण अशिक्षित हैं। शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 10% का है। शहरी क्षेत्रों में 11.6% ब्राह्मण, 9.1% भूमिहार, 10.5% राजपूत और 7% कायस्थ अशिक्षित हैं।

 ग्रामीण क्षेत्र के 49% सवर्ण के बच्चे गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सवर्ण के 49% बच्चे गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं। 16% बच्चे घर पर काम में व्यस्तता के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं।

9.6% बच्चों के अभिभावक का मानना है कि पढ़ाई जरूरी नहीं है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में 28.6% बच्चे गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं। जबकि 28.6% प्रतिशत बच्चे घर के काम में व्यस्तता के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं।

43.5% सवर्ण पलायन को मजबूर, 65.6% नौकरी के लिए घर छोड़ने को मजबूर

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100 घर में से 43.5% सवर्ण पलायन को मजबूर हैं। इनमें सबसे ज्यादा राजपूत हैं। इनकी संख्या 52.65% है। जबकि ब्राह्मण में ये संख्या 38.7%, भूमिहार में 40.97% और कायस्थ में 37.52% हैं।

पलायन करने वाले सवर्णों की औसतन आयु 33.15 वर्ष हैं। पलायन करने वाले सवर्णों में सबसे ज्यादा 65.6% लोग नौकरी की तलाश में अपना घर छोड़ते हैं। जबकि 20% बेहतर नौकरी के लिए और 10.4% लोग पढ़ाई के लिए बाहर जाते हैं। पलायन करने वाले 83.3% सवर्ण रोजगार की तलाश में अपने राज्य से बाहर जाते हैं। जबकि 5.5% अपने जिले में और 9.9% लोग अपने राज्य में पलायन करते हैं।

हर जाति का निश्चित अंतराल पर हो सर्वे, इसके आधार पर बने योजनाएं

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडी में समाज शास्त्र और सामाजिक मानव विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर राजीव कमल कुमार कहते हैं कि सभी जातियों में गरीब और पिछड़े लोग हैं। जरूरी है नियमित अंतराल पर इनकी पहचान होते रहें। इसके लिए इनका पीरियडिकल रिव्यू होना चाहिए।

 

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