बैठकी जमी और देर रात तक हम बातें करते रहें-देवेन्द्र नाथ तिवारी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मसरख रेलवे कॉलोनी में हमारे ‘डेरा’ (क्वार्टर) का नंबर T/6 था. वहीं हमारा बचपन बीता. अब वह ‘डेरा’ परित्यक्त है. वह अशोक का पेड़ भी अब सूख गया है, जिसके छाँव तले दोस्तों के साथ न जाने कितनी बातें हुईं थी, कितने दिन बीते थे. तीन साल बाद मसरख आना हुआ. कारण जीवन की आपाधापी के बीच कुछ फ़ुरसत के पल की तलाश में. सोचा कि बचपन के दोस्तों के बीच बैठेंगे, तो साथ वह मिल जाएगा. कल शाम में पहुँचा. बैठकी जमी और देर रात तक हम बातें करते रहें.

आज सुबह उठकर सोचा कि जानने वालों से दुआ सलाम करता चलूँ. सैकड़ों की संख्या में परिचित मिलें. बाबूजी के बारे में पूछा कि ‘बाबा कइसन बानी.’ बताया कि ठीक बानी. वह लोग संतुष्ट हुए. जिनसे भी मिला. एक अपनापन का भाव महसूस हुआ. खुलकर लोग मिलें. पता चला कि आज ही वापसी है, तो मायूस भी हुए. कई जगह खाने, ठहरने के लिए लोग ज़िद्द करते रहें कि ‘बाबू हमरे घरे चलऽ.’ पर, चाह कर भी जा नहीं पाया.

सुबह सबेरे गुरु जी डॉ जौहर शाफयादी जी ने चाय पीने के लिए बुलाया. मसरख में चाय की बड़ी मशहूर दुकान है- जट्टू की. वहीं से चाय आयी. गुरुजी के नये रचनात्मक कार्य पाक कुरान शरीफ़ के भोजपुरी अनुवाद (उल्था) की पांडुलिपि भी देखी. अपने तरह के अनोखे उपन्यास ‘कालयात्री’ के कुछ अंशों को पढ़ा.

बात ही बात में गुरु जी ने एक घटना की चर्चा की. उनके एक शिष्य ने चाय के बट्टे (पुरुवा) को आग में गर्म कर उसमें चाय दी, ताकि चाय में सोंधापन आये. चाय का वह पुरुवा गर्म था. गुरुजी के होंठ जल गये. उन्होंने बताया कि इस घटना के बाद से ‘तंदूरी’ चाह नहीं पीते हैं.

निखिल बाबू के साथ घंटों बैठना हुआ. कार्तिक कश्यप बाबू के अपने अनुभवों को साझा किया. हमारे एक साथी सत्येंद्र बाबू, भारतीय नौसेना की सेवा से रिटायर होकर आजकल मसरख में ही हैं. उन्होंने एक्स सर्विस मैन के लिए अपनी तैयारियों के बारे में बात की. यह सारी चर्चा आलू चाप के साथ हुई.

अग्रज तुल्य चुन्न भैया, मुन्नु भैया, सोनू भैया से बहुत सारी बातें हुईं. बहुत सारे दोस्तों से मुलाक़ात नहीं हो पायी. विवेक बाबू का इंतज़ार रहा. गुड्डू मुज़फ़्फ़रपुर में थे. अमित नगरा में. सानु बाबू मसरख स्टेशन पर विदा करने आये. मसरख स्टेशन पर हमारे बाबूजी क़रीब तीन दशक तक सेवारत रहे.

अपने व्यवहार की वजह से मान-सम्मान कमाया. शायद, वही है कि सब आत्मीयता से मिले. आख़िर आप, अपने व्यवहार की वजह से ही तो जाने जाते हैं. चलते हमारे लंगोटिया यार सानू बाबू ने मार्के की बात कही. जीवन की यही गति है, जो आबाद है, वह वीरान भी होगा. बहरहाल, हमारा आबाद डेरा अब वीरान है. परित्यक्त है. ट्रेन आगे बढ़ रही है और बहुत कुछ पीछे छूट रहा है.

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